साधुकी संगत पाईवो भजन
साधुकी संगत पाईवो भजन
साधुकी संगत पाईवो। ज्याकी पुरन कमाई वो॥टेक॥पिया नामदेव और कबीरा। चौथी मिराबाई वो॥१॥
केवल कुवा नामक दासा। सेना जातका नाई वो॥२॥
धनाभगत रोहिदास चह्यारा। सजना जात कसाईवो॥३॥
त्रिलोचन घर रहत ब्रीतिया। कर्मा खिचडी खाईवो॥४॥
भिल्लणीके बोर सुदामाके चावल। रुची रुची भोग लगाईरे॥५॥
रंका बंका सूरदास भाईं। बिदुरकी भाजी खाईरे॥६॥
ध्रुव प्रल्हाद और बिभीषण। उनकी क्या भलाईवो॥७॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। ज्योतीमें ज्योती लगाईवो॥८॥
सुंदर भजन में साधु संगति की महिमा और भक्ति की पवित्रता का उद्गार हृदय को प्रेरित करता है। जैसे दीपक की लौ अंधेरे को दूर करती है, वैसे ही साधुजनों का साथ आत्मा को प्रभु के मार्ग पर ले जाता है। यह भाव धर्मज्ञान की उस सीख को प्रदर्शित करता है कि सच्ची संगति ही जीवन को सार्थक बनाती है।
नामदेव, कबीर, मीराबाई और अन्य भक्तों का जीवन प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। उनकी भक्ति में जाति, कुल या कर्म का कोई बंधन नहीं। जैसे नदी सभी किनारों को छूकर बहती है, वैसे ही प्रभु का प्रेम हर हृदय को एक सूत्र में बांधता है। यह चिंतन की गहराई से उपजता है, जो मानता है कि भक्ति की राह सभी के लिए खुली है।
सेवा, रोहिदास, सुदामा जैसे भक्तों ने सादगी और निष्ठा से प्रभु को पाया। भिल्लणी के बेर और सुदामा के चावल प्रभु को उतने ही प्रिय थे, जितना कोई समृद्ध भेंट। यह भाव संत की वाणी की तरह निर्मल है, जो कहती है कि प्रभु को केवल श्रद्धा और प्रेम अर्पित करना काफी है।
त्रिलोचन और विदुर जैसे भक्तों ने सांसारिक जीवन में रहकर भी प्रभु को हृदय में बसाया। उनकी सादगी और भक्ति इस सत्य को रेखांकित करती है कि प्रभु का नाम हर परिस्थिति में गाया जा सकता है। धर्मगुरु की यह शिक्षा हृदय में बसती है कि सच्चा भक्त वही है, जो हर कर्म को प्रभु को समर्पित करता है।
ध्रुव, प्रह्लाद और विभीषण की भक्ति असंभव को संभव करने की शक्ति रखती है। उनका जीवन इस विश्वास को बल देता है कि प्रभु की कृपा से कोई भी बाधा पार की जा सकती है। मीराबाई का प्रभु गिरधर नागर ज्योति में ज्योति मिलाने वाला है, जो भक्त के हृदय को प्रकाश से भर देता है। यह उद्गार संत, चिंतक और धर्मगुरु के विचारों का संगम है, जो कहता है कि साधु संगति और भक्ति ही जीवन का परम सत्य है।
नामदेव, कबीर, मीराबाई और अन्य भक्तों का जीवन प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। उनकी भक्ति में जाति, कुल या कर्म का कोई बंधन नहीं। जैसे नदी सभी किनारों को छूकर बहती है, वैसे ही प्रभु का प्रेम हर हृदय को एक सूत्र में बांधता है। यह चिंतन की गहराई से उपजता है, जो मानता है कि भक्ति की राह सभी के लिए खुली है।
सेवा, रोहिदास, सुदामा जैसे भक्तों ने सादगी और निष्ठा से प्रभु को पाया। भिल्लणी के बेर और सुदामा के चावल प्रभु को उतने ही प्रिय थे, जितना कोई समृद्ध भेंट। यह भाव संत की वाणी की तरह निर्मल है, जो कहती है कि प्रभु को केवल श्रद्धा और प्रेम अर्पित करना काफी है।
त्रिलोचन और विदुर जैसे भक्तों ने सांसारिक जीवन में रहकर भी प्रभु को हृदय में बसाया। उनकी सादगी और भक्ति इस सत्य को रेखांकित करती है कि प्रभु का नाम हर परिस्थिति में गाया जा सकता है। धर्मगुरु की यह शिक्षा हृदय में बसती है कि सच्चा भक्त वही है, जो हर कर्म को प्रभु को समर्पित करता है।
ध्रुव, प्रह्लाद और विभीषण की भक्ति असंभव को संभव करने की शक्ति रखती है। उनका जीवन इस विश्वास को बल देता है कि प्रभु की कृपा से कोई भी बाधा पार की जा सकती है। मीराबाई का प्रभु गिरधर नागर ज्योति में ज्योति मिलाने वाला है, जो भक्त के हृदय को प्रकाश से भर देता है। यह उद्गार संत, चिंतक और धर्मगुरु के विचारों का संगम है, जो कहता है कि साधु संगति और भक्ति ही जीवन का परम सत्य है।