शाम बतावरे मुरलीवाला भजन
शाम बतावरे मुरलीवाला भजन
शाम बतावरे मुरलीवाला॥टेक॥मोर मुगुट पीताबंर शोभे। भाल तिलक गले मोहनमाला॥१॥
एक बन धुंडे सब बन धुंडे। काहां न पायो नंदलाला॥२॥
जोगन होऊंगी बैरागन होऊंगी। गले बीच वाऊंगी मृगछाला॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। माग लीयो प्रीयां प्रेमको माला॥४॥
यह सुन्दर भजन शुद्ध प्रेम और अनन्य भक्ति की गहराइयों को दर्शाता है। श्रीकृष्णजी की मधुर छवि—मोर मुकुट, पीतांबर, भाल तिलक, और मनमोहक माला—हर भक्त के हृदय में प्रेम और श्रद्धा का सागर प्रवाहित कर देती है।
भक्त अपने प्रभु को हर दिशा में खोजता है, समस्त वनों और स्थलों में उनकी अनुपस्थिति उसे व्याकुल कर देती है। इस खोज में भक्ति का उत्कर्ष प्रकट होता है—जब हर दिशा में खोजने के बाद भी प्रियतम न मिलें, तो यह अहसास होता है कि वे तो हृदय में ही विराजमान हैं।
त्याग और समर्पण की भावना स्पष्ट होती है। जब सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर भक्त वैरागिनी बन जाता है, तो वह श्रीकृष्णजी के प्रेम में पूर्ण रूप से विलीन हो जाता है। मोह-माया का त्याग और उनके चरणों में आत्मसमर्पण ही सच्चा संतोष देता है।
मीराबाई की भक्ति इस भाव का सर्वोत्तम उदाहरण है। उन्होंने अपने प्रियतम श्रीकृष्णजी के प्रेम की माला माँग ली—जिसका अर्थ सांसारिक इच्छाओं और सीमाओं से परे, केवल परम प्रेम की अनुभूति में स्वयं को समर्पित कर देना है। यह भजन प्रेम और भक्ति का गहन संदेश देता है, जहाँ ईश्वर के प्रति निष्ठा और आत्मा की पवित्रता ही जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि है।
भक्त अपने प्रभु को हर दिशा में खोजता है, समस्त वनों और स्थलों में उनकी अनुपस्थिति उसे व्याकुल कर देती है। इस खोज में भक्ति का उत्कर्ष प्रकट होता है—जब हर दिशा में खोजने के बाद भी प्रियतम न मिलें, तो यह अहसास होता है कि वे तो हृदय में ही विराजमान हैं।
त्याग और समर्पण की भावना स्पष्ट होती है। जब सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर भक्त वैरागिनी बन जाता है, तो वह श्रीकृष्णजी के प्रेम में पूर्ण रूप से विलीन हो जाता है। मोह-माया का त्याग और उनके चरणों में आत्मसमर्पण ही सच्चा संतोष देता है।
मीराबाई की भक्ति इस भाव का सर्वोत्तम उदाहरण है। उन्होंने अपने प्रियतम श्रीकृष्णजी के प्रेम की माला माँग ली—जिसका अर्थ सांसारिक इच्छाओं और सीमाओं से परे, केवल परम प्रेम की अनुभूति में स्वयं को समर्पित कर देना है। यह भजन प्रेम और भक्ति का गहन संदेश देता है, जहाँ ईश्वर के प्रति निष्ठा और आत्मा की पवित्रता ही जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि है।