सजन सुध ज्यूँ जाणे त्यूँ लीजै हो भजन
सजन सुध ज्यूँ जाणे त्यूँ लीजै हो भजन
सजन सुध ज्यूँ जाणे त्यूँ लीजै हो।।टेक।।तुम बिन मोरे अवर न कोई, क्रिपा रावरी कीजै हो।
दिन नहिं भूख रैण नहिं निंदरा, यूँ तन पलपल छीजै हो।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, मिल बिछड़न मत कीजै हो।।
(अवर=और, रावरी=अपनी, छीजे हो=क्षीण होता जाता है)
सुंदर भजन में श्रीकृष्णजी के प्रति गहन प्रेम और विरह की व्याकुलता का उद्गार हृदय को छू लेता है। जैसे प्यासा हिरण जलाशय की खोज में भटकता है, वैसे ही भक्त का मन प्रभु के दर्शन को तरसता है। यह भाव धर्मज्ञान की उस सीख को प्रदर्शित करता है कि प्रभु ही आत्मा का एकमात्र सहारा है।
प्रभु के बिना जीवन सूना है, न दिन में भूख सताती है, न रात में नींद आती है। यह विरह तन-मन को क्षीण करता है, जैसे बिना पानी के पौधा मुरझा जाता है। यह चिंतन की गहराई से उपजता है, जो मानता है कि प्रभु का प्रेम ही जीवन की सच्ची शक्ति है।
मीराबाई का हृदय श्रीकृष्णजी की कृपा के लिए प्रार्थना करता है, क्योंकि उनके बिना कोई और नहीं। यह प्रेम इतना गहन है कि हर सांस प्रभु के नाम से बंधी है। यह उद्गार संत की वाणी की तरह निर्मल है, जो कहती है कि प्रभु की शरण में ही सच्चा सुख है।
प्रभु से बिछड़ने का दुख असहनीय है, और भक्त उनकी निकटता की याचना करता है। जैसे नदी सागर से मिलने को व्याकुल रहती है, वैसे ही आत्मा प्रभु से एकाकार होने को आतुर है। धर्मगुरु की यह शिक्षा हृदय में बसती है कि प्रभु का सान्निध्य ही हर दुख को मिटा देता है।
गिरधर नागर के प्रति यह प्रेम और विश्वास भक्त के हृदय को दृढ़ करता है। यह भाव संत, चिंतक और धर्मगुरु के विचारों का संगम है, जो कहता है कि प्रभु के प्रति अटूट भक्ति ही जीवन का परम लक्ष्य है।
प्रभु के बिना जीवन सूना है, न दिन में भूख सताती है, न रात में नींद आती है। यह विरह तन-मन को क्षीण करता है, जैसे बिना पानी के पौधा मुरझा जाता है। यह चिंतन की गहराई से उपजता है, जो मानता है कि प्रभु का प्रेम ही जीवन की सच्ची शक्ति है।
मीराबाई का हृदय श्रीकृष्णजी की कृपा के लिए प्रार्थना करता है, क्योंकि उनके बिना कोई और नहीं। यह प्रेम इतना गहन है कि हर सांस प्रभु के नाम से बंधी है। यह उद्गार संत की वाणी की तरह निर्मल है, जो कहती है कि प्रभु की शरण में ही सच्चा सुख है।
प्रभु से बिछड़ने का दुख असहनीय है, और भक्त उनकी निकटता की याचना करता है। जैसे नदी सागर से मिलने को व्याकुल रहती है, वैसे ही आत्मा प्रभु से एकाकार होने को आतुर है। धर्मगुरु की यह शिक्षा हृदय में बसती है कि प्रभु का सान्निध्य ही हर दुख को मिटा देता है।
गिरधर नागर के प्रति यह प्रेम और विश्वास भक्त के हृदय को दृढ़ करता है। यह भाव संत, चिंतक और धर्मगुरु के विचारों का संगम है, जो कहता है कि प्रभु के प्रति अटूट भक्ति ही जीवन का परम लक्ष्य है।
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Author - Saroj Jangir
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