सांवरो रंग मिनोरे भजन

सांवरो रंग मिनोरे भजन

सांवरो रंग मिनोरे। सांवरो रंग मिनोरे॥टेक॥
चांदनीमें उभा बिहारी महाराज॥१॥
काथो चुनो लविंग सोपारी। पानपें कछु दिनों॥२॥
हमारो सुख अति दुःख लागे। कुबजाकूं सुख कीनो॥३॥
मेरे अंगन रुख कदमको। त्यांतल उभो अति चिनो॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। नैननमें कछु लीनो॥५॥
 
मीराबाई का भजन "सांवरो नन्द नन्दन, दीठ पड्याँ माई" उनके श्रीकृष्ण के प्रति गहरे प्रेम और भक्ति को व्यक्त करता है। इस भजन में मीराबाई श्रीकृष्ण की सुंदरता का वर्णन करती हैं, जो उनके हृदय में बसी हुई है। वह कहती हैं कि श्रीकृष्ण का ध्यान उनके मन और प्राणों में निरंतर बसा हुआ है।

सुन्दर भजन में श्रीकृष्ण की मोहक छवि और उनकी आध्यात्मिक आभा का मनोहारी वर्णन किया गया है। जब भक्त उनके सौंदर्य का दर्शन करता है, तो उसका मन उनकी दिव्यता में पूरी तरह विलीन हो जाता है। उनके सांवले स्वरूप में प्रेम और करुणा की गहनता समाहित है, जो भक्त के अंतर्मन को पूरी तरह से आह्लादित कर देती है।

प्रभु के सानिध्य में न केवल प्रेम की अनुभूति होती है, बल्कि जीवन के सुख-दुःख भी नए अर्थ प्राप्त करते हैं। जो संसार में कठिनाइयों से जूझते हैं, वे श्रीकृष्ण की कृपा से आनंदित हो जाते हैं। उनकी उपस्थिति मात्र से जीवन की समस्त पीड़ा दूर हो जाती है, और भक्ति का रस निरंतर प्रवाहित होने लगता है।

प्रभु का प्रेम ऐसा है, जो भक्ति को रूपांतरित कर देता है। जब कोई उन्हें पूर्ण रूप से अपने हृदय में समाहित कर लेता है, तब उसकी दृष्टि भी बदल जाती है—हर स्थान, हर वस्तु में वही दिव्य प्रेम दृष्टिगोचर होता है। सुन्दर भजन में यही भाव प्रवाहित होता है, जहाँ श्रीकृष्ण का प्रेम न केवल आंखों के दर्शन में, बल्कि आत्मा की गहराइयों तक व्याप्त हो जाता है।

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