हमे कैशी घोर उतारो मीरा लिरिक्स

हमे कैशी घोर उतारो मीरा भजन

हमे कैशी घोर उतारो। द्रग आंजन सबही धोडावे।
माथे तिलक बनावे पेहरो चोलावे॥१॥
हमारो कह्यो सुनो बिष लाग्यो। उनके जाय भवन रस चाख्यो।
उवासे हिलमिल रहना हासना बोलना॥२॥
जमुनाके तट धेनु चरावे। बन्सीमें कछु आचरज गावे।
मीठी राग सुनावे बोले बोलना॥३॥
हामारी प्रीत तुम संग लागी। लोकलाज कुलकी सब त्यागी।
मीराके प्रभु गिरिधारी बन बन डोलना॥४॥
 
यह भजन भगवान श्री कृष्ण के प्रति गहरी भक्ति और प्रेम को व्यक्त करता है। पहले शेर में, भक्त भगवान से अपने कष्टों और अडचनों को दूर करने की प्रार्थना करता है। वह भगवान से अपनी आँखों में तिलक लगाने, चोला पहनाने और उन्हें आशीर्वाद देने की कामना करता है। दूसरे शेर में, भक्त यह बताता है कि उसने सांसारिक विषादों को महसूस किया है, लेकिन भगवान की संगति में उसे जीवन की सच्ची मिठास और आनंद प्राप्त हुआ है। तीसरे शेर में, भक्त श्री कृष्ण की कल्पना करता है कि वह यमुनाजी के तट पर गायों को चराते हुए बांसुरी बजा रहे हैं, जिनकी ध्वनि सबको मोह लेती है और हर किसी के दिल में प्रेम भर देती है। चौथे शेर में, भक्त कहता है कि उसकी प्रीति केवल भगवान के साथ है, वह समाज और कुल की मर्यादाओं को छोड़कर केवल श्री कृष्ण के साथ ही अपना जीवन बिताना चाहता है। इस प्रकार, यह भजन भगवान के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम को व्यक्त करता है, जो एक भक्त के दिल में जीवन की सच्ची शांति और आनंद का स्रोत है।
 
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