सुमन आयो बदरा भजन

सुमन आयो बदरा भजन

सुमन आयो बदरा। श्यामबिना सुमन आयो बदरा॥टेक॥
सोबत सपनमों देखत शामकू। भरायो नयन निकल गयो कचरा॥१॥
मथुरा नगरकी चतुरा मालन। शामकू हार हमकू गजरा॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। समय गयो पिछे मीट गया झगरा॥३॥

मीराबाई का भजन "सुमन आयो बदरा" उनके श्रीकृष्ण के प्रति गहरे प्रेम और भक्ति को व्यक्त करता है। इस भजन में मीराबाई अपने प्रिय श्रीकृष्ण के बिना अपने जीवन की कठिनाईयों का वर्णन करती हैं। वह कहती हैं कि उनके बिना उनका जीवन अधूरा है और वह उनके बिना कहीं भी नहीं जा सकतीं।
 

सुन्दर भजन में प्रेम, भक्ति और आत्मसमर्पण की गहरी अनुभूति है। श्रीकृष्ण के बिना, जीवन शुष्क और असहाय प्रतीत होता है। मन उनके दर्शन के लिए व्याकुल रहता है, और यह प्रतीक्षा कभी-कभी स्वप्न में उनके साक्षात्कार तक पहुँच जाती है।

भाव में एक सजीव चित्रण है, जहाँ प्रकृति भी विरह के संग विलीन होती दिखती है। बादल आते हैं, सुमन खिलते हैं, परंतु श्रीकृष्ण की अनुपस्थिति हर सुंदरता को फीका बना देती है।

एक आत्मिक अनुभव प्रकट होता है—मथुरा की गलियों में घूमती मालन से पुष्प और हार लेकर भी मन की तृष्णा शांत नहीं होती, क्योंकि वास्तविक आनंद तो श्रीकृष्ण के सानिध्य में ही है।

समय के प्रवाह में पूर्व के विग्रह और संघर्ष मिट जाते हैं, और भक्ति का रस शुद्ध होकर प्रभु के प्रेम में विलीन हो जाता है। जब मन संपूर्ण रूप से श्रीकृष्ण को समर्पित हो जाता है, तो सारे बंधन स्वतः समाप्त हो जाते हैं और केवल प्रेम और भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित होती है।
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