सखी म्हांरो कानूडो कलेजे की कोर
सखी म्हांरो कानूडो कलेजे की कोर
सखी म्हांरो कानूडो कलेजे की कोर।।टेक।।मोर मुगट पीताम्बर सोहै, कुण्डल की झकझोर।
बिन्द्रावन की कुँज गलिन में, नाचत नन्द किसोर।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, चरण कँवल चितचोर।।
(कानूडो=कान्ह,श्रीकृष्ण, कलेजे की कोर=हृदय का टुकड़ा,अत्याधिक प्यारा, झकझोर=हिलना-डुलना, चितचोर=मन को चुराने वाला)
सुंदर भजन में श्रीकृष्णजी के प्रति प्रगाढ़ प्रेम और उनके रमणीय रूप की छवि का उद्गार हृदय को रिझा लेता है। जैसे कमल सूर्य की किरणों में खिल उठता है, वैसे ही भक्त का मन प्रभु के दर्शन की कल्पना में मगन हो जाता है। यह भाव धर्मज्ञान की उस शिक्षा को प्रदर्शित करता है कि प्रभु का स्मरण ही आत्मा का सच्चा आनंद है।
मोर मुकुट और पीतांबर में सजा श्रीकृष्णजी का रूप मन को मोह लेता है। उनके कुंडलों की झलक और वृंदावन की कुञ्जों में नाचता नंदकिशोर का स्वरूप हृदय में बस जाता है, जैसे चंद्रमा की चांदनी रात को रोशन करती है। यह चिंतन की गहराई से उपजता है, जो मानता है कि प्रभु की लीलाएँ हृदय का सबसे अनमोल खजाना हैं।
प्रभु के चरण कमल चित्त को चुरा लेते हैं, और उनका प्रेम हृदय का सबसे प्यारा अंश बन जाता है। यह प्रेम इतना गहन है कि वह हर सांस के साथ और गहरा होता जाता है। यह उद्गार संत की वाणी की तरह निर्मल है, जो कहती है कि प्रभु का नाम ही जीवन का सबसे मधुर राग है।
मीराबाई का हृदय गिरधर नागर के रंग में रंगा है, जो हर पल उनकी लीलाओं में खोया रहता है। यह भाव धर्मगुरु की उस सीख को रेखांकित करता है कि प्रभु के प्रति प्रेम ही सच्ची भक्ति का मूल है।
श्रीकृष्णजी का यह रमणीय रूप और उनके प्रति अटूट प्रेम भक्त के हृदय को सदा रससिक्त रखता है। यह भाव संत, चिंतक और धर्मगुरु के विचारों का संगम है, जो कहता है कि प्रभु के प्रेम में डूबना ही जीवन का परम सुख है।