नैना लोभी रे बहुरि सके नहिं आय
नैना लोभी रे बहुरि सके नहिं आय लिरिक्स
नैना लोभी रे बहुरि सके नहिं आय
नैना लोभी रे बहुरि सके नहिं आय ।।टेक।।
रोम रोम नख सिख सब निरखत, ललकि रहै ललचाय।
मैं ठाढी गृह आपणे सै, मोहन निकसे आय।।
बदन चन्द परकातत हेली, मन्द मनद मुसकाय।
लोग कुटुम्बी बरजि बरजहीं, मानस पर हाथ गये बिकाय।
भली कहो कोई बुरी कहो, मैं सब लई सीस चढ़ाय।
मीराँ प्रभु गिरधर लाल बिनु, पल भर रह्यौ न जाय।।
(बहुरि=फिर, हेली=सखी, सब लई सीस चढ़ाय= शिरोधार्य कर लिया,स्वीकार कर लिया)
नैना लोभी रे बहुरि सके नहिं आय ।।टेक।।
रोम रोम नख सिख सब निरखत, ललकि रहै ललचाय।
मैं ठाढी गृह आपणे सै, मोहन निकसे आय।।
बदन चन्द परकातत हेली, मन्द मनद मुसकाय।
लोग कुटुम्बी बरजि बरजहीं, मानस पर हाथ गये बिकाय।
भली कहो कोई बुरी कहो, मैं सब लई सीस चढ़ाय।
मीराँ प्रभु गिरधर लाल बिनु, पल भर रह्यौ न जाय।।
(बहुरि=फिर, हेली=सखी, सब लई सीस चढ़ाय= शिरोधार्य कर लिया,स्वीकार कर लिया)
प्रभु के प्रति मन की लालसा इतनी गहरी है कि आँखें उनकी छवि देखकर फिर कहीं और नहीं ठहरतीं। रोम-रोम और नख-शिख से उन्हें निहारना, वह प्रेम है, जो मन को ललचाता और बेकरार रखता है। घर में खड़े-खड़े मोहन के आने की राह देखना, वह तड़प है, जो हर पल उन्हें पास बुलाती है।
उनका चाँद-सा मुख और मंद मुस्कान, वह सौंदर्य है, जो हृदय को बाँध लेता है। संसार के लोग और कुटुंब रोकें, पर मन प्रभु के लिए बिक चुका है। कोई भला कहे या बुरा, सब स्वीकार है, क्योंकि प्रभु के बिना पल भर भी चैन नहीं।
गिरधर की भक्ति वह ठिकाना है, जो हर सांस को उनके रंग में रंग देता है। मन को उनके चरणों में अर्पित करो, क्योंकि उनकी कृपा ही वह सुख है, जो आत्मा को सदा तृप्त करती है।
उनका चाँद-सा मुख और मंद मुस्कान, वह सौंदर्य है, जो हृदय को बाँध लेता है। संसार के लोग और कुटुंब रोकें, पर मन प्रभु के लिए बिक चुका है। कोई भला कहे या बुरा, सब स्वीकार है, क्योंकि प्रभु के बिना पल भर भी चैन नहीं।
गिरधर की भक्ति वह ठिकाना है, जो हर सांस को उनके रंग में रंग देता है। मन को उनके चरणों में अर्पित करो, क्योंकि उनकी कृपा ही वह सुख है, जो आत्मा को सदा तृप्त करती है।
नहिं भावै थांरो देसड़लो जी रंगरूड़ो॥
थांरा देसा में राणा साध नहीं छै, लोग बसे सब कूड़ो।
गहणा गांठी राणा हम सब त्यागा, त्याग्यो कररो चूड़ो॥
काजल टीकी हम सब त्याग्या, त्याग्यो है बांधन जूड़ो।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर बर पायो छै रूड़ो॥
नही जाऊंरे जमुना पाणीडा, मार्गमां नंदलाल मळे॥ध्रु०॥
नंदजीनो बालो आन न माने। कामण गारो जोई चितडूं चळे॥१॥
अमे आहिउडां सघळीं सुवाळां। कठण कठण कानुडो मळ्यो॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। गोपीने कानुडो लाग्यो नळ्यो॥३॥
नही तोरी बलजोरी राधे॥ध्रु०॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे। छीन लीई बांसरी॥१॥
सब गोपन हस खेलत बैठे। तुम कहत करी चोरी॥२॥
हम नही अब तुमारे घरनकू। तुम बहुत लबारीरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलिहारीरे॥४॥
थांरा देसा में राणा साध नहीं छै, लोग बसे सब कूड़ो।
गहणा गांठी राणा हम सब त्यागा, त्याग्यो कररो चूड़ो॥
काजल टीकी हम सब त्याग्या, त्याग्यो है बांधन जूड़ो।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर बर पायो छै रूड़ो॥
नही जाऊंरे जमुना पाणीडा, मार्गमां नंदलाल मळे॥ध्रु०॥
नंदजीनो बालो आन न माने। कामण गारो जोई चितडूं चळे॥१॥
अमे आहिउडां सघळीं सुवाळां। कठण कठण कानुडो मळ्यो॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। गोपीने कानुडो लाग्यो नळ्यो॥३॥
नही तोरी बलजोरी राधे॥ध्रु०॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे। छीन लीई बांसरी॥१॥
सब गोपन हस खेलत बैठे। तुम कहत करी चोरी॥२॥
हम नही अब तुमारे घरनकू। तुम बहुत लबारीरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलिहारीरे॥४॥