नहिं एसो जनम बारंबार॥ का जानूं कछु पुन्य प्रगटे मानुसा-अवतार। बढ़त छिन-छिन घटत पल-पल जात न लागे बार॥ बिरछ के ज्यूं पात टूटे, लगें नहीं पुनि डार। भौसागर अति जोर कहिये अनंत ऊंड़ी धार॥ रामनाम का बांध बेड़ा उतर परले पार। ज्ञान चोसर मंडा चोहटे सुरत पासा सार॥ साधु संत महंत ग्यानी करत चलत पुकार। दासि मीरा लाल गिरधर जीवणा दिन च्यार॥