नैना निपट बंकट छबि अटके भजन
नैना निपट बंकट छबि अटके भजन
नैना निपट बंकट छबि अटके
नैना निपट बंकट छबि अटके।
देखत रूप मदनमोहन को, पियत पियूख न मटके।
बारिज भवाँ अलक टेढी मनौ, अति सुगंध रस अटके॥
टेढी कटि, टेढी कर मुरली, टेढी पाग लट लटके।
'मीरा प्रभु के रूप लुभानी, गिरिधर नागर नट के॥
नैना निपट बंकट छबि अटके।
देखत रूप मदनमोहन को, पियत पियूख न मटके।
बारिज भवाँ अलक टेढी मनौ, अति सुगंध रस अटके॥
टेढी कटि, टेढी कर मुरली, टेढी पाग लट लटके।
'मीरा प्रभु के रूप लुभानी, गिरिधर नागर नट के॥
(निपट=नितान्त,पूर्ण रूप से, बँकट=वक्र,टेढ़े, छब=छबि,शोभा, पियूख=पीयूष,अमृत, न मटके= चलायमान नहीं हुए, बारिज=कमल, करि=हाथ, लर=मोतियों लड़,लड़ी)
मन मोहन के रूप में डूब जाता है, जैसे कमल का फूल सूरज की किरणों में खो जाता है। उसकी टेढ़ी-मेढ़ी अलकों में मन अटक जाता है, मानो कोई सुगंधित बगीचे में भटक जाए। उसकी मुरली की टेढ़ी तान, टेढ़ी कटि और पग की लटकती लटें, सब एक नट की तरह नचाती हैं, जो संसार को अपने रंग में रंग देता है। यह रूप इतना लुभावना है कि नजर हटती ही नहीं, जैसे प्यासा अमृत पीकर भी तृप्त न हो। प्रेम की यह डोर ऐसी है कि मन गिरधर के चरणों में बंध जाता है, और हर धड़कन में बस वही बसता है। जो इस रूप को देख ले, उसका मन कहीं और ठहरता ही नहीं।
रूप की अप्रतिम छटा और उसकी मोहकता जब ऐसे गहरे अनुग्रह के साथ मन को बांध ले, तब वह केवल देखने भर की वस्तु नहीं रह जाती। यह एक आध्यात्मिक अनुभव होता है, जहाँ रूप में समाहित करुणा, प्रेम, और दिव्यता के संगम को देखा जाता है। कमल के फूल जैसा सूक्ष्म और मधुर सौंदर्य, टेढ़ी-मेढ़ी अलकों की मोहक छवि और मधुर मुरली की तान एक ऐसे संगीत की तरह है जो आत्मा को झंकृत कर देता है। यह प्रेम की डोर गिरधर के चरणों में बंधने की अभिव्यक्ति है, जो मन को हर क्षण उसी में स्थिर कर देती है। उसका मन किसी अन्य ओर टिक नहीं पाता, क्योंकि इस रूप में समाहित अनमोल प्रेम और सुंदरता की हर झलक आत्मा को आकर्षित करती है।
देखत राम हंसे सुदामाकूं देखत राम हंसे॥
फाटी तो फूलडियां पांव उभाणे चरण घसे।
बालपणेका मिंत सुदामां अब क्यूं दूर बसे॥
कहा भावजने भेंट पठाई तांदुल तीन पसे।
कित गई प्रभु मोरी टूटी टपरिया हीरा मोती लाल कसे॥
कित गई प्रभु मोरी गउअन बछिया द्वारा बिच हसती फसे।
मीराके प्रभु हरि अबिनासी सरणे तोरे बसे॥
फाटी तो फूलडियां पांव उभाणे चरण घसे।
बालपणेका मिंत सुदामां अब क्यूं दूर बसे॥
कहा भावजने भेंट पठाई तांदुल तीन पसे।
कित गई प्रभु मोरी टूटी टपरिया हीरा मोती लाल कसे॥
कित गई प्रभु मोरी गउअन बछिया द्वारा बिच हसती फसे।
मीराके प्रभु हरि अबिनासी सरणे तोरे बसे॥
एक ओर है सुदामा, जो अपनी हृषीकेश्वर मित्रता और गरीबी के बावजूद कृष्ण से मिलने की असमय जागी इच्छा लिए अपने दिल में गहरे प्रेम के साथ खड़ा है। उसके फटे जूते, नंगे पैर और वह विह्वल अवस्था दर्शाती है कि जीवन की कठिनाइयों और परास्तियों के बीच भी उसका प्रेम और भरोसा स्थिर बना हुआ है। दूसरी ओर कृष्ण, जो अपने मित्र की गरिमा और उसका प्रेम समझते हुए अपार करुणा के साथ उसे गले लगाते हैं, स्वाभिमान और संबोधन की परवाह किए बिना। यह मिलन भौतिक संपन्नता की तुलना में आध्यात्मिक प्रेम की अनमोलता को उद्घाटित करता है।
सुदामा की यात्रा केवल एक भौतिक मिलन नहीं, बल्कि आत्मा के अंतर्निहित प्रेम और श्रद्धा का प्रतिफल है। कृष्ण द्वारा उसकी दीनता को स्वीकार करके उनके बीच बनी मित्रता का सौंदर्य जगत के समक्ष यह संदेश देता है कि प्रेम और भक्ति सामाजिक और आर्थिक सीमाओं से ऊपर उठ जाती है। सुदामा का कृष्ण के चरणों में जाना, उनके लिए पावन आश्रय की भांति है, जहाँ प्रेमपूर्ण मिलन हर प्रकार के भौतिक अभाव और सामाजिक भेदभाव को मूर्छित करता है। यह कथा उस सच्ची मित्रता और भक्ति का प्रतीक है, जो आत्मा को त्राण देने वाली प्राकृतिक शक्ति बन जाती है, और जहाँ सच्चे प्रेम का मूल्य धन-दौलत से कहीं अधिक ऊँचा होता है।
सुदामा की यात्रा केवल एक भौतिक मिलन नहीं, बल्कि आत्मा के अंतर्निहित प्रेम और श्रद्धा का प्रतिफल है। कृष्ण द्वारा उसकी दीनता को स्वीकार करके उनके बीच बनी मित्रता का सौंदर्य जगत के समक्ष यह संदेश देता है कि प्रेम और भक्ति सामाजिक और आर्थिक सीमाओं से ऊपर उठ जाती है। सुदामा का कृष्ण के चरणों में जाना, उनके लिए पावन आश्रय की भांति है, जहाँ प्रेमपूर्ण मिलन हर प्रकार के भौतिक अभाव और सामाजिक भेदभाव को मूर्छित करता है। यह कथा उस सच्ची मित्रता और भक्ति का प्रतीक है, जो आत्मा को त्राण देने वाली प्राकृतिक शक्ति बन जाती है, और जहाँ सच्चे प्रेम का मूल्य धन-दौलत से कहीं अधिक ऊँचा होता है।
देखोरे देखो जसवदा मैय्या तेरा लालना, तेरा लालना मैय्यां झुले पालना॥ध्रु०॥
बाहार देखे तो बारारे बरसकु। भितर देखे मैय्यां झुले पालना॥१॥
जमुना जल राधा भरनेकू निकली। परकर जोबन मैय्यां तेरा लालना॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। हरिका भजन नीत करना॥ मैय्यां०॥३॥
नहिं एसो जनम बारंबार॥
का जानूं कछु पुन्य प्रगटे मानुसा-अवतार।
बढ़त छिन-छिन घटत पल-पल जात न लागे बार॥
बिरछ के ज्यूं पात टूटे, लगें नहीं पुनि डार।
भौसागर अति जोर कहिये अनंत ऊंड़ी धार॥
रामनाम का बांध बेड़ा उतर परले पार।
ज्ञान चोसर मंडा चोहटे सुरत पासा सार॥
साधु संत महंत ग्यानी करत चलत पुकार।
दासि मीरा लाल गिरधर जीवणा दिन च्यार॥
बाहार देखे तो बारारे बरसकु। भितर देखे मैय्यां झुले पालना॥१॥
जमुना जल राधा भरनेकू निकली। परकर जोबन मैय्यां तेरा लालना॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। हरिका भजन नीत करना॥ मैय्यां०॥३॥
नहिं एसो जनम बारंबार॥
का जानूं कछु पुन्य प्रगटे मानुसा-अवतार।
बढ़त छिन-छिन घटत पल-पल जात न लागे बार॥
बिरछ के ज्यूं पात टूटे, लगें नहीं पुनि डार।
भौसागर अति जोर कहिये अनंत ऊंड़ी धार॥
रामनाम का बांध बेड़ा उतर परले पार।
ज्ञान चोसर मंडा चोहटे सुरत पासा सार॥
साधु संत महंत ग्यानी करत चलत पुकार।
दासि मीरा लाल गिरधर जीवणा दिन च्यार॥
नैना निपट बंकट छबि अटके | मीरा बाई का रसरंग भजन | Krishna Bhajan with Lyrics | Kavita
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