प्रेमनी प्रेमनी प्रेमनी रे मन
प्रेमनी प्रेमनी प्रेमनी रे मन
प्रेमनी प्रेमनी प्रेमनी रे, मन
प्रेमनी प्रेमनी प्रेमनी रे, मने लागी कटारी प्रेमनी।।टेक।।
जल जुमनामां भरवा गयाँताँ हती नागर माथे हेमनी रे।
काचे तें तातणे हरिजीए बाँधी, जेम खेंचे तेम तेमनी रे।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, शामली सुरत शुभ गमनी रे।।
प्रेमनी प्रेमनी प्रेमनी रे, मने लागी कटारी प्रेमनी।।टेक।।
जल जुमनामां भरवा गयाँताँ हती नागर माथे हेमनी रे।
काचे तें तातणे हरिजीए बाँधी, जेम खेंचे तेम तेमनी रे।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, शामली सुरत शुभ गमनी रे।।
(प्रेमनी=प्रेम की, मने=मुझे,मेरे हृदय में, भरण गयाँताँ= भरने गई थी, हती=थी, हेमनी=सोने की, काचेते तातणे= कच्चे धागे से,प्रेम बन्धन द्वारा, जेम=जिस प्रकार जैसे, तेम तेमनी=उसी प्रकार, शामली=साँवरी, शुभ=मनोहर, गमनी=ऐसे ही है)
प्रेम की कटारी हृदय में चुभ गई है, जो मन को प्रभु के रंग में रंग देती है। यमुना में जल भरने गई, तो नागर की सोने-सी छवि ने मन मोह लिया। उन्होंने कच्चे धागे-से प्रेम के बंधन से बांध लिया, जो जितना खींचे, उतना ही गहरा होता है। मीरां का मन गिरधर की सांवली, मनोहर सूरत में डूबा है, जो शुभ और प्रेममय है। यह भक्ति का वह प्रेम है, जो आत्मा को प्रभु के साथ एक अटूट बंधन में बांध देता है।
जमुनाजीको तीर दधी बेचन जावूं॥ध्रु०॥
येक तो घागर सिरपर भारी दुजा सागर दूर॥१॥
कैसी दधी बेचन जावूं एक तो कन्हैया हटेला दुजा मखान चोर॥ कैसा०॥२॥
येक तो ननंद हटेली दुजा ससरा नादान॥३॥
है मीरा दरसनकुं प्यासी। दरसन दिजोरे महाराज॥४॥
जमुनामों कैशी जाऊं मोरे सैया। बीच खडा तोरो लाल कन्हैया॥ध्रु०॥
ब्रिदाबनके मथुरा नगरी पाणी भरणा। कैशी जाऊं मोरे सैंया॥१॥
हातमों मोरे चूडा भरा है। कंगण लेहेरा देत मोरे सैया॥२॥
दधी मेरा खाया मटकी फोरी। अब कैशी बुरी बात बोलु मोरे सैया॥३॥
शिरपर घडा घडेपर झारी। पतली कमर लचकया सैया॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलजाऊ मोरे सैया॥५॥
जल कैशी भरुं जमुना भयेरी॥ध्रु०॥
खडी भरुं तो कृष्ण दिखत है। बैठ भरुं तो भीजे चुनडी॥१॥
मोर मुगुटअ पीतांबर शोभे। छुम छुम बाजत मुरली॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चणरकमलकी मैं जेरी॥३॥
जल भरन कैशी जाऊंरे। जशोदा जल भरन॥ध्रु०॥
वाटेने घाटे पाणी मागे मारग मैं कैशी पाऊं॥ज० १॥
आलीकोर गंगा पलीकोर जमुना। बिचमें सरस्वतीमें नहावूं॥ज० २॥
ब्रिंदावनमें रास रच्चा है। नृत्य करत मन भावूं॥ज० ३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हेते हरिगुण गाऊं॥ज० ४॥
येक तो घागर सिरपर भारी दुजा सागर दूर॥१॥
कैसी दधी बेचन जावूं एक तो कन्हैया हटेला दुजा मखान चोर॥ कैसा०॥२॥
येक तो ननंद हटेली दुजा ससरा नादान॥३॥
है मीरा दरसनकुं प्यासी। दरसन दिजोरे महाराज॥४॥
जमुनामों कैशी जाऊं मोरे सैया। बीच खडा तोरो लाल कन्हैया॥ध्रु०॥
ब्रिदाबनके मथुरा नगरी पाणी भरणा। कैशी जाऊं मोरे सैंया॥१॥
हातमों मोरे चूडा भरा है। कंगण लेहेरा देत मोरे सैया॥२॥
दधी मेरा खाया मटकी फोरी। अब कैशी बुरी बात बोलु मोरे सैया॥३॥
शिरपर घडा घडेपर झारी। पतली कमर लचकया सैया॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलजाऊ मोरे सैया॥५॥
जल कैशी भरुं जमुना भयेरी॥ध्रु०॥
खडी भरुं तो कृष्ण दिखत है। बैठ भरुं तो भीजे चुनडी॥१॥
मोर मुगुटअ पीतांबर शोभे। छुम छुम बाजत मुरली॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चणरकमलकी मैं जेरी॥३॥
जल भरन कैशी जाऊंरे। जशोदा जल भरन॥ध्रु०॥
वाटेने घाटे पाणी मागे मारग मैं कैशी पाऊं॥ज० १॥
आलीकोर गंगा पलीकोर जमुना। बिचमें सरस्वतीमें नहावूं॥ज० २॥
ब्रिंदावनमें रास रच्चा है। नृत्य करत मन भावूं॥ज० ३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हेते हरिगुण गाऊं॥ज० ४॥