पलक न लागी मेरी स्याम बिना पलक न लागी मेरी स्याम बिना ।।टेक।। हरि बिनु मथुरा ऐसी लागै, शसि बिन रैन अँधेरी। पात पात वृन्दावन ढूंढ्यो, कुँज कुँज ब्रज केरी। ऊँचे खड़े मथुरा नगरी, तले बहै जमना गहरी। मीराँ के प्रभु गिरधरनागर हरि चरणन की चेरी।। (पलक न लागै=नींद नहीं आती, शसि=शशि, चन्द्रमा, ब्रज-केरी=ब्रज के, चेरी=दासी)
--------------------------- जशोदा मैया मै नही दधी खायो॥ध्रु०॥ प्रात समये गौबनके पांछे। मधुबन मोहे पठायो॥१॥ सारे दिन बन्सी बन भटके। तोरे आगे आयो॥२॥ ले ले अपनी लकुटी कमलिया। बहुतही नाच नचायो॥३॥ तुम तो धोठा पावनको छोटा। ये बीज कैसो पायो॥४॥ ग्वाल बाल सब द्वारे ठाडे है। माखन मुख लपटायो॥५॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। जशोमती कंठ लगायो॥६॥