पलक न लागी मेरी स्याम बिना

पलक न लागी मेरी स्याम बिना

पलक न लागी मेरी स्याम बिना
पलक न लागी मेरी स्याम बिना ।।टेक।।
हरि बिनु मथुरा ऐसी लागै, शसि बिन रैन अँधेरी।
पात पात वृन्दावन ढूंढ्यो, कुँज कुँज ब्रज केरी।
ऊँचे खड़े मथुरा नगरी, तले बहै जमना गहरी।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर हरि चरणन की चेरी।।

(पलक न लागै=नींद नहीं आती, शसि=शशि, चन्द्रमा, ब्रज-केरी=ब्रज के, चेरी=दासी)

प्रभु के बिना नींद नहीं आती, जैसे चाँद के बिना रात अंधेरी हो। मथुरा, वृंदावन, और ब्रज की कुँज-कुँज में भटकता मन, हर पात में श्याम को खोजता है, पर उनके बिना सब सूना है। ऊँची मथुरा और गहरी यमुना की शोभा भी फीकी लगती है, जब तक प्रभु का साथ न मिले। यह तड़प उस आत्मा की है, जो हरि के बिना अधूरी है।

प्रभु के चरणों की दासी बनना, वह समर्पण है, जो मन को हर खोज से मुक्त करता है। जैसे नदी सागर में मिलकर पूर्ण होती है, वैसे ही भक्त का हृदय गिरधर की शरण में सुख पाता है। मन को उनके चरणों में अर्पित करो, क्योंकि उनकी कृपा ही वह ठिकाना है, जो हर व्यथा को मिटाकर सदा का आनंद देती है।
 
---------------------------
जशोदा मैया मै नही दधी खायो॥ध्रु०॥
प्रात समये गौबनके पांछे। मधुबन मोहे पठायो॥१॥
सारे दिन बन्सी बन भटके। तोरे आगे आयो॥२॥
ले ले अपनी लकुटी कमलिया। बहुतही नाच नचायो॥३॥
तुम तो धोठा पावनको छोटा। ये बीज कैसो पायो॥४॥
ग्वाल बाल सब द्वारे ठाडे है। माखन मुख लपटायो॥५॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। जशोमती कंठ लगायो॥६॥

जसवदा मैय्यां नित सतावे कनैय्यां, वाकु भुरकर क्या कहुं मैय्यां॥ध्रु०॥
बैल लावे भीतर बांधे। छोर देवता सब गैय्यां॥ जसवदा मैया०॥१॥
सोते बालक आन जगावे। ऐसा धीट कनैय्यां॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। हरि लागुं तोरे पैय्यां॥ जसवदा०॥३॥

जाके मथुरा कान्हांनें घागर फोरी, घागरिया फोरी दुलरी मोरी तोरी॥ध्रु०॥
ऐसी रीत तुज कौन सिकावे। किलन करत बलजोरी॥१॥
सास हठेली नंद चुगेली। दीर देवत मुजे गारी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल चितहारी॥३॥
Next Post Previous Post