प्रभु सों मिलन कैसे होय

प्रभु सों मिलन कैसे होय

प्रभु सों मिलन कैसे होय
प्रभु सों मिलन कैसे होय।।टेक।।
पाँच पहर धन्धे में थीते, तीन पहर रहे सोय।
मानख जनम अमोलक पायो, सोतै सीतै डार्यो खोय।
मीराँ के प्रभु गिरधर भजीये होनी होय सो होय।।
(धन्धे=सांसारिक झगड़े, मानख=मनुष्य, अमोलक=अमूल्य)
 
प्रभु से मिलन की राह में संसार का धंधा और नींद बाधा बनते हैं। दिन के पाँच पहर सांसारिक उलझनों में, और तीन पहर नींद में खो देने से, अमूल्य मानव जन्म व्यर्थ चला जाता है। यह जीवन वह रत्न है, जो अनजाने में माया की ठंडी छाँव में गँवा दिया जाता है।

सच्चा मिलन तब होता है, जब मन गिरधर की भक्ति में रम जाए। जो होना है, वह होकर रहेगा, पर प्रभु का नाम जपना और उनके चरणों में लीन होना, वह मार्ग है, जो आत्मा को मुक्ति देता है। मन को संसार की चिंता छोड़, प्रभु की शरण में लगाओ, क्योंकि उनकी कृपा ही वह ठिकाना है, जो अमूल्य जन्म को सार्थक करता है।
 
जोसीड़ा ने लाख बधाई रे अब घर आये स्याम॥
आज आनंद उमंगि भयो है जीव लहै सुखधाम।
पांच सखी मिलि पीव परसिकैं आनंद ठामूं ठाम॥
बिसरि गयो दुख निरखि पियाकूं, सुफल मनोरथ काम।
मीराके सुखसागर स्वामी भवन गवन कियो राम॥

झुलत राधा संग। गिरिधर झूलत राधा संग॥ध्रु०॥
अबिर गुलालकी धूम मचाई। भर पिचकारी रंग॥ गिरि०॥१॥
लाल भई बिंद्रावन जमुना। केशर चूवत रंग॥ गिरि०॥२॥
नाचत ताल आधार सुरभर। धिमी धिमी बाजे मृदंग॥ गिरि०॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलकू दंग॥ गिरि०॥४॥

छोडो चुनरया छोडो मनमोहन मनमों बिच्यारो॥धृ०॥
नंदाजीके लाल। संग चले गोपाल धेनु चरत चपल।
बीन बाजे रसाल। बंद छोडो॥१॥
काना मागत है दान। गोपी भये रानोरान।
सुनो उनका ग्यान। घबरगया उनका प्रान।
चिर छोडो॥२॥
मीरा कहे मुरारी। लाज रखो मेरी।
पग लागो तोरी। अब तुम बिहारी।
चिर छोडो॥३॥ 
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