आज मारे साधुजननो संगरे राणा मीरा बाई पदावली

आज मारे साधुजननो संगरे राणा मीरा बाई पदावली

आज मारे साधुजननो संगरे राणा
आज मारे साधुजननो संग रे राणा। मारा भाग्ये मळ्यो॥टेक॥
साधुजननो संग जो करीये पियाजी चडे चोगणो रंग रे॥१॥
सीकुटीजननो संग न करीये पियाजी पड़े भजनमां भंगरे॥२॥
अडसट तीर्थ संतोनें चरणें पियाजी कोटी काशी ने कोटी गंगरे॥३॥
निंदा करसे ते तो नर्क कुंडमां जासे पियाजी थशे आंधळा अपंगरे॥४॥
मीरा कहे गिरिधरना गुन गावे पियाजी संतोनी रजमां शीर संगरे॥५॥


(जननो=जनों का, चौगुणो=चार गुना बहुत अधिक, साकत=शक्ति सम्प्रदाय के अनुयायी,ये लोग दुर्गा, काली आदि देवियों की उपासना करते हैं। ये प्रायः वाममार्गी होते हैं और अपने सम्प्रदाय में विहित मद्य, मांस आदि का सेवन करते हैं। नारी को ये लोग शक्ति का प्रतीक मानते हैं तथा उसकी पूजा एवं सेवा में रत रहते हैं, संतो नें चरणों=सन्तों के चरणों में ही, करसे=करेगा, आंधला=अन्धा, अपंग= अंगरहित, लूला, रज=धूल)
 
साधुजनों का संग जीवन को उज्ज्वल कर देता है, जैसे सूरज की किरणें अंधेरे को चीर देती हैं। यह संगति मन को शुद्ध करती है, सद्गुणों को जागृत करती है और आत्मा को परम सत्य की ओर ले जाती है। जैसे स्वच्छ जल प्यास बुझाता है, वैसे ही सन्तों का साथ हृदय को शान्ति और आनन्द से भर देता है। इससे भाग्य चमक उठता है, मानो सितारे रात के आकाश में टिमटिमाने लगें।

विपरीत, दुष्टों और भटके हुए लोगों का साथ मन को भटकाता है। यह भजन की मधुरता में खलल डालता है, जैसे कर्कश स्वर संगीत को बिगाड़ देता है। साधुजनों के चरणों में बैठना ही सच्चा तीर्थ है, जहाँ काशी और गंगा की कोटि-कोटि पुण्य प्राप्त होते हैं। यहाँ मन पवित्र होता है, और आत्मा को मुक्ति का मार्ग दिखता है।

जो लोग निन्दा करते हैं, वे अपने ही कर्मों के फलस्वरूप अंधकार में डूब जाते हैं। उनकी दृष्टि धुंधली हो जाती है, और वे जीवन के सत्य से वंचित रहते हैं। इसके विपरीत, जो सन्तों की संगति में रहकर प्रभु के गुण गाते हैं, वे उनके चरणों की धूल से अपने मस्तक को सुशोभित करते हैं। यह धूल ही जीवन का सबसे बड़ा आभूषण है, जो आत्मा को प्रभु के प्रेम से जोड़ती है।

इस प्रकार, साधुजनों का संग और प्रभु का भक्ति-भरा स्मरण ही जीवन को सार्थक बनाता है। यह मार्ग सरल है, परन्तु गहन, जो हर मन को सत्य, प्रेम और शान्ति की ओर ले जाता है।


Aaj Mare Sadu Supatar Ghar Aaya

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