आज अनारी ले गयो सारी मीरा बाई पदावली

आज अनारी ले गयो सारी मीरा बाई पदावली

आज अनारी ले गयो सारी
आज अनारी ले गयो सारी, बैठी कदम की डारी, हे माय।।टेक।।
म्हारे गेल पड़्यो गिरधारी है माय, आज अनारी।
मैं जल चमुना भर गई थी, आ गयो कृश्न मुरारी, हे माय।
ले गयो सारी अनारी म्हारी, जल में ऊभी उधारी, हे माय।
सखी साइनि मोरी हँसत है, हंसि हंसि दे मोंहि तारी, हे माय।
सास बुरी अर नणद हठीली, लरि लरि दे मोहिं गारी, हे माय।
मीरां के प्रभु गिरधरनागर, चरण कमल की बारी, हे माय।।

(अनारी=नटखट,शरारती। सारी=साड़ी,वस्त्र, गेल=साथ,पीछे, ऊभी=खड़ी, उधारी=निरवस्त्र, साइनि=सदा साथ रहने  वाली, तारी=ताली, बारी=न्यौछावर)

जीवन में प्रभु की लीला अनघट और नटखट है, जो मन को एक पल में उलझा देती है। जैसे कोई कदम की डाल पर बैठी नारी अपनी सारी सँभाले, वैसे ही मन संसार के रंगों में उलझा रहता है। पर जब प्रभु का आगमन होता है, वह सारी छीन लेता है—न कि कपड़े की, बल्कि अहं और माया की। यह नटखट कृपालु मन को निर्वस्त्र कर देता है, ताकि आत्मा सत्य के सामने नग्न खड़ी हो।

जैसे यमुना किनारे जल भरती नारी को कृष्ण की शरारत छू लेती है, वैसे ही प्रभु की कृपा मन को झकझोर देती है। संसार की हँसी-ठिठोली, सखियों की तालियाँ, या सास-ननद की कटु वाणी—ये सब क्षणिक हैं। ये मन को डाँटती हैं, पर प्रभु का प्रेम इन सबसे परे है। वह हृदय को ऐसी शरण देता है, जहाँ न कोई गाली पहुँचती है, न कोई ठेस।

अंत में, प्रभु के चरणों में समर्पण ही सच्ची मुक्ति है। यह समर्पण मन को माया के बंधनों से मुक्त करता है, जैसे कोई भक्त अपनी सारी प्रभु को अर्पित कर देता है। वह चरण-कमल की छाँव में विश्राम पाता है, जहाँ न संसार का भय है, न लज्जा। यह प्रेम और भक्ति का मार्ग है, जो हर आत्मा को अपने सच्चे स्वरूप से मिलाता है।


Meera Bhajan | Soulful Krishna Meera Bhajans | Bhawana Lonkar | Meera Ke Prabhu

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