गोबिन्द कबहुं मिलै पिया मेरा मीरा बाई पदावली
गोबिन्द कबहुं मिलै पिया मेरा
गोबिन्द कबहुं मिलै पिया मेरा॥
चरण कंवल को हंस हंस देखूं, राखूं नैणां नेरा।
निरखणकूं मोहि चाव घणेरो, कब देखूं मुख तेरा॥
व्याकुल प्राण धरत नहिं धीरज, मिल तूं मीत सबेरा।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर ताप तपन बहुतेरा॥
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बरसै बदरिया सावन की
सावन की मनभावन की।
सावन में उमग्यो मेरो मनवा
भनक सुनी हरि आवन की।
उमड़ घुमड़ चहुँ दिसि से आयो
दामण दमके झर लावन की।
नान्हीं नान्हीं बूंदन मेहा बरसै
सीतल पवन सोहावन की।
मीराके प्रभु गिरधर नागर
आनंद मंगल गावन की।
प्रभुजी थे कहां गया नेहड़ो लगाय।
छोड़ गया बिस्वास संगाती प्रेमकी बाती बलाय॥
बिरह समंद में छोड़ गया छो, नेहकी नाव चलाय।
मीरा के प्रभु कब र मिलोगे, तुम बिन रह्यो न जाय॥
प्रभु तुम कैसे दीनदयाळ॥ध्रु०॥
मथुरा नगरीमों राज करत है बैठे। नंदके लाल॥१॥
भक्तनके दुःख जानत नहीं। खेले गोपी गवाल॥२॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर। भक्तनके प्रतिपाल॥३॥
प्रभुजी थे कहाँ गया, नेहड़ो लगाय।
छोड़ गया बिस्वास संगाती प्रेम की बाती बलाय।।
बिरह समंद में छोड़ गया छो हकी नाव चलाय।
मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन रह्यो न जाय।।