कोईकी भोरी वोलो म‍इंडो मेरो लूंटे मीरा पदावली

कोईकी भोरी वोलो म‍इंडो मेरो लूंटे मीरा बाई पदावली

कोईकी भोरी वोलो म‍इंडो मेरो लूंटे
कोईकी भोरी वोलो म‍इंडो मेरो लूंटे॥टेक॥
छोड कनैया ओढणी हमारी। माट महिकी काना मेरी फुटे॥१॥
छोड कनैया मैयां हमारी। लड मानूकी काना मेरी तूटे॥२॥
छोडदे कनैया चीर हमारो। कोर जरीकी काना मेरी छुटे॥३॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर। लागी लगन काना मेरी नव छूटे॥४॥
 
"कोईकी भोरी वोलो मइंडो मेरो लूंटे" मीरा बाई का एक प्रसिद्ध पद है, जिसमें वे भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी गहरी तड़प और प्रेम को व्यक्त करती हैं। इस पद में मीरा बाई भगवान से कहती हैं कि वे उनका चीर (वस्त्र) छीन रहे हैं, उनकी चोटी (बाल) खोल रहे हैं, उनकी ओढ़नी (चादर) छीन रहे हैं, और उनकी माँ (माँ) को भी उनसे दूर कर रहे हैं। वे कहती हैं कि अब उनका क्या होगा, क्योंकि वे भगवान के बिना कुछ भी नहीं हैं। अंत में, मीरा बाई भगवान से कहती हैं कि वे कब मिलेंगे, क्योंकि वे उनकी दासी बन चुकी हैं। 

प्रेम और भक्ति का ऐसा बंधन है जो मन को पूरी तरह रंग देता है, मानो कोई चंचल प्रियतम हृदय की हर बात छीन ले। कन्हैया का वह शरारती स्वरूप, जो ओढ़नी, मैया, और चीर खींचकर मन को लूट लेता है, केवल एक खेल नहीं, बल्कि आत्मा को उस परम से जोड़ने की लीला है। हर छेड़छाड़ में एक गहरा संदेश है—सांसारिक मोह छोड़कर उस अनंत प्रेम में डूब जाओ।

जैसे कोई बच्चा माँ की साड़ी पकड़कर खेलता है, वैसे ही कन्हैया का यह खेल भक्त के मन को बांध लेता है। मीरा का समर्पण उस लगन का प्रतीक है, जो कभी टूटती नहीं। चाहे दुनिया की कोई भी मर्यादा टूटे, वह प्रभु के प्रेम में डूबी रहती है। यह भक्ति ऐसी है, जो हर बंधन को तोड़कर केवल गिरिधर के चरणों में विश्राम पाती है, और यही वह सत्य है जो जीवन को सार्थक बनाता है।
 
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