कोई दिन याद करो रमता राम अतीत मीरा बाई पदावली
कोई दिन याद करो रमता राम अतीत मीरा बाई पदावली
कोई दिन याद करो रमता राम अतीत
कोई दिन याद करो रमता राम अतीत।।टेक।।
आसण माड़ अडिग होय बैठा याही भजन की रीति।
मैं तो जाणूं संग चलेगा; छाँड़ि गया अधबीच।
आत न दीसे जात न दीसे, जोगी किसका मीत।
मीराँ कहे प्रभु गिरधरनागर, चरणन आवे चीत।।
कोई दिन याद करो रमता राम अतीत।।टेक।।
आसण माड़ अडिग होय बैठा याही भजन की रीति।
मैं तो जाणूं संग चलेगा; छाँड़ि गया अधबीच।
आत न दीसे जात न दीसे, जोगी किसका मीत।
मीराँ कहे प्रभु गिरधरनागर, चरणन आवे चीत।।
"कोई दिन याद करो रमता राम अतीत" मीरा बाई का एक प्रसिद्ध पद है, जिसमें वे भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी अडिग भक्ति और समर्पण को व्यक्त करती हैं। इस पद में मीरा बाई कहती हैं कि वे आसन पर बैठकर भजन की रीति से भगवान का स्मरण करती हैं, और यह जानती हैं कि भगवान उनके साथ हैं, भले ही वे भक्ति के मार्ग में अकेली चल रही हों। वे कहती हैं कि उनका मन और शरीर भगवान के चरणों में समर्पित हैं, और वे भगवान के साथ अपने संबंध को अडिग मानती हैं। इस प्रकार, मीरा बाई अपने भक्ति मार्ग में भगवान के प्रति अपनी अडिग श्रद्धा और समर्पण को व्यक्त करती हैं।
भक्ति का वह पल, जब मन किसी दिन उस रमते-फिरते, संसार से विरक्त प्रभु को याद करता है, आत्मा को शांति देता है। आसन पर अचल होकर बैठना, भजन की रीति में डूबना, यह विश्वास जगाता है कि वह प्रभु हर पल साथ है। भले ही दुनिया बीच राह में छूट जाए, मन जानता है कि सच्चा साथी वही है। न आत्मा दिखती है, न जाति, फिर भी जोगी का मीत वही प्रभु है।
मीरा का हृदय उस गिरिधर के चरणों में रम गया है, जहाँ चित्त बार-बार लौटता है। जैसे कोई पथिक थककर एकमात्र सहारे की छाँव में विश्राम पाता है, वैसे ही भक्ति का यह मार्ग हर बंधन से मुक्त कर प्रभु के प्रेम में लीन कर देता है। यह समर्पण केवल पूजा नहीं, बल्कि जीवन का वह सत्य है, जो हर सांस को प्रभु के रंग में रंग देता है।
मीरा का हृदय उस गिरिधर के चरणों में रम गया है, जहाँ चित्त बार-बार लौटता है। जैसे कोई पथिक थककर एकमात्र सहारे की छाँव में विश्राम पाता है, वैसे ही भक्ति का यह मार्ग हर बंधन से मुक्त कर प्रभु के प्रेम में लीन कर देता है। यह समर्पण केवल पूजा नहीं, बल्कि जीवन का वह सत्य है, जो हर सांस को प्रभु के रंग में रंग देता है।
(कोई दिन=किसी दिन,कभी न कभी, रमता= घूमने-फिरने वाला, अतीत=निर्लिप्त,विरक्त, आसण माड़=आसन लगाकर, अडिग=अचल, चीत=चित)
यह भजन भी देखिये