आयी देखत मनमोहनकू मीरा बाई पदावली
आयी देखत मनमोहनकू मीरा बाई पदावली
आयी देखत मनमोहनकू
आयी देखत मनमोहनकू।
मोरे मनमों छबी छाय रही॥टेक॥
मुख परका आचला दूर कियो।
तब ज्योतमों ज्योत समाय रही॥२॥
आयी देखत मनमोहनकू।
मोरे मनमों छबी छाय रही॥टेक॥
मुख परका आचला दूर कियो।
तब ज्योतमों ज्योत समाय रही॥२॥
सोच करे अब होत कंहा है।
प्रेमके फुंदमों आय रही॥३॥
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर।
बुंदमों बुंद समाय रही॥४॥
(फुंद=फंद, बुंद=बूँद)
प्रेमके फुंदमों आय रही॥३॥
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर।
बुंदमों बुंद समाय रही॥४॥
(फुंद=फंद, बुंद=बूँद)
मनमोहन के दर्शन की चाह में मन डूब गया, उनकी छवि हृदय में ऐसी बसी कि कुछ और दिखाई ही नहीं देता। जब लज्जा का आँचल हटाया, तो उनकी ज्योत में अपनी ज्योत समा गई, जैसे दीया सूरज के प्रकाश में विलीन हो जाए। प्रेम के फंदे में बंधकर मन अब सोचता है कि और कहाँ जाए, जब सारा सुख प्रभु में ही है।
मीरा का हृदय गिरधरनागर में रम गया, जहां उनकी बूँद में उसकी बूँद समा गई। जैसे नदी सागर में मिलकर एक हो जाती है, वैसे ही यह भक्ति आत्मा को प्रभु के प्रेम में लीन कर देती है। यह वह सत्य है, जो मन को सांसारिक भटकन से मुक्त कर उनके चरणों में सदा के लिए ठहरा देता है।
मीरा का हृदय गिरधरनागर में रम गया, जहां उनकी बूँद में उसकी बूँद समा गई। जैसे नदी सागर में मिलकर एक हो जाती है, वैसे ही यह भक्ति आत्मा को प्रभु के प्रेम में लीन कर देती है। यह वह सत्य है, जो मन को सांसारिक भटकन से मुक्त कर उनके चरणों में सदा के लिए ठहरा देता है।
दरद जाने कोय हेली । मैं दरद दिवानी ॥ध्रु०॥
घायलकी गत घायल ज्याने । लागी हिये ॥१॥
सुली उपर सेजहमारी । किसबीद रहीये सोय ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । वदे सामलीया होय ॥३॥
सखी आपनो दाम खोटो दोस काहां कुबज्याकू ॥ध्रु०॥
कुबजा दासी कंस रायकी । दराय कोठोडो ॥१॥
आपन जाय दुबारका छाय । कागद हूं कोठोडो ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । कुबजा बडी हरी छोडो ॥३॥
खबर मोरी लेजारे बंदा जावत हो तुम उनदेस ॥ध्रु०॥
हो नंदके नंदजीसु यूं जाई कहीयो । एकबार दरसन दे जारे ॥१॥
आप बिहारे दरसन तिहारे । कृपादृष्टि करी जारे ॥२॥
नंदवन छांड सिंधु तब वसीयो । एक हाम पैन सहजीरे ।
जो दिन ते सखी मधुबन छांडो । ले गयो काळ कलेजारे ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । सबही बोल सजारे ॥४॥
अपनी गरज हो मिटी सावरे हाम देखी तुमरी प्रीत ॥ध्रु०॥
आपन जाय दुवारका छाय ऐसे बेहद भये हो नचिंत ॥ ठोर०॥१॥
ठार सलेव करित हो कुलभवर कीसि रीत ॥२॥
बीन दरसन कलना परत हे आपनी कीसि प्रीत ।
मीराके प्रभु गिरिधर नागर प्रभुचरन न परचित ॥३॥
मैं तो तेरे दावन लागीवे गोपाळ ॥ध्रु०॥
कीया कीजो प्रसन्न दिजावे ।
खबर लीजो आये तुम साधनमें तुम संतनसे ।
तुम गउवनके रखवाल ॥२॥
आपन जाय दुवारकामें हामकू देई विसार ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बलहार ॥४॥
घायलकी गत घायल ज्याने । लागी हिये ॥१॥
सुली उपर सेजहमारी । किसबीद रहीये सोय ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । वदे सामलीया होय ॥३॥
सखी आपनो दाम खोटो दोस काहां कुबज्याकू ॥ध्रु०॥
कुबजा दासी कंस रायकी । दराय कोठोडो ॥१॥
आपन जाय दुबारका छाय । कागद हूं कोठोडो ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । कुबजा बडी हरी छोडो ॥३॥
खबर मोरी लेजारे बंदा जावत हो तुम उनदेस ॥ध्रु०॥
हो नंदके नंदजीसु यूं जाई कहीयो । एकबार दरसन दे जारे ॥१॥
आप बिहारे दरसन तिहारे । कृपादृष्टि करी जारे ॥२॥
नंदवन छांड सिंधु तब वसीयो । एक हाम पैन सहजीरे ।
जो दिन ते सखी मधुबन छांडो । ले गयो काळ कलेजारे ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । सबही बोल सजारे ॥४॥
अपनी गरज हो मिटी सावरे हाम देखी तुमरी प्रीत ॥ध्रु०॥
आपन जाय दुवारका छाय ऐसे बेहद भये हो नचिंत ॥ ठोर०॥१॥
ठार सलेव करित हो कुलभवर कीसि रीत ॥२॥
बीन दरसन कलना परत हे आपनी कीसि प्रीत ।
मीराके प्रभु गिरिधर नागर प्रभुचरन न परचित ॥३॥
मैं तो तेरे दावन लागीवे गोपाळ ॥ध्रु०॥
कीया कीजो प्रसन्न दिजावे ।
खबर लीजो आये तुम साधनमें तुम संतनसे ।
तुम गउवनके रखवाल ॥२॥
आपन जाय दुवारकामें हामकू देई विसार ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बलहार ॥४॥
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