प्रभुजी मैं अरज करुँ छूं म्हारो बेड़ो लगाज्यो पार।। इण भव में मैं दु:ख बहु पायो संसा-सोग निवार। अष्ट करम की तलब लगी है दूर करो दुख-भार।। यों संसार सब बह्यो जात है लख चौरासी री धार। मीरा के प्रभु गिरधर नागर आवागमन निवार।।
प्रभु जी -ईश्वर (श्री कृष्ण ) अरज-विनय, प्रार्थना। करू छूं -करती हूँ। बेड़ो-बेड़ा से आशय है नाँव, ईश्वर मेरे जीवन रूपी नाँव को आप पार लगा देना। इण -इस। भव-संसार। दुःख बहु पायो-बहुत अधिक (बहु ) दुःख पाया है।
अष्ट-आठ। बह्यो जात है -बहता जाता है। लख चौरासी री धार-चौरासी योनियों की धारा। आवागमन निवार -जन्म मरण का चक्र मिटाओं।
Prabhu Ji Main Araj Karun | Meera Bhajan | Gansaraswati Kishori Amonkar
Prabhujee Main Araj Karun Chhoon Mhaaro Bedo Lagaajyo Paar.. In Bhav Mein Main Du:kh Bahu Paayo Sansa-sog Nivaar. Asht Karam Kee Talab Lagee Hai Door Karo Dukh-bhaar.. Yon Sansaar Sab Bahyo Jaat Hai Lakh Chauraasee Ree Dhaar. Meera Ke Prabhu Giradhar Naagar Aavaagaman Nivaar..
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मीरा बाई भक्तिकाल की प्रमुख संत और कृष्ण की अनन्य भक्त थीं। उनका जन्म राजस्थान के मेड़ता में हुआ था। मीरा बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन थीं और उन्हें अपने पति के रूप में मानती थीं। उनकी कृष्ण भक्ति के कारण समाज और परिवार ने उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन वे अपनी भक्ति से कभी विचलित नहीं हुईं। मीरा बाई ने कई भजन और पद रचे, जो आज भी भक्तिमय भाव से गाए जाते हैं। उनकी रचनाएँ कृष्ण के प्रति उनकी अपार प्रेम और समर्पण को प्रकट करती हैं।
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