आली म्हांने लागे वृन्दावन नीको मीरा बाई पदावली
आली, म्हांने लागे वृन्दावन नीको
आली, म्हांने लागे वृन्दावन नीको।।टेक।।
घर घर तुलसी ठाकुर पूजा दरसण गोविन्दजी को॥
निरमल नीर बहत जमुना में, भोजन दूध दही को।
रतन सिंघासन आप बिराजैं, मुगट धर्यो तुलसी को॥
कुंजन कुंजन फिरति राधिका, सबद सुनन मुरली को।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, भजन बिना नर फीको॥
(म्हांने,म्हाँणे=मुझको, नीको,नीकाँ=सुन्दर, ठाकुर=कृष्ण, जमणाँ मां=यमुना में, दरसण=दर्शन, मुगट,मुगुट=मुकुट,
ताज, धर्यां=धारण करके, फीको,फीकां=नीरस,व्यर्थ)
कैसी जादू डारी । अब तूने कैशी जादु ॥ध्रु०॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे । कुंडलकी छबि न्यारी ॥१॥
वृंदाबन कुंजगलीनमों । लुटी गवालन सारी ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरणकमल बलहारी ॥३॥
कान्हा कानरीया पेहरीरे ॥ध्रु०॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे । खेल खेलकी गत न्यारीरे ॥१॥
खेल खेलते अकेले रहता । भक्तनकी भीड भारीरे ॥२॥
बीखको प्यालो पीयो हमने । तुह्मारो बीख लहरीरे ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरण कमल बलिहारीरे ॥४॥
कीसनजी नहीं कंसन घर जावो । राणाजी मारो नही ॥ध्रु०॥
तुम नारी अहल्या तारी । कुंटण कीर उद्धारो ॥१॥
कुबेरके द्वार बालद लायो । नरसिंगको काज सुदारो ॥२॥
तुम आये पति मारो दहीको । तिनोपार तनमन वारो ॥३॥
जब मीरा शरण गिरधरकी । जीवन प्राण हमारो ॥४॥
गोपाल राधे कृष्ण गोविंद ॥ गोविंद ॥ध्रु०॥
बाजत झांजरी और मृंदग । और बाजे करताल ॥१॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे । गलां बैजयंती माल ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । भक्तनके प्रतिपाल ॥३॥
गांजा पीनेवाला जन्मको लहरीरे ॥ध्रु०॥
स्मशानावासी भूषणें भयंकर । पागट जटा शीरीरे ॥१॥
व्याघ्रकडासन आसन जयाचें । भस्म दीगांबरधारीरे ॥२॥
त्रितिय नेत्रीं अग्नि दुर्धर । विष हें प्राशन करीरे ॥३॥
मीरा कहे प्रभू ध्यानी निरंतर । चरण कमलकी प्यारीरे ॥४॥
चालो ढाकोरमा जइ वसिये । मनेले हे लगाडी रंग रसिये ॥ध्रु०॥
प्रभातना पोहोरमा नौबत बाजे । अने दर्शन करवा जईये ॥१॥
अटपटी पाघ केशरीयो वाघो । काने कुंडल सोईये ॥२॥
पिवळा पितांबर जर कशी जामो । मोतन माळाभी मोहिये ॥३॥
चंद्रबदन आणियाळी आंखो । मुखडुं सुंदर सोईये ॥४॥
रूमझुम रूमझुम नेपुर बाजे । मन मोह्यु मारूं मुरलिये ॥५॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । अंगो अंग जई मळीयेरे ॥६॥
चालो सखी मारो देखाडूं । बृंदावनमां फरतोरे ॥ध्रु०॥
नखशीखसुधी हीरानें मोती । नव नव शृंगार धरतोरे ॥१॥
पांपण पाध कलंकी तोरे । शिरपर मुगुट धरतोरे ॥२॥
धेनु चरावे ने वेणू बजावे । मन माराने हरतोरे ॥३॥
रुपनें संभारुं के गुणवे संभारु । जीव राग छोडमां गमतोरे ॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । सामळियो कुब्जाने वरतोरे ॥५॥
आयी देखत मनमोहनकू । मोरे मनमों छबी छाय रही ॥ध्रु०॥
मुख परका आचला दूर कियो । तब ज्योतमों ज्योत समाय रही ॥२॥
सोच करे अब होत कंहा है । प्रेमके फुंदमों आय रही ॥३॥
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर । बुंदमों बुंद समाय रही ॥४॥
हृदय तुमकी करवायो । हूं आलबेली बेल रही कान्हा ॥१॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे । मुरली क्यौं बजावे कान्हा ॥२॥
ब्रिंदाबनमों कुंजगलनमों । गड उनकी चरन धुलाई ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । घर घर लेऊं बलाई ॥४॥
मनमोहन गिरिवरधारी ॥ध्रु०॥
मोर मुकुट पीतांबरधारी । मुरली बजावे कुंजबिहारी ॥१॥
हात लियो गोवर्धन धारी । लिला नाटकी बांकी गत है न्यारी ॥२॥
ग्वाल बाल सब देखन आयो । संग लिनी राधा प्यारी ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । आजी आईजी हमारी फेरी ॥४॥
बालपनमों बैरागन करी गयोरे ॥ध्रु०॥
खांदा कमलीया तो हात लकरीया । जमुनाके पार उतारगयोरे ॥१॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत । बनसीकी टेक सुनागयोरे ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । सावली सुरत दरशन दे गयोरे ॥३॥
लटपटी पेचा बांधा राज ॥ध्रु०॥
सास बुरी घर ननंद हाटेली । तुमसे आठे कियो काज ॥१॥
निसीदन मोहिके कलन परत है । बनसीनें सार्यो काज ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधन नागर । चरन कमल सिरताज ॥३॥
राजा थारे कुबजाही मन मानी । म्हांसु आ बोलना ॥ध्रु०॥
रसकोबी हरि छेला हारियो बनसीवाला जादु लाया ।
भुलगई सुद सारी ॥१॥
तुम उधो हरिसो जाय कैहीयो । कछु नही चूक हमारी ॥२॥
मिराके प्रभु गिरिधर नागर । चरण कमल उरधारी ॥३॥