प्रगट भयो भगवान
प्रगट भयो भगवान लिरिक्स
प्रगट भयो भगवान
प्रगट भयो भगवान॥टेक॥
नंदजीके घर नौबद बाजे। टाळ मृदंग और तान॥१॥
सबही राजे मिलन आवे। छांड दिये अभिमान॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। निशिदिनीं धरिजे ध्यान॥३॥
प्रगट भयो भगवान॥टेक॥
नंदजीके घर नौबद बाजे। टाळ मृदंग और तान॥१॥
सबही राजे मिलन आवे। छांड दिये अभिमान॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। निशिदिनीं धरिजे ध्यान॥३॥
प्रभु का प्रगट होना वह आनंदमय क्षण है, जब नंद के घर नौबत और मृदंग की धुनों के साथ उत्सव छा जाता है। यह लीला उस प्रेम की गहराई है, जो अभिमान छोड़कर सबको प्रभु के चरणों में लाती है। जैसे नदी सागर से मिलकर पूर्ण होती है, वैसे ही भक्त का मन गिरधर के ध्यान में रमकर तृप्त होता है। दिन-रात उनका स्मरण करना, वह भक्ति है, जो आत्मा को सदा सुख देती है।
शिव का रूप भयंकर और अलौकिक है, जो स्मशान में वास करता है, जटाएँ और भस्म धारण करता है। व्याघ्र-चर्म पर बैठने वाला, त्रिनेत्र में अग्नि और विष का पान करने वाला, वह प्रभु सृष्टि के संहारक और रक्षक हैं। उनके चरण-कमल की प्रीति, वह शक्ति है, जो भक्त को संसार के भय से मुक्त करती है। निरंतर ध्यान में डूबना, वह मार्ग है, जो मन को अविनाशी से जोड़ता है।
प्रभु का स्मरण और उनके चरणों में लीन होना, वह ठिकाना है, जो हर दुख को मिटाकर आत्मा को अमर सुख देता है। मन को उनकी शरण में समर्पित करो, क्योंकि उनकी कृपा ही जीवन को सार्थक बनाती है।
शिव का रूप भयंकर और अलौकिक है, जो स्मशान में वास करता है, जटाएँ और भस्म धारण करता है। व्याघ्र-चर्म पर बैठने वाला, त्रिनेत्र में अग्नि और विष का पान करने वाला, वह प्रभु सृष्टि के संहारक और रक्षक हैं। उनके चरण-कमल की प्रीति, वह शक्ति है, जो भक्त को संसार के भय से मुक्त करती है। निरंतर ध्यान में डूबना, वह मार्ग है, जो मन को अविनाशी से जोड़ता है।
प्रभु का स्मरण और उनके चरणों में लीन होना, वह ठिकाना है, जो हर दुख को मिटाकर आत्मा को अमर सुख देता है। मन को उनकी शरण में समर्पित करो, क्योंकि उनकी कृपा ही जीवन को सार्थक बनाती है।
गांजा पीनेवाला जन्मको लहरीरे॥ध्रु०॥
स्मशानावासी भूषणें भयंकर। पागट जटा शीरीरे॥१॥
व्याघ्रकडासन आसन जयाचें। भस्म दीगांबरधारीरे॥२॥
त्रितिय नेत्रीं अग्नि दुर्धर। विष हें प्राशन करीरे॥३॥
मीरा कहे प्रभू ध्यानी निरंतर। चरण कमलकी प्यारीरे॥४॥
गांजा पीनेवाला जन्मको लहरीरे॥ध्रु०॥
स्मशानावासी भूषणें भयंकर। पागट जटा शीरीरे॥१॥
व्याघ्रकडासन आसन जयाचें। भस्म दीगांबरधारीरे॥२॥
त्रितिय नेत्रीं अग्नि दुर्धर। विष हें प्राशन करीरे॥३॥
मीरा कहे प्रभू ध्यानी निरंतर। चरण कमलकी प्यारीरे॥४॥
गोपाल राधे कृष्ण गोविंद॥ गोविंद॥ध्रु०॥
बाजत झांजरी और मृंदग। और बाजे करताल॥१॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे। गलां बैजयंती माल॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। भक्तनके प्रतिपाल॥३॥
गोबिन्द कबहुं मिलै पिया मेरा॥
चरण कंवल को हंस हंस देखूं, राखूं नैणां नेरा।
निरखणकूं मोहि चाव घणेरो, कब देखूं मुख तेरा॥
व्याकुल प्राण धरत नहिं धीरज, मिल तूं मीत सबेरा।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर ताप तपन बहुतेरा॥
स्मशानावासी भूषणें भयंकर। पागट जटा शीरीरे॥१॥
व्याघ्रकडासन आसन जयाचें। भस्म दीगांबरधारीरे॥२॥
त्रितिय नेत्रीं अग्नि दुर्धर। विष हें प्राशन करीरे॥३॥
मीरा कहे प्रभू ध्यानी निरंतर। चरण कमलकी प्यारीरे॥४॥
गांजा पीनेवाला जन्मको लहरीरे॥ध्रु०॥
स्मशानावासी भूषणें भयंकर। पागट जटा शीरीरे॥१॥
व्याघ्रकडासन आसन जयाचें। भस्म दीगांबरधारीरे॥२॥
त्रितिय नेत्रीं अग्नि दुर्धर। विष हें प्राशन करीरे॥३॥
मीरा कहे प्रभू ध्यानी निरंतर। चरण कमलकी प्यारीरे॥४॥
गोपाल राधे कृष्ण गोविंद॥ गोविंद॥ध्रु०॥
बाजत झांजरी और मृंदग। और बाजे करताल॥१॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे। गलां बैजयंती माल॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। भक्तनके प्रतिपाल॥३॥
गोबिन्द कबहुं मिलै पिया मेरा॥
चरण कंवल को हंस हंस देखूं, राखूं नैणां नेरा।
निरखणकूं मोहि चाव घणेरो, कब देखूं मुख तेरा॥
व्याकुल प्राण धरत नहिं धीरज, मिल तूं मीत सबेरा।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर ताप तपन बहुतेरा॥