परम सनेही राम की नीति परम सनेही राम की नीति ओलूँ री आवै।।टेक।। राम हमारे हम हैं राम के, हरि बिन कछू न सुहावै। आवण कह गये अजहूँ न आये, जिवड़ो अति उकलावै। तुम दरसण की आस रमैया, कब हरि दरस दिलावै। चरण कवल की लगनि लगी नित, बिन दरसण दुख पावै। मीराँ कूँ प्रभु दरसण दीज्यौ आँणद बरण्यूँ न जावै।। (नीति=व्यवहार, ओलूँ=याद, उकलावै=आकुल होना, बरण्यूँ न जावै=वर्णन नहीं किया जा सकता)
--------------------------- खबर मोरी लेजारे बंदा जावत हो तुम उनदेस॥ध्रु०॥ हो नंदके नंदजीसु यूं जाई कहीयो। एकबार दरसन दे जारे॥१॥ आप बिहारे दरसन तिहारे। कृपादृष्टि करी जारे॥२॥ नंदवन छांड सिंधु तब वसीयो। एक हाम पैन सहजीरे। जो दिन ते सखी मधुबन छांडो। ले गयो काळ कलेजारे॥३॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सबही बोल सजारे॥४॥
खबर मोरी लेजारे बंदा जावत हो तुम उनदेस॥ध्रु०॥ हो नंदके नंदजीसु यूं जाई कहीयो। एकबार दरसन दे जारे॥१॥ आप बिहारे दरसन तिहारे। कृपादृष्टि करी जारे॥२॥ नंदवन छांड सिंधु तब वसीयो। एक हाम पैन सहजीरे। जो दिन ते सखी मधुबन छांडो। ले गयो काळ कलेजारे॥३॥ मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सबही बोल सजारे॥४॥
गली तो चारों बंद हुई, मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय। ऊंची नीची राह लपटीली, पांव नहीं ठहराय। सोच सोच पग धरूं जतनसे, बार बार डिग जाय॥ ऊंचा नीचा महल पियाका म्हांसूं चढ़्यो न जाय। पिया दूर पंथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय॥ कोस कोस पर पहरा बैठ्या, पैंड़ पैंड़ बटमार। है बिधना, कैसी रच दीनी दूर बसायो म्हांरो गांव॥ मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु दई बताय। जुगन जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय॥