पिहु की बोलि न बोल मीरा बाई
पिहु की बोलि न बोल मीरा बाई
पिहु की बोलि न बोल
पिहु की बोलि न बोल पपैय्या॥टेक॥
तै खोलना मेरा जी डरत है। तनमन डावा डोल॥१॥
तोरे बिना मोकूं पीर आवत है। जावरा करुंगी मैं मोल॥२॥
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर। कामनी करत कीलोल॥३॥
पिहु की बोलि न बोल पपैय्या॥टेक॥
तै खोलना मेरा जी डरत है। तनमन डावा डोल॥१॥
तोरे बिना मोकूं पीर आवत है। जावरा करुंगी मैं मोल॥२॥
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर। कामनी करत कीलोल॥३॥
पपीहे की पुकार मन को प्रियतम की याद दिलाती है, पर वह बोल मन को और व्याकुल कर देती है। डर है कि यह पुकार मन के सारे बंधन खोल देगी, तन-मन डोलने लगेगा। उनके बिना पीड़ा सताती है, और मन उनके लिए सब कुछ मोल देने को तैयार है। मीरां का मन गिरधर में रमा है, जो प्रेम की लीलाओं में कामिनी को रिझाते हैं। यह भक्ति का वह प्रेम है, जो विरह की पुकार में भी प्रभु की स्मृति को जीवंत रखता है।
कीत गयो जादु करके नो पीया॥ध्रु०॥
नंदनंदन पीया कपट जो कीनो। नीकल गयो छल करके॥१॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे। कबु ना मीले आंग भरके॥२॥
मीरा दासी शरण जो आई। चरणकमल चित्त धरके॥३॥
नंदनंदन पीया कपट जो कीनो। नीकल गयो छल करके॥१॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे। कबु ना मीले आंग भरके॥२॥
मीरा दासी शरण जो आई। चरणकमल चित्त धरके॥३॥
नंदनंदन ने प्रेम का जादू किया, जो कपट और छल से मन को बांध लेता है। मोरमुकुट और पीतांबर में सजा उनका रूप मन को लुभाता है, पर पूरा मिलन दुर्लभ है। मीरां उनकी शरण में दासी बन आई, चरणकमलों में चित्त अर्पित कर। यह भक्ति का वह रस है, जहां प्रभु की लीला मन को प्रेम के जाल में उलझा देती है।
कीसनजी नहीं कंसन घर जावो। राणाजी मारो नही॥ध्रु०॥
तुम नारी अहल्या तारी। कुंटण कीर उद्धारो॥१॥
कुबेरके द्वार बालद लायो। नरसिंगको काज सुदारो॥२॥
तुम आये पति मारो दहीको। तिनोपार तनमन वारो॥३॥
जब मीरा शरण गिरधरकी। जीवन प्राण हमारो॥४॥
तुम नारी अहल्या तारी। कुंटण कीर उद्धारो॥१॥
कुबेरके द्वार बालद लायो। नरसिंगको काज सुदारो॥२॥
तुम आये पति मारो दहीको। तिनोपार तनमन वारो॥३॥
जब मीरा शरण गिरधरकी। जीवन प्राण हमारो॥४॥
कृष्ण की करुणा और शक्ति अनंत है, जो अहल्या को तारती है, कुंती और पांडवों का उद्धार करती है। कुबेर के द्वार से लेकर नरसिंह अवतार तक, उनकी लीलाएं हर कार्य को सिद्ध करती हैं। दही के लिए आए बालक ने माखन चुराकर मन मोह लिया। मीरां की शरण में गिरधर ही जीवन और प्राण हैं। यह भक्ति का वह विश्वास है, जो प्रभु को हर संकट का निवारक मानता है।
कुंजबनमों गोपाल राधे॥ध्रु०॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे। नीरखत शाम तमाल॥१॥
ग्वालबाल रुचित चारु मंडला। वाजत बनसी रसाळ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनपर मन चिरकाल॥३॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे। नीरखत शाम तमाल॥१॥
ग्वालबाल रुचित चारु मंडला। वाजत बनसी रसाळ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनपर मन चिरकाल॥३॥