नाव किनारे लगाव प्रभुजी लिरिक्स Naav Kinare Lagaav Prabhuji Lyrics मीरा बाई पदावली Padawali Meera Bai Meera Bhajan Hindi Lyrics
नाव किनारे लगाव प्रभुजी
नाव किनारे लगाव प्रभुजी नाव किनारे लगाव॥टेक॥
नदीया घहेरी नाव पुरानी। डुबत जहाज तराव॥१॥
ग्यान ध्यानकी सांगड बांधी। दवरे दवरे आव॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। पकरो उनके पाव॥३॥
नाव किनारे लगाव प्रभुजी नाव किनारे लगाव॥टेक॥
नदीया घहेरी नाव पुरानी। डुबत जहाज तराव॥१॥
ग्यान ध्यानकी सांगड बांधी। दवरे दवरे आव॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। पकरो उनके पाव॥३॥
---------------------------
तुम बिन मेरी कौन खबर ले, गोवर्धन गिरिधारीरे॥ध्रु०॥
मोर मुगुट पीतांबर सोभे। कुंडलकी छबी न्यारीरे॥ तुम०॥१॥
भरी सभामों द्रौपदी ठारी। राखो लाज हमारी रे॥ तुम०॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारीरे॥ तुम०॥३॥
दूर नगरी, बड़ी दूर नगरी-नगरी
कैसे मैं तेरी गोकुल नगरी
दूर नगरी बड़ी दूर नगरी
रात को कान्हा डर माही लागे,
दिन को तो देखे सारी नगरी। दूर नगरी...
सखी संग कान्हा शर्म मोहे लागे,
अकेली तो भूल जाऊँ तेरी डगरी। दूर नगरी...
धीरे-धीरे चलूँ तो कमर मोरी लचके
झटपट चलूँ तो छलकाए गगरी। दूर नगरी...
मीरा कहे प्रभु गिरधर नागर,
तुमरे दरस बिन मैं तो हो गई बावरी। दूर नगरी...
तुम लाल नंद सदाके कपटी॥ध्रु०॥
सबकी नैया पार उतर गयी। हमारी नैया भवर बिच अटकी॥१॥
नैया भीतर करत मस्करी। दे सय्यां अरदन पर पटकी॥२॥
ब्रिंदाबनके कुंजगलनमों सीरकी। घगरीया जतनसे पटकी॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। राधे तूं या बन बन भटकी॥४॥
तुम सुणौ दयाल म्हारी अरजी॥
भवसागर में बही जात हौं, काढ़ो तो थारी मरजी।
इण संसार सगो नहिं कोई, सांचा सगा रघुबरजी॥
मात पिता औ कुटुम कबीलो सब मतलब के गरजी।
मीरा की प्रभु अरजी सुण लो चरण लगाओ थारी मरजी॥
तुम बिन मेरी कौन खबर ले, गोवर्धन गिरिधारीरे॥ध्रु०॥
मोर मुगुट पीतांबर सोभे। कुंडलकी छबी न्यारीरे॥ तुम०॥१॥
भरी सभामों द्रौपदी ठारी। राखो लाज हमारी रे॥ तुम०॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारीरे॥ तुम०॥३॥
दूर नगरी, बड़ी दूर नगरी-नगरी
कैसे मैं तेरी गोकुल नगरी
दूर नगरी बड़ी दूर नगरी
रात को कान्हा डर माही लागे,
दिन को तो देखे सारी नगरी। दूर नगरी...
सखी संग कान्हा शर्म मोहे लागे,
अकेली तो भूल जाऊँ तेरी डगरी। दूर नगरी...
धीरे-धीरे चलूँ तो कमर मोरी लचके
झटपट चलूँ तो छलकाए गगरी। दूर नगरी...
मीरा कहे प्रभु गिरधर नागर,
तुमरे दरस बिन मैं तो हो गई बावरी। दूर नगरी...
तुम लाल नंद सदाके कपटी॥ध्रु०॥
सबकी नैया पार उतर गयी। हमारी नैया भवर बिच अटकी॥१॥
नैया भीतर करत मस्करी। दे सय्यां अरदन पर पटकी॥२॥
ब्रिंदाबनके कुंजगलनमों सीरकी। घगरीया जतनसे पटकी॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। राधे तूं या बन बन भटकी॥४॥
तुम सुणौ दयाल म्हारी अरजी॥
भवसागर में बही जात हौं, काढ़ो तो थारी मरजी।
इण संसार सगो नहिं कोई, सांचा सगा रघुबरजी॥
मात पिता औ कुटुम कबीलो सब मतलब के गरजी।
मीरा की प्रभु अरजी सुण लो चरण लगाओ थारी मरजी॥