नाव किनारे लगाव प्रभुजी

नाव किनारे लगाव प्रभुजी

 
नाव किनारे लगाव प्रभुजी

नाव किनारे लगाव प्रभुजी
नाव किनारे लगाव प्रभुजी नाव किनारे लगाव॥टेक॥
नदीया घहेरी नाव पुरानी। डुबत जहाज तराव॥१॥
ग्यान ध्यानकी सांगड बांधी। दवरे दवरे आव॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। पकरो उनके पाव॥३॥
 
शब्दार्थ :-म्हारी =मेरी। काढ़ो =निकाढ़ लो, निकाल ले। इण =यह। गरजी =स्वार्थी थारी =तुम्हारी।
 
जीवन की नदी गहरी है, पुरानी नाव डगमगा रही है, मानो हर लहर डूबने को तैयार हो। प्रभु ही एकमात्र माझी हैं, जो इस डूबते जहाज को किनारे तक ले जा सकते हैं। ज्ञान और ध्यान की डोर थामे, मन बार-बार उनके द्वार पहुँचता है, जैसे कोई भटका मुसाफिर रोशनी की तलाश में भटकता हो। गिरधर के चरणों में शरण मिले, तो हर डर, हर तूफान शांत हो जाए। यह प्रेम और विश्वास ही है, जो उस किनारे की ओर ले जाता है, जहाँ मन को ठहराव मिलता है।
 
तुम बिन मेरी कौन खबर ले, गोवर्धन गिरिधारीरे॥ध्रु०॥
मोर मुगुट पीतांबर सोभे। कुंडलकी छबी न्यारीरे॥ तुम०॥१॥
भरी सभामों द्रौपदी ठारी। राखो लाज हमारी रे॥ तुम०॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारीरे॥ तुम०॥३॥

प्रिय के बिना जीवन सूना, जैसे कोई बिना सहारे भटक रहा हो। गोवर्धन उठाने वाले, मोर-मुकुट और पीतांबर में सजे प्रभु की छवि मन को बाँध लेती है। उनकी कृपा ऐसी है, जैसे द्रौपदी की लाज बचाने वाला हाथ हर संकट में साथ देता हो। मीराबाई का मन उनके चरण-कमलों में रम जाता है, जहाँ सारी पीड़ा, सारी तलाश खत्म हो जाती है। वह प्रेम ही है, जो हर दुख में बल देता है और प्रभु के निकट ले जाता है।
 
दूर नगरी, बड़ी दूर नगरी-नगरी
कैसे मैं तेरी गोकुल नगरी
दूर नगरी बड़ी दूर नगरी
रात को कान्हा डर माही लागे,
दिन को तो देखे सारी नगरी। दूर नगरी...
सखी संग कान्हा शर्म मोहे लागे,
अकेली तो भूल जाऊँ तेरी डगरी। दूर नगरी...
धीरे-धीरे चलूँ तो कमर मोरी लचके
झटपट चलूँ तो छलकाए गगरी। दूर नगरी...
मीरा कहे प्रभु गिरधर नागर,
तुमरे दरस बिन मैं तो हो गई बावरी। दूर नगरी...

तुम लाल नंद सदाके कपटी॥ध्रु०॥
सबकी नैया पार उतर गयी। हमारी नैया भवर बिच अटकी॥१॥
नैया भीतर करत मस्करी। दे सय्यां अरदन पर पटकी॥२॥
ब्रिंदाबनके कुंजगलनमों सीरकी। घगरीया जतनसे पटकी॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। राधे तूं या बन बन भटकी॥४॥

तुम सुणौ दयाल म्हारी अरजी॥
भवसागर में बही जात हौं, काढ़ो तो थारी मरजी।
इण संसार सगो नहिं कोई, सांचा सगा रघुबरजी॥
मात पिता औ कुटुम कबीलो सब मतलब के गरजी।
मीरा की प्रभु अरजी सुण लो चरण लगाओ थारी मरजी॥ 
 
यह भजन मीराबाई की हृदयपूर्ण विनम्रता और उस गहरी भक्ति का प्रतीक है, जिसमें वह अपने आराध्य के चरणों में पूर्ण समर्पण प्रकट करती हैं। जीवन के इस महासागर — भवसागर — में डूबती हुई आत्मा प्रभु से करुणापूर्वक प्रार्थना करती है कि वह अपनी कृपा से उसे पार लगाए। यहाँ मीरा संसार के सभी संबंधों की नश्वरता को पहचान चुकी हैं; उन्हें ज्ञात है कि माता-पिता, परिवार या कोई भी सांसारिक नाता केवल स्वार्थ और आवश्यकता तक सीमित है। उनके लिए सच्चा सगा, सच्चा सहारा केवल भगवान ही हैं। इस भाव में आत्मसमर्पण की वह अवस्था झलकती है, जो भक्तिकाल की सबसे निर्मल अनुभूति कही जाती है। 

Prabhuji Nav Kinare Lagao (Shrikrishn Bhajan)

Prabhuji Nav Kinare Lagao (Shrikrishn Bhajan) · Rekha Manvatkar · Marathi Kirtan · Marathi Bhajan
Prabhuji Nav Kinare Lagao
℗ 2023 Marathi Kirtan
Released on: 2023-06-21
Composer: Rekha Manvatkar
Auto-generated by YouTube. 


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  1. हाथ पकड़ले नाथ ना तेरा भक्त भीड़ में खो जागा
  2. उत्तर में जल रही चिताएं परस्पर
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