नींद न आवे बिरह सतावे लिरिक्स

नींद न आवे बिरह सतावे लिरिक्स

नींद न आवे बिरह सतावे
नींद न आवे बिरह सतावे, प्रेम की आँच ढुलावै।।टेक।।
बिन पिया जोत मँदिर अँधियारो, दीपक दाय न आवै।
पिया बिन मेरी सेज अलूनी, जागत रैण बिहावै।
पिया कब रे घर आवै।
दादुर मोर पपीहा बोलै, कोयल सबद सुणावै।
घुँमट घटा ऊलर होई आई, दामिन दमक डरावै।
नैन झर लावै।
कहा करूँ कित जाऊं मोरी सजनी, बैदन कूण बुतावै।
बिरह नागण मोरी काय डसी है, लहर लहर जिव जावै।
जड़ी घस लावै।
कोहै सखी सहेली सजनी, पिया कूँ आन मिलावै।
मीराँ कूं प्रभु कब रे मिलोगे, मन मोहन मोहि भावै।
कब हँस कर बतलावै।।

(आँच=आग, ढुलावै=इधर-उधर डुलाती फिरती है, बेचैन किये रहती है, जोत=ज्योति प्रकाश, मंदिर=घर, दाय=पसन्द, अलूनी=फीकी, ऊलर होई आई=झुक आई, बैदन=वेदना को, बुतावै=शांत करे, जड़ी=औषधि)
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तुम्हरे कारण सब छोड्या, अब मोहि क्यूं तरसावौ हौ।
बिरह-बिथा लागी उर अंतर, सो तुम आय बुझावौ हो॥
अब छोड़त नहिं बड़ै प्रभुजी, हंसकर तुरत बुलावौ हौ।
मीरा दासी जनम जनम की, अंग से अंग लगावौ हौ॥

तेरे सावरे मुख पर वारी। वारी वारी बलिहारी॥ध्रु०॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे। कुंडलकी छबि न्यारी न्यारी॥१॥
ब्रिंदामन मों धेनु चरावे। मुरली बजावत प्यारी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरण कमल चित्त वारी॥३॥

मेरी गेंद चुराई। ग्वालनारे॥ध्रु०॥
आबहि आणपेरे तोरे आंगणा। आंगया बीच छुपाई॥१॥
ग्वाल बाल सब मिलकर जाये। जगरथ झोंका आई॥२॥
साच कन्हैया झूठ मत बोले। घट रही चतुराई॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलजाई॥४॥

तोती मैना राधे कृष्ण बोल। तोती मैना राधे कृष्ण बोल॥ध्रु०॥
येकही तोती धुंडत आई। लकट किया अनी मोल॥तोती मै०॥१॥
दाना खावे तोती पानी पीवे। पिंजरमें करत कल्लोळ॥ तो०॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। हरिके चरण चित डोल॥ तो०॥३॥

तोरी सावरी सुरत नंदलालाजी॥ध्रु०॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत। कारी कामली वालाजी॥१॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे। कुंडल झळकत लालाजी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। भक्तनके प्रतिपालाजी॥३॥
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