जान्यो मैं राजको बेहेवार उधव जी
जान्यो मैं राजको बेहेवार उधव जी
जान्यो मैं राजको बेहेवार उधव जी
जान्यो मैं राजको बेहेवार उधव जी।
मैं जान्यो ही राज को बेहेवार।
आंब काटावो लिंब लागावो।
बाबल की करो बाड॥ १॥
जान्यो मैं राजको बेहेवार उधव जी।
मैं जान्यो ही राज को बेहेवार।
आंब काटावो लिंब लागावो।
बाबल की करो बाड॥ १॥
चोर बसावो सावकार दंडावो।
नीती धरमरस बार॥ २॥
मेरो कह्यो सत नही जाणयो।
कुबजाके किरतार॥ ३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर।
अद्वंद दरबार॥ ४॥
नीती धरमरस बार॥ २॥
मेरो कह्यो सत नही जाणयो।
कुबजाके किरतार॥ ३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर।
अद्वंद दरबार॥ ४॥
सांसारिक व्यवहार प्रायः विरोधाभासों से भरा होता है—जहाँ न्याय और नीति का स्थान कई बार अवसरवादिता और छल द्वारा लिया जाता है। यह संसार का वह अपरिवर्तनीय सत्य है, जिसमें अच्छे और बुरे, नीति और अनीति, धर्म और अधर्म, सभी एकसाथ विद्यमान होते हैं। साधक इस तथ्य को जब पहचानता है, तब उसका विश्वास केवल बाहरी व्यवस्था पर नहीं रहता, बल्कि वह उस अपरिवर्तनीय सत्ता की शरण में जाता है, जहाँ सत्य निर्विवाद रूप से प्रतिष्ठित रहता है।
इस संसार में कटु और मधुर अनुभवों का संतुलन ही जीवन की असली कसौटी होती है। जिस प्रकार आंब को काटकर लिंब लगाया जाता है, उसी प्रकार कभी कटुता आती है और कभी मधुरता। यह केवल भौतिक संसार की व्यवस्था नहीं, बल्कि आत्मा के अनुभव का भी सत्य है। जब व्यक्ति इस अस्थिरता को पहचानता है, तब उसका दृष्टिकोण सांसारिक प्रपंचों से ऊपर उठ जाता है।
न्याय और अन्याय का संघर्ष निरंतर चलता रहता है। जिस समाज में चोरों को स्थान मिलता है और सच्चे लोगों को कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं, वहाँ नीति और धर्म की परीक्षा होती रहती है। लेकिन जो वास्तव में धर्म के रस को समझता है, वह इन विरोधों से विचलित नहीं होता। उसका विश्वास केवल उस अडिग सत्य पर होता है, जो किसी भी स्थिति में अपनी शुचिता को नहीं खोता।
संसार में जो प्रत्यक्ष दिखता है, वह सदैव सत्य नहीं होता। कइयों के कर्मों के पीछे अज्ञात सत्य छिपा रहता है, जिसे सहज रूप में नहीं पहचाना जा सकता। जो सच्ची दृष्टि रखता है, वही इस गूढ़ सत्य को समझने में सक्षम होता है। जब व्यक्ति इस सत्य को देखता है, तब वह किसी बाह्य प्रमाण की आवश्यकता नहीं महसूस करता—उसका विश्वास केवल उस दिव्यता पर रहता है, जिसमें कोई विरोधाभास नहीं है, कोई छल नहीं है।
ईश्वर का दरबार अद्वंद है—वहाँ कोई भेदभाव नहीं, कोई कुटिलता नहीं, कोई छल नहीं। जो उस परम सत्य की शरण में जाता है, वह सांसारिक विरोधाभासों के पार जाकर उस शाश्वत शांति को प्राप्त करता है। यही भक्ति की पराकाष्ठा है, जहाँ साधक को संसार के छल-प्रपंचों से कोई भय नहीं रहता, क्योंकि उसने परम सत्य को पहचान लिया है।
इस संसार में कटु और मधुर अनुभवों का संतुलन ही जीवन की असली कसौटी होती है। जिस प्रकार आंब को काटकर लिंब लगाया जाता है, उसी प्रकार कभी कटुता आती है और कभी मधुरता। यह केवल भौतिक संसार की व्यवस्था नहीं, बल्कि आत्मा के अनुभव का भी सत्य है। जब व्यक्ति इस अस्थिरता को पहचानता है, तब उसका दृष्टिकोण सांसारिक प्रपंचों से ऊपर उठ जाता है।
न्याय और अन्याय का संघर्ष निरंतर चलता रहता है। जिस समाज में चोरों को स्थान मिलता है और सच्चे लोगों को कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं, वहाँ नीति और धर्म की परीक्षा होती रहती है। लेकिन जो वास्तव में धर्म के रस को समझता है, वह इन विरोधों से विचलित नहीं होता। उसका विश्वास केवल उस अडिग सत्य पर होता है, जो किसी भी स्थिति में अपनी शुचिता को नहीं खोता।
संसार में जो प्रत्यक्ष दिखता है, वह सदैव सत्य नहीं होता। कइयों के कर्मों के पीछे अज्ञात सत्य छिपा रहता है, जिसे सहज रूप में नहीं पहचाना जा सकता। जो सच्ची दृष्टि रखता है, वही इस गूढ़ सत्य को समझने में सक्षम होता है। जब व्यक्ति इस सत्य को देखता है, तब वह किसी बाह्य प्रमाण की आवश्यकता नहीं महसूस करता—उसका विश्वास केवल उस दिव्यता पर रहता है, जिसमें कोई विरोधाभास नहीं है, कोई छल नहीं है।
ईश्वर का दरबार अद्वंद है—वहाँ कोई भेदभाव नहीं, कोई कुटिलता नहीं, कोई छल नहीं। जो उस परम सत्य की शरण में जाता है, वह सांसारिक विरोधाभासों के पार जाकर उस शाश्वत शांति को प्राप्त करता है। यही भक्ति की पराकाष्ठा है, जहाँ साधक को संसार के छल-प्रपंचों से कोई भय नहीं रहता, क्योंकि उसने परम सत्य को पहचान लिया है।