शेरावाली का लगा है दरबार जयकारा
शेरावाली का लगा है दरबार जयकारा माँ का बोलते रहो
शेरावाली का लगा है दरबार,
जयकारा माँ का बोलते रहो,
मेहरवाली का सजा है दरबार,
जयकारा माँ का बोलते रहो,
जयकारा माँ का जयकारा,
शेरावाली का लगा है दरबार,
जयकारा माँ का बोलते रहो।।
(अंतरा)
पर्वत की ऊँची सी चोटी,
चोटी ऊपर जगती ज्योति,
बैठी शेर पे होके सवार,
जयकारा माँ का बोलते रहो,
शेरावाली का लगा है दरबार,
जयकारा माँ का बोलते रहो।।
ढम-ढम ढोल नगाड़े बाजे,
झूम-झूम के जोगन नाचे,
माँ की हो रही जय जयकार,
जयकारा माँ का बोलते रहो,
शेरावाली का लगा है दरबार,
जयकारा माँ का बोलते रहो।।
बजरंगी माँ की सेवा में खड़े,
भैरवनाथ आरती उतारे,
गंगा मैया रही चरण पखार,
जयकारा माँ का बोलते रहो,
शेरावाली का लगा है दरबार,
जयकारा माँ का बोलते रहो।।
लुटा रही माँ अटल खजाना,
भर-भर झोली लुटे जमाना,
माँ ने खोल दिए रे भंडार,
जयकारा माँ का बोलते रहो,
शेरावाली का लगा है दरबार,
जयकारा माँ का बोलते रहो।।
(पुनरावृति)
शेरावाली का लगा है दरबार,
जयकारा माँ का बोलते रहो,
मेहरवाली का सजा है दरबार,
जयकारा माँ का बोलते रहो,
जयकारा माँ का जयकारा,
शेरावाली का लगा है दरबार,
जयकारा माँ का बोलते रहो।।
शेरावाली का लगा है दरबार नवरात्रि में हर दिन सुनिए माता रानी का मंगलमय गीत
माँ शेरावाली का दरबार वह पवित्र स्थान है, जहाँ भक्त का मन कृपा और शक्ति के रंग में डूब जाता है। ऊँचे पर्वत की चोटी पर जगमगाती ज्योति, शेर पर सवार माँ का रूप, वह शक्ति है, जो हर भय को हर लेती है। उनके जयकारे गूँजना, मन की वह पुकार है, जो माँ की महिमा में खो जाना चाहती है।
ढोल-नगाड़ों की थाप और जोगन का नाच, वह उत्सव है, जो माँ के प्रेम में थिरकता है। जैसे नदी अपने सागर की ओर बहती है, वैसे ही भक्त का हृदय माँ के चरणों में रमता है। बजरंगी की सेवा, भैरवनाथ की आरती, और गंगा का चरण पखारना, यह भक्ति का वह समर्पण है, जो माँ को हर पल अर्पित होता है।
माँ का खजाना अटल है, जो भक्तों की झोलियाँ कृपा से भर देता है। उनकी मेहर वह अमृत है, जो हर कमी को पूर्ण करती है, जैसे माँ अपने बच्चे की हर पुकार सुनती है। मन को उनके दरबार में रखो, क्योंकि उनकी कृपा ही वह आधार है, जो जीवन को सुख और शांति से भर देता है।