पिय बिन सूनो छै जी म्हारो देस

पिय बिन सूनो छै जी म्हारो देस

 

पिय बिन सूनो छै जी म्हारो देस
पिय बिन सूनो छै जी म्हारो देस॥
ऐसो है कोई पिवकूं मिलावै, तन मन करूं सब पेस।
तेरे कारण बन बन डोलूं, कर जोगण को भेस॥
अवधि बदीती अजहूं न आए, पंडर हो गया केस।
मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, तज दियो नगर नरेस॥ 

प्रियतम के बिना जीवन का हर कोना सूना है, जैसे बिना चाँद की रात अंधेरी हो। मन की यह तड़प, कि कोई प्रभु से मिला दे, वह निश्छल प्रेम है, जो तन-मन को उनके लिए अर्पित कर देता है। उनके लिए जोगन बनकर वन-वन डोलना, वह समर्पण है, जो संसार की हर मोह माया को ठुकरा देता है।

वादे की अवधि बीत गई, केश पक गए, पर प्रियतम का दर्शन नहीं हुआ। नगर और नरेश को तजकर केवल प्रभु की खोज में भटकना, वह प्यास है, जो उनकी शरण में ही बुझती है। उनके बिना दिन भारी हैं, जैसे प्यासा जल के बिना तड़पता है।

संसार के छल-छैल और लाखों रिश्ते अपने काम के लिए साथ देते हैं, पर सच्चा भला कोई नहीं कहता। अपनों का साथ भी कोढ़-सा लगता है, जब तक प्रभु का प्रेम न मिले। अविनाशी के साथ सच्ची प्रीति ही वह रीत है, जो मन को तृप्त करती है। उनके साथ जुड़ना, वह सुख है, जिसे सारा लोक सराहता है।

मीरा का प्रभु से मिलन, वह भक्ति की रीत है, जो आत्मा को अमर प्रेम से जोड़ती है। मन को उनके चरणों में रखो, क्योंकि उनकी कृपा ही वह ठिकाना है, जो हर दुख को मिटाकर सदा का सुख देती है।
छैल बिराणे लाख को हे अपणे काज न होइ।
ताके संग सीधारतां हे, भला न कहसी कोइ।
वर हीणों आपणों भलो हे, कोढी कुष्टि कोइ।
जाके संग सीधारतां है, भला कहै सब लोइ।
अबिनासी सूं बालवां हे, जिपसूं सांची प्रीत।
मीरा कूं प्रभु मिल्या हे, ऐहि भगति की रीत॥

डर गयोरी मन मोहनपास, डर गयोरी मन मोहनपास॥१॥
बीरहा दुबारा मैं तो बन बन दौरी। प्राण त्यजुगी करवत लेवगी काशी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हरिचरणकी दासी॥३॥

तुम कीं करो या हूं ज्यानी। तुम०॥ध्रु०॥
ब्रिंद्राजी बनके कुंजगलीनमों। गोधनकी चरैया हूं ज्यानी॥१॥
मोर मुगुट पीतांबर सोभे। मुरलीकी बजैया हूं ज्यानी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। दान दिन ले तब लै हुं ज्यानी॥३॥

म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।।
तन मन धन सब भेंट धरूंगी भजन करूंगी तुम्हारा।
म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।।
तुम गुणवंत सुसाहिब कहिये मोमें औगुण सारा।।
म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।।
मैं निगुणी कछु गुण नहिं जानूं तुम सा बगसणहारा।।
म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।।
मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन नैण दुखारा।।
म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।। 

Main To Ho Gai Re Shyam Ki Diwani || Singer - Alka Goyal || Superhit Bhajan Song 2015

मीरा की भक्ति : विरह वेदना और अनंत प्रेम की प्रतिक हैं कृष्णा। कृष्णा की प्रेम दीवानी है मीरा की भक्ति जो दैहिक नहीं आध्यात्मिक भक्ति है। मीरा ने अपने भजनों में कृष्ण को अपना पति तक मान लिया है। यह भक्ति और समर्पण की पराकाष्ठा है। मीरा की यह भक्ति उनके बालयकाल से ही थी। मीरा की भक्ति कृष्ण की रंग में रंगी है। मीरा की भक्ति में नारी की पराधीनता की एक कसक है जो भक्ति के रंग में और गहरी हो गयी है। मीरा ने कृष्ण को अपना पति मान लिया और अपना मन और तन कृष्ण को समर्पित कर दिया। मीरा की एक एक भावनाएं भी कृष्ण के रंग में रंगी थी। मीरा पद और रचनाएँ राजस्थानी, ब्रज और गुजराती भाषाओं में मिलते हैं और मीरा के पद हृदय की गहरी पीड़ा, विरहानुभूति और प्रेम की तन्मयता से भरे हुए मीराबाई के पद अनमोल संपत्ति हैं। मीरा के पदों में अहम् को समाप्त करके स्वयं को ईश्वर के प्रति पूर्णतया मिलाप है। कृष्ण के प्रति उनका इतना समर्पण है की संसार की समस्त शक्तियां उसे विचलित नहीं कर सकती है। मीरा की कृष्ण भक्ति एक मिशाल है जो स्त्री प्रधान भक्ति भावना का उद्वेलित रूप है।
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