बालपनमों बैरागन करी गयोरे

बालपनमों बैरागन करी गयोरे

बालपनमों बैरागन करी गयोरे
बालपनमों बैरागन करी गयोरे॥टेक॥
खांदा कमलीया तो हात लकरीया। जमुनाके पार उतारगयोरे॥१॥
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत। बनसीकी टेक सुनागयोरे॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सावली सुरत दरशन दे गयोरे॥३॥
 
बालपन में ही बैरागन बन जाना, वह मीरा की अनन्य भक्ति है, जो जीवन को प्रभु के प्रेम में रंग देती है। यह संकल्प वह फूल है, जो बचपन से ही प्रभु के चरणों में अर्पित हो जाता है। कमली और लकड़ी लिए यमुना पार करना, वह सादगी भरा मार्ग है, जो भक्त को प्रभु की शरण तक ले जाता है।

यमुना के तीर पर धेनु चराते हुए बंसी की टेर सुनना, वह क्षण है, जब प्रभु की मधुर धुन मन को मोह लेती है। यह बंसी का स्वर वह आह्वान है, जो आत्मा को प्रभु के रंग में डुबो देता है, जैसे वर्षा की बूँदें धरती को तृप्त करती हैं।

मीरा का गिरधर की सावली सूरत के दर्शन पाना, वह परम सुख है, जो भक्त के हृदय को तृप्त करता है। यह भक्ति वह नदी है, जो प्रभु के चरणों में बहती हुई, आत्मा को उनके प्रेम में डुबो देती है, और जीवन को उनकी कृपा के रंग से सराबोर कर देती है।
 
कैसी जादू डारी। अब तूने कैशी जादु॥ध्रु०॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे। कुंडलकी छबि न्यारी॥१॥
वृंदाबन कुंजगलीनमों। लुटी गवालन सारी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलहारी॥३॥

कोई कहियौ रे प्रभु आवन की,
आवनकी मनभावन की।
आप न आवै लिख नहिं भेजै ,
बाण पड़ी ललचावन की।
ए दोउ नैण कह्यो नहिं मानै,
नदियां बहै जैसे सावन की।
कहा करूं कछु नहिं बस मेरो,
पांख नहीं उड़ जावनकी।
मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे,
चेरी भै हूँ तेरे दांवन की।

कोईकी भोरी वोलो मइंडो मेरो लूंटे॥ध्रु०॥
छोड कनैया ओढणी हमारी। माट महिकी काना मेरी फुटे॥ को०॥१॥
छोड कनैया मैयां हमारी। लड मानूकी काना मेरी तूटे॥ को०॥२॥
छोडदे कनैया चीर हमारो। कोर जरीकी काना मेरी छुटे॥ को०॥३॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर। लागी लगन काना मेरी नव छूटे॥ को०॥४॥
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