बारी होके जाने बंदना भजन

बारी होके जाने बंदना भजन

बारी होके जाने बंदना
बारी होके जाने बंदना। पठीयो कछु नारी है॥टेक॥
बुटीसे बुडी भई साची तो भारी हो बिचारी रही।
तुम घर जावो बदना मेरो प्यारा भारी हो॥१॥
नारी होके द्वारकामें बाजे बासुरी। बासु मुस वारी हो।
वोही खूब लाला वणीर जोए। मारी सारी हो॥२॥
पान जैसी पिरी भई पर गोपवर रही।
मेरा गिरिधर पिया प्रभुजी मीरा वारी डारी हो॥३॥
 
प्रभु के प्रति यह बंदना वह निश्छल प्रेम है, जो भक्त को उनकी शरण में बारी (दासी) बनने को प्रेरित करता है। मीरा का यह कहना, कि कुछ और नहीं, केवल प्रभु की नारी होना ही उसका सौभाग्य है, वह समर्पण है, जो आत्मा को प्रभु के रंग में रंग देता है।

विरह की बूटी ने मन को डुबो दिया, और सच्चा प्रेम उसे भारी बना देता है। मीरा का वैद्य को घर जाने को कहना, क्योंकि उसका प्यारा ही उसकी पीड़ा का इलाज है, वह विश्वास है, जो प्रभु को ही एकमात्र सहारा मानता है। द्वारका में बंसी की धुन और लाला की खूबसूरती, वह आकर्षण है, जो मन को बार-बार प्रभु की ओर खींचता है।

पीली साड़ी में गोपवर की तरह सजना, और गिरधर को अपना प्रभु मानकर उनके लिए सब कुछ वारी देना, यह मीरा की अनन्य भक्ति है। यह प्रेम वह नदी है, जो प्रभु के चरणों में बहती हुई, आत्मा को उनके प्रेम में डुबो देती है, और जीवन को उनकी कृपा के रंग से सराबोर कर देती है।
 
जोगी मेरो सांवळा कांहीं गवोरी॥ध्रु०॥
न जानु हार गवो न जानु पार गवो। न जानुं जमुनामें डुब गवोरी॥१॥
ईत गोकुल उत मथुरानगरी। बीच जमुनामो बही गवोरी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल चित्त हार गवोरी॥३॥

जो तुम तोडो पियो मैं नही तोडू, तोरी प्रीत तोडी कृष्ण कोन संग जोडू
॥ध्रु०॥
तुम भये तरुवर मैं भई पखिया। तुम भये सरोवर मैं तोरी मछिया॥ जो०॥१॥
तुम भये गिरिवर मैं भई चारा। तुम भये चंद्रा हम भये चकोरा॥ जो०॥२॥
तुम भये मोती प्रभु हम भये धागा। तुम भये सोना हम भये स्वागा॥ जो०॥३॥
बाई मीरा कहे प्रभु ब्रज के बासी। तुम मेरे ठाकोर मैं तेरी दासी॥ जो०॥४॥

ज्यानो मैं राजको बेहेवार उधवजी। मैं जान्योही राजको बेहेवार।
आंब काटावो लिंब लागावो। बाबलकी करो बाड॥जा०॥१॥
चोर बसावो सावकार दंडावो। नीती धरमरस बार॥ जा०॥२॥
मेरो कह्यो सत नही जाणयो। कुबजाके किरतार॥ जा०॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। अद्वंद दरबार॥ जा०॥४॥ 
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