गोविन्द सूँ प्रीत करत तब ही क्यूँ न हटकी मीरा बाई पदावली Padawali Meera Bai Meera Bhajan Hindi Lyrics
गोविन्द सूँ प्रीत करत तब ही क्यूँ न हटकी
गोविन्द सूँ प्रीत करत तब ही क्यूँ न हटकी।।टेक।।
अब तो बात फैल गई, जैसे बीज बट की।
बीच को बिचार नाहीं, छाँय परी तट की।
अब चूकौ तो और नाहीं, जैसे कला नट की।।
जल के बुरी गाँठ परी, रसना गुन रटकी।
अब तो छुड़ाय हारी, बहुत बार झटकी।।
घर-घर में घोल मठोल, बानी घट-घट की।
सब ही कर सीस धरी लोक-लाज पटकी।।
मद की हस्ती समान, फिरत प्रेम लटकी।
दासी मीरा भक्ति बूँद, हिरदय बिच गटकी।।
---------------------------गोविन्द सूँ प्रीत करत तब ही क्यूँ न हटकी।।टेक।।
अब तो बात फैल गई, जैसे बीज बट की।
बीच को बिचार नाहीं, छाँय परी तट की।
अब चूकौ तो और नाहीं, जैसे कला नट की।।
जल के बुरी गाँठ परी, रसना गुन रटकी।
अब तो छुड़ाय हारी, बहुत बार झटकी।।
घर-घर में घोल मठोल, बानी घट-घट की।
सब ही कर सीस धरी लोक-लाज पटकी।।
मद की हस्ती समान, फिरत प्रेम लटकी।
दासी मीरा भक्ति बूँद, हिरदय बिच गटकी।।
हरि गुन गावत नाचूंगी॥
आपने मंदिरमों बैठ बैठकर। गीता भागवत बाचूंगी॥१॥
ग्यान ध्यानकी गठरी बांधकर। हरीहर संग मैं लागूंगी॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सदा प्रेमरस चाखुंगी॥३॥
तो सांवरे के रंग राची।
साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची।।
गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भै सांची।
गाय गाय हरिके गुण निस दिन, कालब्यालसूँ बांची।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची।
मीरा श्रीगिरधरन लालसूँ, भगति रसीली जांची।।
अपनी गरज हो मिटी सावरे हम देखी तुमरी प्रीत॥ध्रु०॥
आपन जाय दुवारका छाय ऐसे बेहद भये हो नचिंत॥ ठोर०॥१॥
ठार सलेव करित हो कुलभवर कीसि रीत॥२॥
बीन दरसन कलना परत हे आपनी कीसि प्रीत।
मीरां के प्रभु गिरिधर नागर प्रभुचरन न परचित॥३॥
शरणागतकी लाज। तुमकू शणागतकी लाज॥ध्रु०॥
नाना पातक चीर मेलाय। पांचालीके काज॥१॥
प्रतिज्ञा छांडी भीष्मके। आगे चक्रधर जदुराज॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। दीनबंधु महाराज॥३॥
अब तो मेरा राम नाम दूसरा न कोई॥
माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई।
साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥
सतं देख दौड आई, जगत देख रोई।
प्रेम आंसु डार डार, अमर बेल बोई॥
मारग में तारग मिले, संत राम दोई।
संत सदा शीश राखूं, राम हृदय होई॥
अंत में से तंत काढयो, पीछे रही सोई।
राणे भेज्या विष का प्याला, पीवत मस्त होई॥
अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई।
दास मीरां लाल गिरधर, होनी हो सो होई॥
अब तौ हरी नाम लौ लागी।
सब जगको यह माखनचोरा, नाम धर्यो बैरागीं॥
कित छोड़ी वह मोहन मुरली, कित छोड़ी सब गोपी।
मूड़ मुड़ाइ डोरि कटि बांधी, माथे मोहन टोपी॥
मात जसोमति माखन-कारन, बांधे जाके पांव।
स्यामकिसोर भयो नव गौरा, चैतन्य जाको नांव॥
पीतांबर को भाव दिखावै, कटि कोपीन कसै।
गौर कृष्ण की दासी मीरां, रसना कृष्ण बसै॥