भीजो मोरी नवरंग चुनरी भजन
भीजो मोरी नवरंग चुनरी भजन
भीजो मोरी नवरंग चुनरी
भीजो मोरी नवरंग चुनरी। काना लागो तैरे नाव॥टेक॥
गोरस लेकर चली मधुरा। शिरपर घडा झोले खाव॥१॥
त्रिभंगी आसन गोवर्धन धरलीयो। छिनभर मुरली बजावे॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरन कमल चित लागो तोरे पाव॥३॥
भीजो मोरी नवरंग चुनरी। काना लागो तैरे नाव॥टेक॥
गोरस लेकर चली मधुरा। शिरपर घडा झोले खाव॥१॥
त्रिभंगी आसन गोवर्धन धरलीयो। छिनभर मुरली बजावे॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरन कमल चित लागो तोरे पाव॥३॥
प्रभु के प्रेम में भीग जाना, वह रंग है, जो नवरंग चुनरी को और सुंदर बना देता है। काना के नाम का यह रस ऐसा है, जो मन को उनके प्रेम में डुबो देता है, जैसे वर्षा की बूँदें धरती को सराबोर करती हैं। यह भक्ति वह उत्सव है, जो आत्मा को प्रभु के रंग में रंग देता है।
मथुरा को गोरस ले जाती गोपी, सिर पर घड़ा लिए, वह भक्त का प्रतीक है, जो प्रभु की सेवा में हर पल समर्पित है। गोवर्धन को त्रिभंगी आसन में धारण करने वाला, क्षणभर मुरली बजाने वाला काना, वह प्रभु है, जिसकी हर लीला मन को मोह लेती है। यह प्रेम वह सुगंध है, जो हृदय को तृप्त करता है।
मीरा का गिरधर के चरणों में चित्त लगाना, वह समर्पण है, जो प्रभु के पावन चरणों में सब कुछ अर्पित कर देता है। यह भक्ति वह नदी है, जो चरणकमलों में बहती हुई, आत्मा को उनके प्रेम में डुबो देती है, और जीवन को उनकी कृपा के रंग से सराबोर कर देती है।
मथुरा को गोरस ले जाती गोपी, सिर पर घड़ा लिए, वह भक्त का प्रतीक है, जो प्रभु की सेवा में हर पल समर्पित है। गोवर्धन को त्रिभंगी आसन में धारण करने वाला, क्षणभर मुरली बजाने वाला काना, वह प्रभु है, जिसकी हर लीला मन को मोह लेती है। यह प्रेम वह सुगंध है, जो हृदय को तृप्त करता है।
मीरा का गिरधर के चरणों में चित्त लगाना, वह समर्पण है, जो प्रभु के पावन चरणों में सब कुछ अर्पित कर देता है। यह भक्ति वह नदी है, जो चरणकमलों में बहती हुई, आत्मा को उनके प्रेम में डुबो देती है, और जीवन को उनकी कृपा के रंग से सराबोर कर देती है।
चालो ढाकोरमा जइज वसिये। मनेले हे लगाडी रंग रसिये॥ध्रु०॥
प्रभातना पोहोरमा नौबत बाजे। अने दर्शन करवा जईये॥१॥
अटपटी पाघ केशरीयो वाघो। काने कुंडल सोईये॥२॥
पिवळा पितांबर जर कशी जामो। मोतन माळाभी मोहिये॥३॥
चंद्रबदन आणियाळी आंखो। मुखडुं सुंदर सोईये॥४॥
रूमझुम रूमझुम नेपुर बाजे। मन मोह्यु मारूं मुरलिये॥५॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। अंगो अंग जई मळीयेरे॥६॥
चालो मन गंगा जमुना तीर।
गंगा जमुना निरमल पाणी सीतल होत सरीर।
बंसी बजावत गावत कान्हो, संग लियो बलबीर॥
मोर मुगट पीताम्बर सोहे कुण्डल झलकत हीर।
मीराके प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल पर सीर॥
चालो सखी मारो देखाडूं। बृंदावनमां फरतोरे॥ध्रु०॥
नखशीखसुधी हीरानें मोती। नव नव शृंगार धरतोरे॥१॥
पांपण पाध कलंकी तोरे। शिरपर मुगुट धरतोरे॥२॥
धेनु चरावे ने वेणू बजावे। मन माराने हरतोरे॥३॥
रुपनें संभारुं के गुणवे संभारु। जीव राग छोडमां गमतोरे॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। सामळियो कुब्जाने वरतोरे॥५॥
प्रभातना पोहोरमा नौबत बाजे। अने दर्शन करवा जईये॥१॥
अटपटी पाघ केशरीयो वाघो। काने कुंडल सोईये॥२॥
पिवळा पितांबर जर कशी जामो। मोतन माळाभी मोहिये॥३॥
चंद्रबदन आणियाळी आंखो। मुखडुं सुंदर सोईये॥४॥
रूमझुम रूमझुम नेपुर बाजे। मन मोह्यु मारूं मुरलिये॥५॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। अंगो अंग जई मळीयेरे॥६॥
चालो मन गंगा जमुना तीर।
गंगा जमुना निरमल पाणी सीतल होत सरीर।
बंसी बजावत गावत कान्हो, संग लियो बलबीर॥
मोर मुगट पीताम्बर सोहे कुण्डल झलकत हीर।
मीराके प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल पर सीर॥
चालो सखी मारो देखाडूं। बृंदावनमां फरतोरे॥ध्रु०॥
नखशीखसुधी हीरानें मोती। नव नव शृंगार धरतोरे॥१॥
पांपण पाध कलंकी तोरे। शिरपर मुगुट धरतोरे॥२॥
धेनु चरावे ने वेणू बजावे। मन माराने हरतोरे॥३॥
रुपनें संभारुं के गुणवे संभारु। जीव राग छोडमां गमतोरे॥४॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। सामळियो कुब्जाने वरतोरे॥५॥