गिरधर रूसणुं जी कौन गुनाह मीरा बाई पदावली Padawali Meera Bai Meera Bhajan Hindi Lyrics

गिरधर रूसणुं जी कौन गुनाह मीरा बाई पदावली Padawali Meera Bai Meera Bhajan Hindi Lyrics

गिरधर रूसणुं जी कौन गुनाह
गिरधर रूसणुं जी कौन गुनाह।।टेक।।
कछु इक ओगुण काढ़ो म्हाँ छै, म्हैं भी कानाँ सुणा।
मैं दासी थारी जनम जनम की, थे साहिब सुगणाँ।
कांई बात सूं करवौ रूसणऊं, क्यां दुख पावौ छो मना।
किरपा करि मोहि दरसण दीज्यो, बीते दिवस घणाँ।
मीराँ के प्रभु हरि अबिनासी, थाँरो हो नाँव गणाँ।।

(गुनाह=अपराध, ओगुण=दोष, म्हैं भी कानाँ सुणाँ= मैं भी अपने कानों से सुनुं, सुगणाँ=गुण वाले, घणाँ= ज्यादा, नाँव=नाम, गणां=रटाँ, रीसाणा=अप्रसन्न होना, कौन गुणाँ=किस कारण, काढ़ो=निकालो, थारोई= तुम्हारा, भणां=जपा करती हूँ)

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माई मैनें गोविंद लीन्हो मोल॥ध्रु०॥
कोई कहे हलका कोई कहे भारी। लियो है तराजू तोल॥ मा०॥१॥
कोई कहे ससता कोई कहे महेंगा। कोई कहे अनमोल॥ मा०॥२॥
ब्रिंदाबनके जो कुंजगलीनमों। लायों है बजाकै ढोल॥ मा०॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। पुरब जनमके बोल॥ मा०॥४॥

मेरो मन राम-हि-राम रटै।
राम-नाम जप लीजै प्राणी! कोटिक पाप कटै।
जनम-जनम के खत जु पुराने, नामहि‍ लेत फटै।
कनक-कटोरै इमरत भरियो, नामहि लेत नटै।
मीरा के प्रभु हरि अविनासी तन-मन ताहि पटै।
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