गांजा पीनेवाला जन्मको लहरीरे मीरा बाई पदावली
गांजा पीनेवाला जन्मको लहरीरे
गांजा पीनेवाला जन्मको लहरीरे॥टेक॥
स्मशानावासी भूषणें भयंकर। पागट जटा शीरीरे॥१॥
व्याघ्रकडासन आसन जयाचें। भस्म दीगांबरधारीरे॥२॥
त्रितिय नेत्रीं अग्नि दुर्धर। विष हें प्राशन करीरे॥३॥
मीरा कहे प्रभू ध्यानी निरंतर। चरण कमलकी प्यारीरे॥४॥
---------------------------
माई मैनें गोविंद लीन्हो मोल॥ध्रु०॥
कोई कहे हलका कोई कहे भारी। लियो है तराजू तोल॥ मा०॥१॥
कोई कहे ससता कोई कहे महेंगा। कोई कहे अनमोल॥ मा०॥२॥
ब्रिंदाबनके जो कुंजगलीनमों। लायों है बजाकै ढोल॥ मा०॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। पुरब जनमके बोल॥ मा०॥४॥
मेरो मन राम-हि-राम रटै।
राम-नाम जप लीजै प्राणी! कोटिक पाप कटै।
जनम-जनम के खत जु पुराने, नामहि लेत फटै।
कनक-कटोरै इमरत भरियो, नामहि लेत नटै।
मीरा के प्रभु हरि अविनासी तन-मन ताहि पटै।
गली तो चारों बंद हुई हैं, मैं हरिसे मिलूँ कैसे जाय।।
ऊंची-नीची राह रपटली, पांव नहीं ठहराय।
सोच सोच पग धरूँ जतन से, बार-बार डिग जाय।।
ऊंचा नीचां महल पिया का म्हांसूँ चढ्यो न जाय।
पिया दूर पथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय।।
कोस कोस पर पहरा बैठया, पैग पैग बटमार।
हे बिधना कैसी रच दीनी दूर बसायो लाय।।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु दई बताय।
जुगन-जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय।।
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
जाके सिर मोरमुगट मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥
छांड़ि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई॥
संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥
चुनरीके किये टूक ओढ़ लीन्हीं लोई।
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई॥
अंसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आणंद फल होई॥
दूधकी मथनियां बड़े प्रेमसे बिलोई।
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई॥
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥