मेरे देश की धरती सोना उगले
मेरे देश की धरती सोना उगले
मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोतीमेरे देश की धरती…
बैलों के गले में जब घुंघरू जीवन का राग सुनाते हैं
ग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुस्काते हैं
सुनके रहट की आवाज़ें यूं लगे कहीं शहनाई बजे
आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे
मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती…
जब चलते हैं इस धरती पे हल ममता अंगड़ाइयाँ लेती है
क्यूं ना पूजे इस माटी को जो जीवन का सुख देती है
इस धरती पे जिसने जनम लिया, उसने ही पाया प्यार तेरा
यहां अपना पराया कोई नहीं है सब पे है मां उपकार तेरा
मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती…
ये बाग़ है गौतम नानक का खिलते हैं चमन के फूल यहां
गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक, ऐसे हैं अमन के फूल यहां
रंग हरा हरी सिंह नलवे से रंग लाल है लाल बहादुर से
रंग बना बसंती भगत सिंह रंग अमन का वीर जवाहर से
मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती…
मातृभूमि की महिमा का अनुपम चित्रण किया गया है। यह भूमि केवल धरती का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि असंख्य वीरों, संतों और महापुरुषों की तपस्या से पावन हुई है। यहाँ की मिट्टी में परिश्रम की सुगंध है, यहाँ के खेतों में समृद्धि का उत्सव होता है, और यहाँ की हवाओं में उल्लास की गूंज होती है।
इसकी हरियाली जीवन की उर्वरता को दर्शाती है, जहाँ हल की हर चाल में प्रेम और ममता का स्पर्श होता है। राष्ट्र के प्रति अटूट श्रद्धा केवल विचारों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि यह कर्मों के माध्यम से सजीव होती है। किसान की मेहनत, सैनिक का त्याग, और ऋषियों की साधना इस भूमि को धन्य बनाती है।
मातृभूमि का प्रेम अनन्य है—यहाँ जो जन्मता है, वही इसकी गोद में स्नेह और सुरक्षा पाता है। यह केवल एक भूखंड नहीं, बल्कि भावनाओं, संस्कारों और गौरव की पहचान है। यहाँ की मिट्टी में महापुरुषों की गाथाएँ अंकित हैं, जिनकी विरासत राष्ट्र को सदैव दिशा देती है। इस प्रेम और सम्मान से ओतप्रोत होकर जब कोई अपने देश के प्रति समर्पित होता है, तब ही वह वास्तविक कर्तव्य निभाता है।