न चाहूँ मान दुनिया में
न चाहूँ मान दुनिया में
न चाहूँ मान दुनिया में न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना
करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख
अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना
भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना
लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना
नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना
करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख
अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना
भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना
लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना
नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना
दुनिया का मान या स्वर्ग का सुख भी उस भारत की भक्ति के सामने तुच्छ है, जिसके लिए हर सांस समर्पित है। यह भाव धर्मज्ञान की उस शिक्षा को प्रदर्शित करता है कि सच्चा सुख वही है, जो अपनी मिट्टी के लिए जिया जाए।
देश की सेवा का संकल्प इतना दृढ़ है कि करोड़ों दुख भी उस पथ को डिगा नहीं सकते। जैसे नदी अपने मार्ग पर अडिग बहती है, वैसे ही देशवासी हर जन्म में भारत की गोद में लौटने की कामना रखता है। यह प्रेम संत की वाणी की तरह पवित्र है, जो कहती है कि जीवन का लक्ष्य मातृभूमि की सेवा में ही पूर्ण होता है।
हिन्दी भाषा और संस्कृति के प्रति गहन लगाव हर शब्द में झलकता है। हिन्दी बोलना, लिखना, पहनना और जीना एक तपस्या है, जो देश की आत्मा से जुड़ती है। यह चिंतन की उस गहराई से उपजता है, जो मानता है कि अपनी भाषा में ही संस्कृति की जड़ें मजबूत होती हैं।
घर की रोशनी हो या राग का गान, सब स्वदेशी हो, यह भाव देश के गौरव को बढ़ाता है। जैसे दीपक अपनी लौ से अंधेरे को मिटाता है, वैसे ही स्वदेशी चेतना हर हृदय को प्रज्वलित करती है। यह उद्गार धर्मगुरु की उस सीख को रेखांकित करता है कि अपनी विरासत को अपनाना ही सच्चा धर्म है।
धर्म, विद्या और धन का हर अंश मातृभूमि के लिए अर्पित करने का प्रण जीवन को सार्थक बनाता है। यह संकल्प उस योद्धा की तरह अटल है, जो अपने देश के लिए प्राण तक न्योछावर कर देता है।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं एक विशेषज्ञ के रूप में रोचक जानकारियों और टिप्स साझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |