खयाल आता है जिस दम दिल में चुभता

खयाल आता है जिस दम दिल में चुभता है सिनां होकर

खयाल आता है जिस दम दिल में चुभता है सिनां होकर
खयाल आता है जिस दम दिल में चुभता है सिनां होकर,
रहे क्यों कब्जाए अगियार में हिंदोस्तां होकर।

शहीदाने-वतन का खून एक दिन रंग लाएगा,
चमन में फूट निकलेगा यह बरगे-अर्गवां होकर।

फकत दारो-रसन ही कामयाबी का जरिया है,
मकासिद तक यह पहुंचाएगी हमको निर्दबाँ होकर।

नहीं वाकिफ थे मादर और पिदर इस अमरेशुदनी से,
कि आफत में पड़ेंगे उनके बच्चे नौजवां होकर।

सता ले ऐ फलक मुझको जहाँ तक तेरा जी चाहे,
सितम परवर सितम झेलूँगा शेरे-नेसतां होकर।

करूं मैं इंकलाबे दहर का शिकवा मआज-अल्लाह,
है कुफ्र मुझ पर डरूँ गर जेल में नौजवां होकर।

दहलता है कलेजा दुश्मनों का देखकर हसरत,
चला करते हो जब बेड़ी पहनकर शादमाँ होकर।


सुन्दर सोंग में राष्ट्रप्रेम और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का भाव ओजपूर्ण रूप से प्रकट होता है। जब देश पर परायों का अधिकार होता है, तब सच्चे देशभक्त का हृदय बेचैन होता है, और वह स्वाधीनता की लौ को प्रज्वलित करने के लिए हर बलिदान देने को तत्पर रहता है।

शहीदों का रक्त कभी व्यर्थ नहीं जाता—एक दिन यह धरती पर रंग लाएगा, और स्वतंत्रता का नवयुग जन्म लेगा। संघर्ष की भूमि पर खड़े होकर वीर सेनानी अपने संकल्प को अडिग बनाए रखते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि बलिदान ही विजय का मार्ग प्रशस्त करता है।

युवा पीढ़ी के साहस का उल्लेख इस भजन में दर्शाया गया है—माताएँ और पिता नहीं जानते थे कि उनके बच्चे स्वतंत्रता की राह में अपने प्राण न्योछावर कर देंगे, परंतु यही राष्ट्र के उत्थान का वास्तविक बलिदान है। क्रूर समय चाहे जितना भी कठिन हो, परन्तु सच्चे वीर अत्याचार को सहते हुए भी डटे रहते हैं।

जेल की कठिनाइयों में भी स्वतंत्रता सेनानी अपने आत्मबल को कम नहीं होने देते। वे निडर होकर संघर्ष करते हैं, और अपनी बेड़ियों को भी गर्व से पहनते हैं, क्योंकि उनकी आत्मा स्वतंत्रता के लिए समर्पित होती है। उनके दृढ़ संकल्प से ही दुश्मनों के हृदय में भय उत्पन्न होता है।
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