आरती श्री राधाजी की
आरती श्री राधाजी की
आरती राधाजी की कीजै। टेक...कृष्ण संग जो कर निवासा, कृष्ण करे जिन पर विश्वासा।
आरति वृषभानु लली की कीजै। आरती...
कृष्णचन्द्र की करी सहाई, मुंह में आनि रूप दिखाई।
उस शक्ति की आरती कीजै। आरती...
नंद पुत्र से प्रीति बढ़ाई, यमुना तट पर रास रचाई।
आरती रास रसाई की कीजै। आरती...
प्रेम राह जिनसे बतलाई, निर्गुण भक्ति नहीं अपनाई।
आरती राधाजी की कीजै। आरती...
दुनिया की जो रक्षा करती, भक्तजनों के दुख सब हरती।
आरती दु:ख हरणीजी की कीजै। आरती...
दुनिया की जो जननी कहावे, निज पुत्रों की धीर बंधावे।
आरती जगत माता की कीजै। आरती...
निज पुत्रों के काज संवारे, रनवीरा के कष्ट निवारे।
आरती विश्वमाता की कीजै। आरती...
सुन्दर भजन में श्रीराधारानीजी की दिव्यता और उनकी अनुपम कृपा का उदगार है। श्रीकृष्णजी की अनन्य सखी और आध्यात्मिक प्रेम की प्रतीक, उनका स्नेह प्रत्येक भक्त के हृदय को आनंद और श्रद्धा से भर देता है। उनकी आराधना से जीवन में प्रेम, भक्ति और समर्पण का मधुर प्रवाह होता है।
श्रीराधारानीजी का प्रेम श्रीकृष्णजी के प्रति अनन्य और निष्कपट है। उनके निवास में ईश्वर का सतत सान्निध्य होता है, जिससे आत्मा को शुद्धता और आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है। उनकी शक्ति और भक्ति श्रीकृष्णजी के रूप को प्रत्यक्ष करने वाली है—वे प्रेम की मधुरता को प्रकट करती हैं और भक्तों को भक्ति की सच्ची राह दिखाती हैं।
श्रीराधारानीजी का प्रेम श्रीकृष्णजी के साथ यमुना तट पर रासलीला में प्रकट होता है, जहाँ भावनाओं की सहजता और सौम्यता आत्मा को ईश्वरीय प्रेम की गहराई तक ले जाती हैं। उनकी भक्ति में सगुण भाव की सहजता और आत्मसमर्पण का पवित्र आलोक है।
वे भक्तजनों के समस्त दुखों को दूर करने वाली हैं। उनकी कृपा से जीवन में आनंद और आश्रय का संचार होता है। उनकी उपासना से भक्तों को माँ की कोमलता और करूणा का अनुभव होता है, जिससे मन शांति और स्थिरता में स्थित हो जाता है।
श्रीराधारानीजी की भक्ति से जीवन में दिव्यता का संचार होता है। उनकी आराधना से आत्मा प्रेम और श्रद्धा में रम जाती है, जिससे भक्ति की सहजता और प्रेम की सजीवता प्रकट होती है। उनके चरणों में निवेदन से जीवन में मंगलमय परिवर्तन आता है और भक्त उनके सान्निध्य में आत्मा की पवित्रता का अनुभव करता है।
श्रीराधारानीजी का प्रेम श्रीकृष्णजी के प्रति अनन्य और निष्कपट है। उनके निवास में ईश्वर का सतत सान्निध्य होता है, जिससे आत्मा को शुद्धता और आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है। उनकी शक्ति और भक्ति श्रीकृष्णजी के रूप को प्रत्यक्ष करने वाली है—वे प्रेम की मधुरता को प्रकट करती हैं और भक्तों को भक्ति की सच्ची राह दिखाती हैं।
श्रीराधारानीजी का प्रेम श्रीकृष्णजी के साथ यमुना तट पर रासलीला में प्रकट होता है, जहाँ भावनाओं की सहजता और सौम्यता आत्मा को ईश्वरीय प्रेम की गहराई तक ले जाती हैं। उनकी भक्ति में सगुण भाव की सहजता और आत्मसमर्पण का पवित्र आलोक है।
वे भक्तजनों के समस्त दुखों को दूर करने वाली हैं। उनकी कृपा से जीवन में आनंद और आश्रय का संचार होता है। उनकी उपासना से भक्तों को माँ की कोमलता और करूणा का अनुभव होता है, जिससे मन शांति और स्थिरता में स्थित हो जाता है।
श्रीराधारानीजी की भक्ति से जीवन में दिव्यता का संचार होता है। उनकी आराधना से आत्मा प्रेम और श्रद्धा में रम जाती है, जिससे भक्ति की सहजता और प्रेम की सजीवता प्रकट होती है। उनके चरणों में निवेदन से जीवन में मंगलमय परिवर्तन आता है और भक्त उनके सान्निध्य में आत्मा की पवित्रता का अनुभव करता है।