राधा की छवि देख मचल गए साँवरिया

राधा की छवि देख मचल गए साँवरिया

राधा की छवि देख,
मचल गए साँवरिया |
हँस-मुसकाय प्रेम रस चक्खूँ
नैनन में तुझे ऐसे रक्खूँ
ज्यों काजर की रेख,
पड़ेंगी तोसे भाँवरिया ॥
राधा की छवि देख,
मचल गए साँवरिया |

तू गोरी वृषभान-दुलारी
मैं काला मेरी चितवन कारी
काला ही मेरा भेष
के कारी कामरिया ॥
राधा की छवि देख,
मचल गए साँवरिया |

मैं राधा तेरे घर आऊँ
अँगना में बाँसुरी बजाऊँ
नृत्य करूँ दिल खोल
कमल-पे जैसे भामरिया ।।
राधा की छवि देख,
मचल गए साँवरिया |

अपनी सब सखियाँ बुलवा ले
हिलमिल के मोसे नाच नचा ले
गढ़ें प्रेम की मेख
झनन बोले पायलिया ॥
राधा की छवि देख,
मचल गए साँवरिया |
बरसाने की राधा प्यारी
वृन्दावन के कृष्ण मुरारी

सुख-सागर में खेल
तू ग्वालिन गामरिया ॥
राधा की छवि देख,
मचल गए साँवरिया |
 
शब्दार्थ: : भाँवरिया = भाँवर, कामरिया = छोटा कंबल, कमली, भामरिया = भौंरा, गामरिया = देहातन

सुंदर भजन में राधारानी और श्रीकृष्णजी के बीच के अनमोल प्रेम का चित्र उभरता है, जो मन को मस्ती और भक्ति में डुबो देता है। राधारानी की छवि देखकर श्रीकृष्णजी का मन मचल उठता है, जैसे कोई अपने प्रिय की एक झलक पाकर बेकरार हो जाए। उनकी हंसी और प्रेम भरी नजरें ऐसी हैं, मानो काजल की रेख सी आंखों में बस जाएं, और यह प्रेम भंवर की तरह दिल को खींच लेता है।

श्रीकृष्णजी का राधारानी को गोरी और वृषभान की दुलारी कहना, और खुद को काला बताना, उस प्रेम की सादगी और गहराई को दर्शाता है। यह ऐसा है, जैसे कोई अपने प्रिय की खूबसूरती के सामने अपनी सादगी को प्यार से स्वीकार करता हो। उनकी काली चितवन और भेष में वह जादू है, जो राधारानी को मोह लेता है।

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