श्री गोरख नाथ चालीसा नियमित पाठ

श्री गोरख नाथ चालीसा नियमित रूप से करें पाठ

श्री गोरखनाथ, योग और साधना के महान आचार्य, भारतीय संत परंपरा के अद्वितीय स्तंभ हैं। उन्होंने योग की शक्ति और साधना के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त किया। गोरखनाथ जी ने अष्टांग योग और हठयोग की शिक्षा देकर हजारों लोगों को जीवन की गूढ़ सच्चाइयों से परिचित कराया। उनकी शिक्षाएँ सांसारिक मोह से मुक्ति, आत्मसंयम और ईश्वर के साथ सच्चे संबंध स्थापित करने पर आधारित थीं। गोरखनाथ जी का जीवन और उनके उपदेश हमें यह सिखाते हैं कि सच्चा सुख बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि अपने भीतर के परमात्मा से जुड़ने में है।
दोहा
गणपति गिरजा पुत्र को सुमिरु बारम्बार |
हाथ जोड़ बिनती करू शारद नाम आधार ||
चोपाई
जय जय जय गोरख अविनाशी | कृपा करो गुरुदेव प्रकाशी ||
जय जय जय गोरख गुण ज्ञानी | इच्छा रूप योगी वरदानी ||
अलख निरंजन तुम्हरो नामा | सदा करो भक्त्तन हित कामा ||
नाम तुम्हारो जो कोई गावे | जन्म जन्म के दुःख मिट जावे ||
जो कोई गोरख नाम सुनावे | भूत पिसाच निकट नहीं आवे||
ज्ञान तुम्हारा योग से पावे | रूप तुम्हारा लख्या न जावे ||
निराकार तुम हो निर्वाणी | महिमा तुम्हारी वेद न जानी ||
घट - घट के तुम अंतर्यामी | सिद्ध चोरासी करे परनामी ||
भस्म अंग गल नांद विराजे | जटा शीश अति सुन्दर साजे ||
तुम बिन देव और नहीं दूजा | देव मुनिजन करते पूजा ||
चिदानंद संतन हितकारी | मंगल करण अमंगल हारी ||
पूरण ब्रह्मा सकल घट वासी | गोरख नाथ सकल प्रकाशी ||
गोरख गोरख जो कोई धियावे | ब्रह्म रूप के दर्शन पावे ||
शंकर रूप धर डमरू बाजे | कानन कुंडल सुन्दर साजे ||
नित्यानंद है नाम तुम्हारा | असुर मार भक्तन रखवारा ||
अति विशाल है रूप तुम्हारा | सुर नर मुनि जन पावे न पारा ||
दीनबंधु दीनन हितकारी | हरो पाप हम शरण तुम्हारी ||
योग युक्ति में हो प्रकाशा | सदा करो संतान तन बासा ||
प्रात : काल ले नाम तुम्हारा | सिद्धि बढे अरु योग प्रचारा ||
हठ हठ हठ गोरछ हठीले | मर मर वैरी के कीले ||
चल चल चल गोरख विकराला | दुश्मन मार करो बेहाला ||
जय जय जय गोरख अविनाशी | अपने जन की हरो चोरासी ||
अचल अगम है गोरख योगी | सिद्धि दियो हरो रस भोगी ||
काटो मार्ग यम को तुम आई | तुम बिन मेरा कोन सहाई ||
अजर अमर है तुम्हारी देहा | सनकादिक सब जोरहि नेहा ||
कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा | है प्रसिद्ध जगत उजियारा ||
योगी लखे तुम्हारी माया | पार ब्रह्म से ध्यान लगाया ||
ध्यान तुम्हारा जो कोई लावे | अष्ट सिद्धि नव निधि पा जावे ||
शिव गोरख है नाम तुम्हारा | पापी दुष्ट अधम को तारा ||
अगम अगोचर निर्भय नाथा | सदा रहो संतन के साथा ||
शंकर रूप अवतार तुम्हारा | गोपीचंद, भरथरी को तारा ||
सुन लीजो प्रभु अरज हमारी | कृपासिन्धु योगी ब्रहमचारी ||
पूर्ण आस दास की कीजे | सेवक जान ज्ञान को दीजे ||
पतित पवन अधम अधारा | तिनके हेतु तुम लेत अवतारा ||
अखल निरंजन नाम तुम्हारा | अगम पंथ जिन योग प्रचारा ||
जय जय जय गोरख भगवाना | सदा करो भक्त्तन कल्याना ||
जय जय जय गोरख अविनाशी | सेवा करे सिद्ध चोरासी ||
जो यह पढ़े गोरख चालीसा | होए सिद्ध साक्षी जगदीशा ||
हाथ जोड़कर ध्यान लगावे | और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे ||
बारह पाठ पढ़े नित जोई | मनोकामना पूर्ण होई ||



गणपति  गिरजा  पुत्र  को सुमिरु  बारम्बार श्री गोरख नाथ चालीसा
 
गोरखनाथ जी के प्रति यह स्तुति उनकी दिव्य शक्ति और उनकी करुणा को उजागर करती है। यह उनकी योग-साधना, आत्मज्ञान, और सिद्धत्व की महानता को वर्णित करने वाला एक भावपूर्ण अर्पण है। जब भक्त इस नाम का स्मरण करता है, तो जन्म-जन्म के कष्ट समाप्त हो जाते हैं—यह केवल एक मंत्र नहीं, बल्कि आत्मा के शुद्धिकरण का साधन बन जाता है।

गोरखनाथ जी का स्वरूप अलौकिक और अज्ञेय है—वे योग की पराकाष्ठा में स्थित हैं, जहां उनकी महिमा किसी एक रूप में बंधी नहीं रहती। वे निर्वाणी हैं, उनके स्वरूप को देखा नहीं जा सकता, लेकिन उनकी कृपा का अनुभव किया जा सकता है। वे प्रत्येक आत्मा के भीतर स्थित अंतर्यामी हैं, जिनकी कृपा से संपूर्ण विकार समाप्त हो जाते हैं।

सिद्धों, मुनियों और देवताओं तक को उनका मार्गदर्शन प्राप्त होता है—उनका ज्ञान कोई सीमित दृष्टि नहीं, बल्कि समग्र चेतना को प्रकाशित करने वाला है। जब ध्यान उनके नाम में स्थिर हो जाता है, तो अष्ट सिद्धियाँ और नव निधियाँ सहज रूप से उपलब्ध होती हैं—यह योग के उच्चतम स्तर का आशीर्वाद है।

गोरखनाथ जी की शक्ति केवल साधकों के लिए नहीं, बल्कि प्रत्येक जीव के लिए आश्रय है। वे दुष्टों का नाश करने वाले, भक्तों को संवारने वाले, और अपने ज्ञान से संपूर्ण जीवन को संतुलित करने वाले हैं। उनकी सिद्धता केवल भौतिक नहीं, बल्कि आत्मा की उस परिपूर्णता को दर्शाती है, जहाँ समस्त बंधन समाप्त हो जाते हैं।

जब भक्त श्रद्धा से उनका ध्यान करता है, तब उसके जीवन की प्रत्येक बाधा दूर हो जाती है। यह भक्ति कोई साधारण भक्ति नहीं, बल्कि योग और साधना की गहरी प्रक्रिया है, जहाँ नाम स्मरण ही मोक्ष का द्वार खोल देता है। यही वह अनुभव है, जहाँ जीवन और मृत्यु की सीमाएँ समाप्त हो जाती हैं, और केवल आत्मा की परम चेतना शेष रह जाती है। यही गोरखनाथ जी की कृपा है, जहाँ हर भक्त अपने अंतर्मन में दिव्यता का अनुभव करता है।
 
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

इस ब्लॉग पर आप पायेंगे मधुर और सुन्दर भजनों का संग्रह । इस ब्लॉग का उद्देश्य आपको सुन्दर भजनों के बोल उपलब्ध करवाना है। आप इस ब्लॉग पर अपने पसंद के गायक और भजन केटेगरी के भजन खोज सकते हैं....अधिक पढ़ें

Next Post Previous Post