जे मैं होन्दा दातिये मोर तेरे बागां दा
जे मैं होन्दा दातिये मोर तेरे बागां दा
मोर तेरे बागां दा,
तेरी बागी पहलां पांदा,
तैन्नु नच्च के विखांदा,
हो तेरे रज्ज-रज्ज दर्शन पांदा,
जे मैं होन्दा दातिए,
मोर तेरे बागां दा।।
छम-छम नच्चदा तेरे वेड़े,
हर दम रहंदा तेरे नेड़े,
जे मैं होन्दा दातिए,
फूल तेरे बागां दा,
तेरी माला विच्च लग जान्दा,
तेरे अंग-संग मुस्कांदा,
हो तेरे रज्ज-रज्ज दर्शन पांदा,
जे मैं होन्दा दातिए,
मोर तेरे बागां दा।।
तेरे चरणां तो बलिहारी,
वार देवां मैं खुशबू सारी,
जे मैं होन्दा दातिए,
बौड़ तेरे मंदरां दा,
झूले कंजका नू झूलांदा,
अपनी छां दे विच्च बैठांदा,
हो तेरे रज्ज-रज्ज दर्शन पांदा,
जे मैं होन्दा दातिए,
मोर तेरे बागां दा।।
आउंदे भक्त माँ तेरे प्यारे,
रज्ज-रज्ज लेंदे तेरे नजारे,
जे मैं होन्दा दातिए,
पत्थर तेरी गुफां दा,
चरणी भगतां दे लग जान्दा,
तेरी जय-जयकार बुलांदा,
हो तेरे रज्ज-रज्ज दर्शन पांदा,
जे मैं होन्दा दातिए,
मोर तेरे बागां दा।।
भक्त तेरे माँ आउंदे-जांदे,
दाती तेरा नाम ध्यांदे,
जे मैं होन्दा दातिए,
नीर तेरी गंगा दा,
सब दे पाप मैं झोली पांदा,
‘चंचल’ मन निर्मल हो जान्दा,
हो तेरे रज्ज-रज्ज दर्शन पांदा,
जे मैं होन्दा दातिए,
मोर तेरे बागां दा।।
जे मैं होन्दा दातिए,
मोर तेरे बागां दा,
तेरी बागी पहलां पांदा,
तैन्नु नच्च के विखांदा,
हो तेरे रज्ज-रज्ज दर्शन पांदा,
जे मैं होन्दा दातिए,
मोर तेरे बागां दा।।
Je Main Hunda Datiye Mor Tere Baaganda | Narendra Chanchal | Sherawali Maa Bhajan | Jagran Ki Raat
भजन में माँ के प्रति गहरी भक्ति और उनके चरणों में समर्पण की भावना गूँजती है, जो भक्त के मन को उनकी ममता के रंग में रंग देती है। यह वह पुकार है, जो माँ के बाग में मोर बनकर नाचने, उनकी माला में फूल बनकर सजने और उनके मंदिर में दीप बनकर जलने की चाह रखता है। यह प्रेम का वह रूप है, जो हर पल माँ के दर्शन और उनकी कृपा की आस में डूबा रहता है।
मोर बनकर नाचने और फूल बनकर माला में सजने की बात उस सादगी भरे समर्पण को दर्शाती है, जो माँ के प्रति हर भक्त का हृदय रखता है। जैसे कोई विद्यार्थी अपने गुरु की सेवा में हर छोटा-बड़ा कार्य करने को तत्पर रहता है, वैसे ही यहाँ भक्त माँ के वेड़े में नाचने और उनकी खुशबू बनकर बिखरने को तैयार है। यह वह प्रेम है, जो माँ के अंग-संग मुस्कुराता है।
माँ के चरणों में बलिहारी जाने और उनके मंदिर में दीप बनने की इच्छा उस गहरे विश्वास को प्रकट करती है, जो माँ की कृपा को हर दुख का अंत मानता है। जैसे कोई चिंतक जीवन की सैर में प्रेम और सेवा की गहराई को देखता है, वैसे ही यहाँ भक्त माँ की गुफा का पत्थर बनकर उनकी जय-जयकार करने को आतुर है। यह वह श्रद्धा है, जो हर भक्त को माँ के चरणों में लाती है।
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