सुरता होजा नी भजन वाली लार भजन

सुरता होजा नी भजन वाली लार भजन

सुरता होजा नी भजन वाली लार,
दिखाऊँ थाने राम नगरी,
राम नगरी रे थाने प्रेम नगरी,
सुरता होजा नी भजन री लार,
दिखाऊँ थाने राम नगरी।।

सुरता मत कर मान गुमान,
काया थारी ऐब सु भरी,
सुरता सारी थारी ऐब मीट जाय,
गुरा रे शरणे आया तो खरी,
सुरता होजा नी भजन री लार,
दिखाऊँ थाने राम नगरी।।

सुरता ऊपर थारे बेरीया रो वास,
मारेला तने ऐब री घड़ी,
सुरता सारी थारी एब मीट जाय,
सतगुरु रे चरणे आय तो खरी,
सुरता होजा नी भजन री लार,
दिखाऊँ थाने राम नगरी।।

सुरता सात समन्द दरीयाव,
अद बिच में नाव अटकी पड़ी,
सुरता किस विद उतरेला पार,
साची माया जाल में फसी,
सुरता होजा नी भजन री लार,
दिखाऊँ थाने राम नगरी।।

सुरता गुरु मिलीया नाथ गुलाब,
दिवी मने अमर जड़ी,
सुरता गावे गावे भवानी नाथ,
सतसंग से म्हारी काया सुधरी,
सुरता होजा नी भजन री लार,
दिखाऊँ थाने राम नगरी।।

सुरता होजा नी भजन वाली लार,
दिखाऊँ थाने राम नगरी,
राम नगरी रे थाने प्रेम नगरी,
सुरता होजा नी भजन री लार,
दिखाऊँ थाने राम नगरी।।



इस सुंदर भजन में जीवन के सबसे महत्वपूर्ण तत्व – प्रेम, विनम्रता, आत्म-सुधार और गुरु की महिमा को उजागर किया गया है। मनुष्य के अहंकार और मान-मर्यादा के भ्रम से मुक्त होकर जब वह अपने अंदर की कमजोरियों को स्वीकार करता है, तब उसके मन का भार हल्का होता है। आत्मा की गहराई में छुपी सारी दोष-तोड़ियाँ गुरु के चरणों में समर्पित होते ही मिट जाती हैं, और प्रेम की नगरी में प्रवेश होता है, जहाँ शांति और सच्चाई का वास होता है।

जीवन की नाव जब माया के समुद्र में फंसी होती है, तब सतगुरु की शरण में जाना ही उस नाव को पार लगाने का एकमात्र रास्ता बन जाता है। माया के जाल में फंसे मनुष्य को यह समझना आवश्यक है कि सांसारिक मोह-माया अस्थायी हैं, और वे केवल भ्रम का कारण हैं। गुरु की कृपा से ही मनुष्य उन भ्रमों से मुक्त होकर सच्चे प्रेम और आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ सकता है।

गुरु की उपस्थिति जीवन में अमर जड़ी की तरह होती है, जो मनुष्य के हृदय को पवित्रता और स्थिरता प्रदान करती है। सत्संग और भजन के माध्यम से मनुष्य की काया सुधरती है, उसकी आत्मा को शुद्धि मिलती है, और वह सांसारिक बंधनों से ऊपर उठकर आध्यात्मिक आनंद का अनुभव करता है। प्रेम और भक्ति की इस नगरी में कदम रखते ही मनुष्य को अहंकार की जंजीरें टूटती हुई दिखाई देती हैं।

यह भजन यह भी याद दिलाता है कि जीवन में कभी भी अपने आप को श्रेष्ठ या पूर्ण समझना उचित नहीं। मान और गर्व से मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप से दूर हो जाता है। विनम्रता और गुरु की शरण में समर्पण से ही आत्मा की सारी कमजोरियाँ दूर होती हैं। यह समर्पण प्रेम की नगरी में प्रवेश का द्वार खोलता है, जहाँ हर दिल में भगवान का वास होता है।
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