तिरछी चितवन से करके इशारे
तिरछी चितवन से करके इशारे
तिरछी चितवन से करके इशारे,चोट ऐसी जिगर पे ये मारे,
बिहारी तेरे नैना कजरारे,
ओय होय कजरारे,
तेरे नैना कजरारे,
बिहारी तेरे नैना कजरारे।।
मिल गए जब से नैनों से नैना,
एक पल भी ना आए रे चेना,
देख नैनो से ऐसे नजारे,
दीवाना हमें कर डारे,
बिहारी तेरे नैना कजरारे।।
मेरे नैनो को भाये ये नैना,
मेरे दिल मैं समाए ये नैना,
चले नैनों से तीर करारे,
सुध तन मन की सारी बिसारे,
बिहारी तेरे नैना कजरारे।।
नैनों से पिला दे तू साकी,
अब रहे होश ना कोई बाकी,
बहे नैनों से ऐसे पना रे,
जिया जाए ना अब बिन तुम्हारे,
बिहारी तेरे नैना कजरारे।।
तिरछी चितवन से करके इशारे,
चोट ऐसी जिगर पे ये मारे,
बिहारी तेरे नैना कजरारे,
ओय होय कजरारे,
तेरे नैना कजरारे,
बिहारी तेरे नैना कजरारे।।
ये चित्र विचित्र से नैना,
बोले मंद मंद कछु बैना,
राधा रसिक बिहारी मतवारे,
पागल के तुम्ही हो प्राण प्यारे,
बिहारी तेरे नैना कजरारे।।
तिरछी चितवन से करके इशारे
सुंदर भजन में श्रीकृष्णजी के खाटू धाम के प्रति भक्त की गहरी भक्ति और अटूट प्रेम का भाव झलकता है। यह ऐसा है, जैसे कोई अपने प्रिय के घर को अपनी जिंदगी का सबसे प्यारा ठिकाना मानकर वहाँ बार-बार लौटने की तड़प रखता हो। भक्त का कहना कि चाहे सारा जग रूठ जाए, पर खाटू का रास्ता न छूटे, उस अडिग निष्ठा को दर्शाता है, जैसे कोई अपने सबसे करीबी के लिए सब कुछ छोड़ दे।
सांवरे के रंग में रंगकर मस्तानी और मलंग होने का भाव उस मस्ती को प्रकट करता है, जो श्रीकृष्णजी की भक्ति में डूबने से मिलती है। यह ऐसा है, जैसे कोई प्रेम में खोकर दुनिया की परवाह भूल जाए। प्यार की पावन डोरी का कभी न टूटना उस अटूट रिश्ते को दर्शाता है, जो भक्त और श्याम के बीच है।
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