माई तू सकल जगत आधार भजन

माई तू सकल जगत आधार भजन

(मुखड़ा)
माई तू सकल जगत आधार,
जननी अद्भुत रूप तिहारो,
को करि सकै संभार,
तू ही परमप्रकृति अरु तू ही,
परमपुरुष करतार,
माई तू सकल जगत आधार।।

(अंतरा)
किंचिन्मात्र भेद कछु नाहीं,
गुणिजन कहत विचार,
मतिभ्रम भेद उपजै उर में,
समय सृजन संसार,
माई तू सकल जगत आधार।।

कीन्हें प्रकट रजोगुण परवश,
ब्रह्मा सिरजनहार,
महासरस्वती करती जिनकी,
आठों याम सुमार,
माई तू सकल जगत आधार।।

सत्वगुणन से पूरन कीन्हों,
नारायण अवतार,
कमला संग रहें क्षीरोदधि,
जग के पालनहार,
माई तू सकल जगत आधार।।

कीन्हें प्रकट तमोगुण धारक,
शिव जग हेतु संहार,
जो नित करते रमण,
भवानी संग श्रीशैल विहार,
माई तू सकल जगत आधार।।

भुवनेश्वरी तव श्रीचरणों में,
करूँ सतत मनुहार,
काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह पर,
माते करो प्रहार,
माई तू सकल जगत आधार।।

जन्म जन्म मम मति भक्ति में,
लागी रहे तिहार,
मैं अशोक तव चरण शरण हूँ,
रहो हृदय साकार,
माई तू सकल जगत आधार।।

(अंतिम पुनरावृत्ति)
माई तू सकल जगत आधार,
जननी अद्भुत रूप तिहारो,
को करि सकै संभार,
तू ही परमप्रकृति अरु तू ही,
परमपुरुष करतार,
माई तू सकल जगत आधार।।


Mai tu sakal jagat aadhar

यह भजन माँ के दिव्य स्वरूप की आराधना करता है—उन्हें सृष्टि की आधारशिला मानते हुए, रचना, पालन, और संहार की अधिष्ठात्री शक्ति के रूप में नमन करता है। यह भाव केवल भौतिक या लौकिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना को प्रकट करता है, जहाँ माँ स्वयं ही परम शक्ति और परम सत्य के रूप में प्रतिष्ठित होती हैं।

रजोगुण, सत्वगुण और तमोगुण से ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति, उनके विविध कार्य और उनके स्वरूपों की महिमा, यह सभी इस भजन में अत्यंत सुंदरता से समाहित हैं। माँ के श्रीचरणों में समर्पण, लोभ, मोह, क्रोध आदि पर विजय की कामना, और जन्म-जन्म तक उनकी भक्ति में रमे रहने की अभिलाषा, यह सभी भाव भक्ति के शुद्धतम रूप को दर्शाते हैं।

यह भजन केवल स्तुति नहीं, बल्कि आत्मा की वह गहन पुकार है, जो माँ के चरणों में स्थिर होना चाहती है। यही भक्ति की पराकाष्ठा है, जहाँ प्रेम, श्रद्धा और आत्मसमर्पण एक-दूसरे में पूर्ण रूप से विलीन हो जाते हैं।

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