आदित्य ह्रदय स्तोत्र तरक्की और सफलता के लिए

आदित्य हृदय स्तोत्र सूर्य देवता आदित्य को समर्पित है। यह भजन रामायण के युद्ध कांड में वर्णित है, जहाँ भगवान राम को रावण से युद्ध करने से पहले ऋषि अगस्त्य द्वारा यह स्तोत्र सिखाया गया था। इस स्तोत्र में आदित्य को ब्रह्मांड के निर्माता, पालनकर्ता और विनाशक के रूप में वर्णित किया गया है। उन्हें सभी शक्तियों के स्रोत के रूप में भी वर्णित किया गया है।

आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने के कई लाभ होते हैं। यह स्तोत्र व्यक्ति को शक्ति, साहस और बुद्धि देता है। जीवन की समस्त बाधाओं को दूर कर हर क्षेत्र में लाभ मिलता है।आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने का सबसे अच्छा समय सुबह सूर्योदय के समय होता है। हालांकि, यह स्तोत्र किसी भी समय पाठ किया जा सकता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से पहले व्यक्ति को स्नान करके शुद्ध हो जाना चाहिए और एक शांत स्थान पर बैठना चाहिए।

आदित्य ह्रदय स्तोत्र तरक्की और सफलता के लिए


आदित्य ह्रदय स्तोत्र लिरिक्स Aadity Hridy Stotra Meaning Benefits Lyrics

विनियोग
ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः,
आदित्येहृदयभूतो
भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्
रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।
ऋष्यादिन्यास
ॐ अगस्त्यऋषये नमः, शिरसि।
अनुष्टुपछन्दसे नमः,मुखे।
आदित्यहृदयभूतब्रह्मदेवतायै नमः हृदि।
ॐ बीजाय नमः, गुह्यो। रश्मिमते शक्तये नमः, पादयो।
ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्रीकीलकाय नमः नाभौ।
करन्यास
ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ विवरवते अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादि अंगन्यास,
ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः। ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा।
ॐ देवासुरनमस्कृताय शिखायै वषट्।
ॐ विवस्वते कवचाय हुम्। ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट्।

इस प्रकार न्यास करके निम्नांकित मंत्र से भगवान सूर्य का ध्यान एवं नमस्कार करना चाहिए-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो
देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

आदित्यहृदय स्तोत्र
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌ ।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌ ॥1॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌ ।
उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्‌ ।
येन सर्वानरीन्‌ वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌ ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्‌ ॥4॥

सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌ ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्‌ ॥5॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्‌ ।
पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्‌ ॥6॥

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: ।
एष देवासुरगणांल्लोकान्‌ पाति गभस्तिभि: ॥7॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: ।
महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥8॥

पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: ।
वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥9॥

आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्‌ ।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥10॥

हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्‌ ।
तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्‌ ॥11॥

हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: ।
अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥12॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥

आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:।
कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥14॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्‌ नमोऽस्तु ते ॥15॥

नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥16॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: ।
नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥17॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: ।
नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥19॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥20॥

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥22॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्‌ ॥23॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥24॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन्‌ पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥


पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम्‌ ।
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥26॥

अस्मिन्‌ क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्‌ ॥27॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्‌ तदा ॥
धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान्‌ ॥28॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्‌ ।
त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्‌ ॥29॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्‌ ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्‌ ॥30॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31॥
।।सम्पूर्ण ।।
 

आदित्य हृदय स्तोत्र: जीवन के कष्टों का समाधान

सूर्य ग्रह का महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य ग्रह को शक्ति, मान-सम्मान, उच्च पद, प्रतिष्ठा और सरकारी नौकरी का कारक माना गया है। जिनकी कुंडली में सूर्य प्रबल होता है, वे व्यक्ति जीवन में सफलता और सरकारी नौकरी के योग बना सकते हैं। वहीं, जिनकी कुंडली में सूर्य कमजोर होता है, उन्हें जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

कुंडली में सूर्य मजबूत करने का उपाय
सूर्य को मजबूत करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं, जिनमें आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ सबसे प्रभावी माना गया है। इसे सूर्योदय के समय पढ़ने से न केवल सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं बल्कि उनके आशीर्वाद से जीवन के कई कष्ट समाप्त हो जाते हैं।

आदित्य हृदय स्तोत्र का महत्व
  • आदित्य हृदय स्तोत्र का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है।
  • ऋषि अगस्त्य ने यह स्तोत्र भगवान श्रीराम को रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए दिया था।
  • शास्त्रों में इसे अत्यंत शुभ और प्रभावी माना गया है।
  • इसका नियमित पाठ जीवन की बाधाओं को दूर कर मनोकामनाओं को पूर्ण करता है।
रविवार का विशेष महत्व
आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ रोज़ किया जा सकता है, लेकिन रविवार के दिन इसका विशेष महत्व है। इस दिन सूर्योदय के समय स्तोत्र का पाठ करने से सूर्यदेव जल्दी प्रसन्न होते हैं।

आदित्य हृदय स्तोत्र का लाभ
  • कुंडली में सूर्य की स्थिति प्रबल होती है और सरकारी नौकरी मिलने के योग बनते हैं।
  • स्तोत्र का नियमित पाठ करने से आत्मविश्वास बढ़ता है और मानसिक शांति मिलती है।
  • यह स्तोत्र जीवन की बाधाओं को दूर करता है और सकारात्मक ऊर्जा लाता है।
  • सूर्यदेव की कृपा से जीवन में सफलता और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • नियमित पाठ से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में राहत मिलती है।
आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कैसे करें?
  • सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।
  • सूर्य को तांबे के लोटे में जल अर्पित करें।
  • शांत मन से पूर्व दिशा की ओर मुख करके आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
  • पाठ समाप्त होने के बाद सूर्यदेव को प्रणाम करें और मनोकामना प्रकट करें।

आदित्य हृदय स्तोत्र न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि ज्योतिष शास्त्र में भी इसका विशेष स्थान है। इसके नियमित पाठ से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आता है। सरकारी नौकरी, प्रतिष्ठा, और स्वास्थ्य लाभ के लिए यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावी माना गया है। “हे आदित्य देव, आपकी कृपा से मेरे जीवन के सभी कष्ट समाप्त हों। कृपया मुझे अपने आशीर्वाद से सफल और समृद्ध बनाएं।”
 

आदित्य हृदय स्तोत्र - Shree Aditya Hridaya Stotram In Sanskrit Shlok - Prem Parkash Dubey
 
आदित्य ह्रदय स्तोत्र भगवान सूर्य की पवित्र स्तुति है। यह स्तोत्र भगवान राम को महर्षि अगस्त्य ने दिया था, जब वे रावण से युद्ध करने के लिए अयोध्या से लंका जा रहे थे। आदित्य हृदय स्तोत्र के अनेक फायदे हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
  • इस स्तोत्र में सूर्यदेव की स्तुति है, जो कि सभी ग्रहों के अधिपति हैं। सूर्यदेव को तेज, यश, आरोग्यता, आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति का कारक माना जाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से सूर्यदेव की कृपा प्राप्त होती है और इन सभी गुणों की प्राप्ति होती है।
  • यह स्तोत्र चिंता, शोक और रोगों को दूर करता है.
  • यह स्तोत्र आयु और आरोग्य प्रदान करता है।
  • यह स्तोत्र शत्रुओं पर विजय और कार्यों में सफलता प्राप्त करता है।
  • यह स्तोत्र नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और सकारात्मक ऊर्जा को बढाता है।
  • यह स्तोत्र आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति को बढ़ाता है।
  • मन को शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

इस ब्लॉग पर आप पायेंगे मधुर और सुन्दर भजनों का संग्रह । इस ब्लॉग का उद्देश्य आपको सुन्दर भजनों के बोल उपलब्ध करवाना है। आप इस ब्लॉग पर अपने पसंद के गायक और भजन केटेगरी के भजन खोज सकते हैं....अधिक पढ़ें

Next Post Previous Post