उवसग्गहरं स्तोत्र लिरिक्स मीनिंग Uvsaggarharan Stotra Lyrics

उवसग्गहरं स्तोत्र एक जैन स्तोत्र है जो भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति करता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से उपसर्गों (कष्टों) से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। यह स्तोत्र कुल 5 गाथाओं का है और इसे संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस स्तोत्र में भगवान पार्श्वनाथ को विषधरों के विष को नाश करने वाले, मंगल और कल्याण के आवास तथा उपसर्गों को हरने वाले के रूप में वर्णित किया गया है। उवसग्गहरं स्तोत्र का पाठ करने का सबसे अच्छा समय सूर्योदय के समय है। हालांकि, इसे दिन में किसी भी समय पाठ किया जा सकता है। पाठ करने से पहले स्नान करना चाहिए और स्वच्छ कपड़े पहनने चाहिए। पाठ करते समय ध्यान केंद्रित करना चाहिए और भगवान पार्श्वनाथ की कृपा प्राप्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।

उवसग्गहरं स्तोत्र मीनिंग Uvsaggarharan Stotra Uvsaggaharan Strotam

उवसग्गहरं स्तोत्र लिरिक्स मीनिंग Uvsaggarharan Stotra Lyrics
 
श्रीभद्रबाहुप्रसादात् एष योग: पफलतु
उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघण-मुक्कं
विसहर-विस-णिण्णासं मंगल कल्लाण आवासं ।
विसहर-फुल्लिंगमंतं कंठे धारेदि जो सया मणुवो
तस्स गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ।२।
चिट्ठदु दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होदि
णर तिरियेसु वि जीवा, पावंति ण दुक्ख-दोगच्चं ।३।
तुह सम्मत्ते लद्धे चिंतामणि कप्प-पायव-सरिसे
पावंति अविग्घेणं जीवा अयरामरं ठाणं ।४।
इह संथुदो महायस भत्तिब्भरेण हिदयेण
ता देव! दिज्ज बोहिं, भवे-भवे पास जिणचंदं ।५।
ॐ, अमरतरु, कामधेणु, चिंतामणि, कामकुंभमादिया
सिरि पासणाह सेवाग्गहणे सव्वे वि दासत्तं ।६।
उवसग्गहरं त्थोत्तं कादूणं जेण संघ कल्लाणं
करुणायरेण विहिदं स भद्दबाहु गुरु जयदु ।७।

उवासगग्हारम स्तोत्र तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की स्तुति है। उवासगग्हारम स्तोत्र स्तोत्र की रचना आचार्य भद्रबाहु ने की थी, जिनका काल दूसरी-चौथी शताब्दी ईस्वी सन् में माना जाता है । उवासगग्हारम स्तोत्र का जाप यदि पूर्ण निष्ठां और भक्ति से किया जाय तो समस्त बढ़ाएं और कष्ट दूर होते हैं। इस स्त्रोत का जाप पद्मासन में बैठकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करते हुए किया जान चाहिए। अपने मूल रूप में उवासगग्हारम स्तोत्र बहुत शक्तिशाली माना था। लेकिन लोगों ने छोटे विषयों और क्षुद्र भौतिक इच्छाओं के लिए इस स्तोत्र का अत्यधिक उपयोग करना शुरू कर दिया। उसी के दुरुपयोग के डर से, स्तोत्र के दो गाथा (छंद) को समाप्त कर दिया गया। आज कुछ पुस्तकों में, दो छंदों से कम, लेकिन आज भी ऐसे किसी भी अन्य प्रार्थना की तुलना में अधिक शक्तिशाली माना जाता है।
उवसग्गहरं का हिंदी में अनुवाद
उवसग्गहरं- पासं, पासं वंदामि कम्म-घण मुक्कं ।
विसहर विस निन्नासं, मंगल कल्लाण आवासं ।।१।।

भावार्थ : प्रगाढ़ कर्म – मैं नमन करता हूँ भगवन पार्शवनाथ को जो हैं समूह से सर्वथा मुक्त, विषधरो के विष को नाश करने वाले, मंगल और कल्याण के आवास तथा उपसर्गों को हरने वाले भगवन पार्शवनाथ को।

विसहर फुलिंग मंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ ।
तस्स गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ।।२।।

भावार्थ :  जो मनुष्य  विष को हरने वाले इस मन्त्ररुपी- स्फुलिंग को अपने कंठ में धारण करता है, उस व्यक्ति के समस्त दुषग्रह , बिमारी , दुष्ट, शत्रु एवं बुढापे के संताप शांत हो जाते है।

चिट्ठउ दुरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहु फलो होइ ।
नरतिरिएसु- वि जीवा, पावंति न दुक्ख-दोगच- चं।।३।।

भावार्थ : हे ईश्वर आपको प्रणाम करना ही अत्यंत लाभदायक है और इस विषहर मंत्र की महिमा भी बहुत फलदायी है।  आपको नमन करने वाला मनुष्य और तिर्यंच गतियों में रहने वाले जीव भी दुःख और दुर्गति को प्राप्त नहीं करते है।
तुह सम्मत्ते लद्धे, चिंतामणि कप्पपाय वब्भहिए ।
पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं ।।४।।

भावार्थ :  वे व्यक्ति आपको भलीभांति प्राप्त करके चिंतामणि और कल्पवृक्ष को प्राप्त कर लेते हैं, और वे जीव बिना किसी विघ्न के अजर, अमर पद मोक्ष को प्राप्त करते है।

इअ संथुओ महायस, भत्तिब्भर निब्भरेण हिअएण ।
ता देव दिज्ज बोहिं, भवे भवे पास जिणचंद ।।५।।

भावार्थ :  हे महान यशस्वी ! मैं भक्ति से भरे हुए हृदय से आपकी स्तुति और वंदना करता हूँ हे देव! जिन चन्द्र पार्शवनाथ ! आप मुझे प्रत्येक भाव में बोधि (रत्नत्रय) प्रदान करे।


Uvasaggaharam Stotra  ( ‘उपसग्गहर स्तोत्र’ ) - Jukebox - Singer Manali Sankhala

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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