हनुमान तांडव स्त्रोत लिरिक्स Hanuman Tandav Strot Lyrics, Hanuman Strotam / Bhajan
यह हनुमान तांडव स्त्रोत सावधानी से पढ़ना चाहिए। इसके पढ़ने से हर तरह के संकट, रोग, शोक आदि सभी तत्काल प्रभाव से समाप्त हो जाते हैं।
वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम्।
रक्ताङ्गरागशोभाढयं शोणापुच्छं कपीश्वरम्।।
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं,
दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं,
समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्।।१।।
रक्ताङ्गरागशोभाढयं शोणापुच्छं कपीश्वरम्।।
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं,
दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं,
समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्।।१।।
सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं
वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराSधिनाथ
आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः।।२।।
वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराSधिनाथ
आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः।।२।।
सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना,
भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ।
कृतो हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ,
विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम।।३।।
सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः,
कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः
कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभु।।४।।
प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं,
फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत्।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्,
सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम्।।५।।
नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं
गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलङ्कदाहकं सुनायकं
विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम्।।६।।
रघुत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं
दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रिकाप्रदर्शकम्।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम्
सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम्।।७।।
भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ।
कृतो हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ,
विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम।।३।।
सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः,
कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः
कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभु।।४।।
प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं,
फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत्।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्,
सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम्।।५।।
नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं
गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलङ्कदाहकं सुनायकं
विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम्।।६।।
रघुत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं
दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रिकाप्रदर्शकम्।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम्
सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम्।।७।।
नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता
महासहा यता यया द्वयोर्हितं हृभूत्स्वकृत्यतः।
सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां
निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम्।।८।।
इमं स्तवं कुजेsह्नि यः पठेत्सुचेतसा
नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न
शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह।।९।।
नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेsनङ्गवासरे।
लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम्।।१०।।
।।इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्।।
।।जय बोलो सियावर रामचन्द्रजी की जय हो।।
।।जय बोलो पवनपुत्र हनुमानजी की जय।।
महासहा यता यया द्वयोर्हितं हृभूत्स्वकृत्यतः।
सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां
निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम्।।८।।
इमं स्तवं कुजेsह्नि यः पठेत्सुचेतसा
नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न
शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह।।९।।
नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेsनङ्गवासरे।
लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम्।।१०।।
।।इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्।।
।।जय बोलो सियावर रामचन्द्रजी की जय हो।।
।।जय बोलो पवनपुत्र हनुमानजी की जय।।
वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम्।
रक्ताङ्गरागशोभाढयं शोणापुच्छं कपीश्वरम्।।
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं,
दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं,
समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्।।१।।
इस श्लोक में हनुमान जी के विभिन्न रूपों और उनके गुणों का वर्णन किया गया है।
पहली पंक्ति में हनुमान जी के रंग और वस्त्र का वर्णन किया गया है। वे सिंदूर के रंग के हैं और लाल रंग के वस्त्र धारण करते हैं। दूसरी पंक्ति में हनुमान जी के शरीर के रंग का वर्णन किया गया है। उनके अंग रक्त के समान लाल हैं। तीसरी पंक्ति में हनुमान जी की उपासना की गई है। उन्हें पवनपुत्र, भक्तों के हृदय को आनंद देने वाले, सूर्य को भक्षण करने वाले और समस्त भक्तों के रक्षक के रूप में नमस्कार किया गया है। चौथी पंक्ति में हनुमान जी की कृपा का वर्णन किया गया है। वे अपने भक्तों के सभी कार्यों को सिद्धि प्रदान करते हैं और उनके शत्रुओं को बाधा पहुंचाते हैं। पांचवी पंक्ति में हनुमान जी की तांडव रूप की स्तुति की गई है। वे समुद्र में गमन करने और समस्त कार्यों में सिद्धि देने वाले हैं। हनुमान तांडव स्तोत्र एक बहुत ही शक्तिशाली स्तोत्र है। इसका पाठ करने से मनुष्य को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है। यह स्तोत्र भक्तों के लिए एक वरदान है। हनुमान तांडव स्तोत्र के प्रथम श्लोक का अर्थ बहुत ही अच्छी तरह से समझा है और उसे सरल भाषा में व्यक्त किया है।
रक्ताङ्गरागशोभाढयं शोणापुच्छं कपीश्वरम्।।
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं,
दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं,
समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्।।१।।
इस श्लोक में हनुमान जी के विभिन्न रूपों और उनके गुणों का वर्णन किया गया है।
पहली पंक्ति में हनुमान जी के रंग और वस्त्र का वर्णन किया गया है। वे सिंदूर के रंग के हैं और लाल रंग के वस्त्र धारण करते हैं। दूसरी पंक्ति में हनुमान जी के शरीर के रंग का वर्णन किया गया है। उनके अंग रक्त के समान लाल हैं। तीसरी पंक्ति में हनुमान जी की उपासना की गई है। उन्हें पवनपुत्र, भक्तों के हृदय को आनंद देने वाले, सूर्य को भक्षण करने वाले और समस्त भक्तों के रक्षक के रूप में नमस्कार किया गया है। चौथी पंक्ति में हनुमान जी की कृपा का वर्णन किया गया है। वे अपने भक्तों के सभी कार्यों को सिद्धि प्रदान करते हैं और उनके शत्रुओं को बाधा पहुंचाते हैं। पांचवी पंक्ति में हनुमान जी की तांडव रूप की स्तुति की गई है। वे समुद्र में गमन करने और समस्त कार्यों में सिद्धि देने वाले हैं। हनुमान तांडव स्तोत्र एक बहुत ही शक्तिशाली स्तोत्र है। इसका पाठ करने से मनुष्य को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है। यह स्तोत्र भक्तों के लिए एक वरदान है। हनुमान तांडव स्तोत्र के प्रथम श्लोक का अर्थ बहुत ही अच्छी तरह से समझा है और उसे सरल भाषा में व्यक्त किया है।
हनुमान तांडव स्तोत्र एक बहुत ही शक्तिशाली स्तोत्र है। इसके पाठ से सभी प्रकार के संकट, रोग, शोक आदि समाप्त हो जाते हैं। यह स्तोत्र हनुमान जी की तांडव रूप की स्तुति करता है। हनुमान जी का तांडव रूप अत्यंत शक्तिशाली और भयंकर है। यह रूप सभी प्रकार के नकारात्मक शक्तियों का नाश करने में सक्षम है।
हनुमान तांडव स्तोत्र के पाठ के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं:
हनुमान तांडव स्तोत्र को सावधानी से पढ़ना चाहिए। इसका पाठ करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
हनुमान तांडव स्तोत्र के पाठ के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं:
- यह स्तोत्र सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति दिलाता है।
- यह स्तोत्र रोगों को दूर करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है।
- यह स्तोत्र शोक को दूर करता है और खुशी प्रदान करता है।
- यह स्तोत्र शत्रुओं को पराजित करता है और सफलता दिलाता है।
- यह स्तोत्र मनोकामनाओं की पूर्ति करता है।
हनुमान तांडव स्तोत्र को सावधानी से पढ़ना चाहिए। इसका पाठ करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- स्तोत्र को एकाग्रचित होकर और भक्तिभाव से पढ़ना चाहिए।
- स्तोत्र को शुद्ध स्थान पर और शुद्ध मन से पढ़ना चाहिए।
- स्तोत्र को नियमित रूप से पढ़ना चाहिए।
हनुमान तांडव स्तोत्र एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान हनुमान के तांडव रूप की स्तुति करता है। यह स्तोत्र 10 श्लोकों में विभाजित है, जिनमें प्रत्येक श्लोक में हनुमान जी की एक अलग विशेषता का वर्णन किया गया है।
हनुमान तांडव स्तोत्र के पाठ से सभी प्रकार के संकट, रोग, शोक आदि समाप्त हो जाते हैं। यह स्तोत्र हनुमान जी की तांडव रूप की स्तुति करता है। हनुमान जी का तांडव रूप अत्यंत शक्तिशाली और भयंकर है। यह रूप सभी प्रकार के नकारात्मक शक्तियों का नाश करने में सक्षम है।
हनुमान तांडव स्तोत्र के पाठ के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं:
यह स्तोत्र सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति दिलाता है।
यह स्तोत्र रोगों को दूर करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है।
यह स्तोत्र शोक को दूर करता है और खुशी प्रदान करता है।
यह स्तोत्र शत्रुओं को पराजित करता है और सफलता दिलाता है।
यह स्तोत्र मनोकामनाओं की पूर्ति करता है।
हनुमान तांडव स्तोत्र को सावधानी से पढ़ना चाहिए। इसका पाठ करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
स्तोत्र को एकाग्रचित होकर और भक्तिभाव से पढ़ना चाहिए।
स्तोत्र को शुद्ध स्थान पर और शुद्ध मन से पढ़ना चाहिए।
स्तोत्र को नियमित रूप से पढ़ना चाहिए।
यदि आप हनुमान तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहते हैं, तो आप किसी योग्य पंडित से मार्गदर्शन ले सकते हैं।
हनुमान तांडव स्तोत्र
वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् ।
रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम् ॥
अर्थ:-मैं उस कपीश्वर की वन्दना करता हूँ, जो सिंदूर के रंग के हैं, लोहित वस्त्र धारण किए हैं, रक्त-राग से शोभायमान हैं और जिनकी पूंछ लाल है।
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं,
दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम् ।
अर्थ:-मैं उस भगवान को भजता हूँ, जो समीर के समान आनंद देने वाले हैं, भक्तों के हृदय को रंजित करने वाले हैं, सूर्य के रूप को भक्षण करने वाले हैं और समस्त भक्तों की रक्षा करने वाले हैं।
श्लोक 3
सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न ।
अर्थ:- हे सुकण्ठ! यदि तुम किसी के द्वारा भयभीत हो, तो उसे शीघ्र ही धैर्य धारण करने को कहो। उसे भय कभी नहीं होगा।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ
हनुमान तांडव स्तोत्र के पाठ से सभी प्रकार के संकट, रोग, शोक आदि समाप्त हो जाते हैं। यह स्तोत्र हनुमान जी की तांडव रूप की स्तुति करता है। हनुमान जी का तांडव रूप अत्यंत शक्तिशाली और भयंकर है। यह रूप सभी प्रकार के नकारात्मक शक्तियों का नाश करने में सक्षम है।
हनुमान तांडव स्तोत्र के पाठ के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं:
यह स्तोत्र सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति दिलाता है।
यह स्तोत्र रोगों को दूर करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है।
यह स्तोत्र शोक को दूर करता है और खुशी प्रदान करता है।
यह स्तोत्र शत्रुओं को पराजित करता है और सफलता दिलाता है।
यह स्तोत्र मनोकामनाओं की पूर्ति करता है।
हनुमान तांडव स्तोत्र को सावधानी से पढ़ना चाहिए। इसका पाठ करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
स्तोत्र को एकाग्रचित होकर और भक्तिभाव से पढ़ना चाहिए।
स्तोत्र को शुद्ध स्थान पर और शुद्ध मन से पढ़ना चाहिए।
स्तोत्र को नियमित रूप से पढ़ना चाहिए।
यदि आप हनुमान तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहते हैं, तो आप किसी योग्य पंडित से मार्गदर्शन ले सकते हैं।
हनुमान तांडव स्तोत्र
वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् ।
रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम् ॥
अर्थ:-मैं उस कपीश्वर की वन्दना करता हूँ, जो सिंदूर के रंग के हैं, लोहित वस्त्र धारण किए हैं, रक्त-राग से शोभायमान हैं और जिनकी पूंछ लाल है।
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं,
दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम् ।
अर्थ:-मैं उस भगवान को भजता हूँ, जो समीर के समान आनंद देने वाले हैं, भक्तों के हृदय को रंजित करने वाले हैं, सूर्य के रूप को भक्षण करने वाले हैं और समस्त भक्तों की रक्षा करने वाले हैं।
श्लोक 3
सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न ।
अर्थ:- हे सुकण्ठ! यदि तुम किसी के द्वारा भयभीत हो, तो उसे शीघ्र ही धैर्य धारण करने को कहो। उसे भय कभी नहीं होगा।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ
आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ।
अर्थ:- वानराधिनाथ ने ऐसा कहने पर, सुकण्ठ ने धैर्य धारण किया और रामदूत की शरण ली।
सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना,
भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ ।
अर्थ:-उसके दोनों हाथों में सोते हुए अपने भाइयों को लेकर, वह सुदीर्घ भुजाओं और विशाल नेत्रों वाला, पुच्छ के गुच्छ से शोभायमान था।
सुन्दरं दिव्यरूपं तं दृष्ट्वा प्रभुचरितं,
ततः प्रभुचरितं तं दृष्ट्वा प्रभुचरितं,
प्रभुचरितं तं दृष्ट्वा प्रभुचरितं ।
अर्थ:-सुन्दर दिव्य रूप को देखकर, सुकण्ठ ने प्रभु के चरणों में शीश झुकाया। प्रभु के चरणों में शीश झुकाकर, सुकण्ठ ने प्रभु के चरणों में शीश झुकाया। प्रभु के चरणों में शीश झुकाकर, सुकण्ठ ने प्रभु के चरणों में शीश झुकाया।
अतिभयं निवारयिष्यसि सदा माम्,
प्रभु! कृपा करोति त्वं मयि सदा ।
अर्थ:-हे प्रभु! आप सदैव मेरे भय को दूर करेंगे। आप सदैव मुझ पर कृपा करेंगे।
इति प्रार्थितः रामदूतः कपीश्वरः,
सुकण्ठं रक्षार्थं गतः क्षणमात्रे ।
अर्थ:-रामदूत ने ऐसा प्रार्थना करने पर, क्षणमात्र में कपीश्वर सुकण्ठ की रक्षा के लिए गए।
आकाशमार्गेण गत्वा शीघ्रं मारुतिः,
सुकण्ठं रक्षार्थं कृत्वा हननं रावणस्य ।
अर्थ:-शीघ्र ही आकाश मार्ग से जाकर, मारुति ने सुकण्ठ की रक्षा के लिए रावण का वध किया।
सौम्यं रूपं धरिष्यसि सदा माम्,
प्रभु! कृपा करोति त्वं मयि सदा ।
अर्थ:- हे प्रभु! आप सदैव मेरे लिए सौम्य रूप धारण करेंगे। आप सदैव मुझ पर कृपा करेंगे।
अर्थ:- वानराधिनाथ ने ऐसा कहने पर, सुकण्ठ ने धैर्य धारण किया और रामदूत की शरण ली।
सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना,
भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ ।
अर्थ:-उसके दोनों हाथों में सोते हुए अपने भाइयों को लेकर, वह सुदीर्घ भुजाओं और विशाल नेत्रों वाला, पुच्छ के गुच्छ से शोभायमान था।
सुन्दरं दिव्यरूपं तं दृष्ट्वा प्रभुचरितं,
ततः प्रभुचरितं तं दृष्ट्वा प्रभुचरितं,
प्रभुचरितं तं दृष्ट्वा प्रभुचरितं ।
अर्थ:-सुन्दर दिव्य रूप को देखकर, सुकण्ठ ने प्रभु के चरणों में शीश झुकाया। प्रभु के चरणों में शीश झुकाकर, सुकण्ठ ने प्रभु के चरणों में शीश झुकाया। प्रभु के चरणों में शीश झुकाकर, सुकण्ठ ने प्रभु के चरणों में शीश झुकाया।
अतिभयं निवारयिष्यसि सदा माम्,
प्रभु! कृपा करोति त्वं मयि सदा ।
अर्थ:-हे प्रभु! आप सदैव मेरे भय को दूर करेंगे। आप सदैव मुझ पर कृपा करेंगे।
इति प्रार्थितः रामदूतः कपीश्वरः,
सुकण्ठं रक्षार्थं गतः क्षणमात्रे ।
अर्थ:-रामदूत ने ऐसा प्रार्थना करने पर, क्षणमात्र में कपीश्वर सुकण्ठ की रक्षा के लिए गए।
आकाशमार्गेण गत्वा शीघ्रं मारुतिः,
सुकण्ठं रक्षार्थं कृत्वा हननं रावणस्य ।
अर्थ:-शीघ्र ही आकाश मार्ग से जाकर, मारुति ने सुकण्ठ की रक्षा के लिए रावण का वध किया।
सौम्यं रूपं धरिष्यसि सदा माम्,
प्रभु! कृपा करोति त्वं मयि सदा ।
अर्थ:- हे प्रभु! आप सदैव मेरे लिए सौम्य रूप धारण करेंगे। आप सदैव मुझ पर कृपा करेंगे।
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