अपार धन-संपदा के लिए कनकधारा स्तोत्र लिरिक्स Kanakdhara Strot Lyrics, Kuber Bhajan संस्कृत-हिंदी स्त्रोत
कनकधारा स्तोत्र देवी लक्ष्मी को आकर्षित करने वाला मंत्र है। यह एक संस्कृत स्तोत्र है जिसकी रचना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी। इस स्तोत्र में देवी लक्ष्मी की रूप-सौंदर्य, गुण-गाथा और कृपा-प्रसाद का वर्णन किया गया है। इस स्तोत्र के पाठ से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और भक्त को धन, धान्य, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं।
कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने के लिए किसी विशेष विधि की आवश्यकता नहीं है। इसे किसी भी समय और किसी भी स्थान पर किया जा सकता है। लेकिन, यदि आप नियमित रूप से और विशेष रूप से शुक्रवार को इस स्तोत्र का पाठ करते हैं, तो इससे आपको अधिक लाभ प्राप्त होगा।
कनकधारा स्तोत्र की रचना के पीछे एक पौराणिक कथा है। एक बार, आदिगुरु शंकराचार्य एक गरीब ब्राह्मण के घर भिक्षा मांगने गए। ब्राह्मण के पास देने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए उसने शंकराचार्य को एक सूखा आंवला दे दिया। शंकराचार्य ने उस आंवले को देवी लक्ष्मी को अर्पित किया और कनकधारा स्तोत्र का पाठ किया। स्तोत्र के पाठ के बाद, देवी लक्ष्मी ने ब्राह्मण के घर सोने की आंवलों की वर्षा कर दी।
कनकधारा स्तोत्र एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए एक प्रभावी उपाय है। यदि आप इस स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करते हैं, तो आपको अवश्य ही लाभ प्राप्त होगा।
कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने के लिए किसी विशेष विधि की आवश्यकता नहीं है। इसे किसी भी समय और किसी भी स्थान पर किया जा सकता है। लेकिन, यदि आप नियमित रूप से और विशेष रूप से शुक्रवार को इस स्तोत्र का पाठ करते हैं, तो इससे आपको अधिक लाभ प्राप्त होगा।
कनकधारा स्तोत्र की रचना के पीछे एक पौराणिक कथा है। एक बार, आदिगुरु शंकराचार्य एक गरीब ब्राह्मण के घर भिक्षा मांगने गए। ब्राह्मण के पास देने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए उसने शंकराचार्य को एक सूखा आंवला दे दिया। शंकराचार्य ने उस आंवले को देवी लक्ष्मी को अर्पित किया और कनकधारा स्तोत्र का पाठ किया। स्तोत्र के पाठ के बाद, देवी लक्ष्मी ने ब्राह्मण के घर सोने की आंवलों की वर्षा कर दी।
कनकधारा स्तोत्र एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए एक प्रभावी उपाय है। यदि आप इस स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करते हैं, तो आपको अवश्य ही लाभ प्राप्त होगा।
अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।
मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्,
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।
बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।
प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।।
दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।
इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।
गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति, शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।
श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।
नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।
सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।
यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां, मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।
सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।
दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं, करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।17।।
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।
मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्,
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।
बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।
प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।।
दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।
इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।
गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति, शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।
श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।
नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।
सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।
यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां, मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।
सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।
दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं, करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।17।।
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।
कनकधारा यंत्र
कनकधारा यंत्र एक बहुत ही सुंदर और आकर्षक यंत्र है। यह यंत्र सोने की धाराओं से भरा हुआ है। इस यंत्र में देवी लक्ष्मी विराजमान होती हैं। कनकधारा यंत्र को घर में रखने से धन की प्राप्ति होती है और धन का संचय होता है।कनकधारा स्तोत्र
कनकधारा स्तोत्र एक संस्कृत स्तोत्र है। यह स्तोत्र देवी लक्ष्मी की स्तुति करता है। कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को धन की प्राप्ति होती है।कनकधारा यंत्र और स्तोत्र का प्रयोग कैसे करें
कनकधारा यंत्र और स्तोत्र का प्रयोग करने के लिए सबसे पहले एक कनकधारा यंत्र किसी तंत्र-मंत्र संबंधी सामग्री की दुकान से खरीद लें। यंत्र को घर में पूजा घर में रखें। यंत्र के सामने रोजाना सुबह और शाम को धूप-दीप जलाएं और कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। स्तोत्र का पाठ करने से पहले हाथों को धोकर और साफ कपड़े पहनकर बैठें। स्तोत्र का पाठ एकाग्रचित होकर और भक्तिभाव से करें।कनकधारा यंत्र और स्तोत्र के लाभ
कनकधारा यंत्र और स्तोत्र के निम्नलिखित लाभ हैं:- धन की प्राप्ति होती है।
- धन का संचय होता है।
- आर्थिक तंगी दूर होती है।
- व्यापार में लाभ होता है।
- मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
यदि आप धन प्राप्ति और धन संचय के लिए एक प्रभावशाली उपाय की तलाश कर रहे हैं, तो कनकधारा यंत्र और स्तोत्र का प्रयोग करें। यह एक बहुत ही सरल और आसान उपाय है, जिससे आपको जल्द ही लाभ मिलेगा।
कनकधारा स्त्रोतोद्रिक्तं धनकनकमयाचितां ।
सकलार्थसिद्धिकामार्थं शरणागतं मां रक्ष मां ॥
अर्थ: हे देवी लक्ष्मी! आपकी पूजा से सोने की धाराओं से भरे कलश की प्राप्ति होती है। मैं आपसे सभी कार्यों की सिद्धि के लिए प्रार्थना करता हूं। आप ही मेरी शरण हैं। मेरी रक्षा करें।
यदि आप धन प्राप्ति और धन संचय के लिए एक प्रभावशाली उपाय की तलाश कर रहे हैं, तो कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। यह एक बहुत ही सरल और आसान उपाय है, जिससे आपको जल्द ही लाभ मिलेगा।