कबीर साहेब के दोहे हिंदी अर्थ सहित

कबीर साहेब के दोहे हिंदी अर्थ सहित

माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख ।
माँगन से तो मरना भला, यह सतगुरु की सीख ॥
 
कबीर के दोहे हिंदी में Kabir Dohe in Hindi दोहे दोहावली कबीर दास के दोहे हिन्दी
माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय ।
भगता के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय ॥
आया था किस काम को, तु सोया चादर तान ।
सुरत सम्भाल ए गाफिल, अपना आप पहचान ॥
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपणे, गोबिंद दियो मिलाय॥
गुरु कीजिए जानि के, पानी पीजै छानि ।
बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि॥
सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार॥
गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं ।
भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खाहि॥
"माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय। भगता के पीछे लगे, सम्मुख भागे सोय।"
इस पद में कबीर जी माया (भ्रम) और छाया (परछाई) की समानता को दर्शाते हैं। वे कहते हैं कि माया और छाया दोनों एक जैसी होती हैं; बिरला ही उन्हें पहचान पाता है। भक्त माया के पीछे भागते हैं, जबकि माया उनके सामने से भागती है। यह दर्शाता है कि माया से पार पाना आसान नहीं है।

"आया था किस काम को, तु सोया चादर तान। सुरत सम्भाल ए गाफिल, अपना आप पहचान।"
यहां कबीर जी आत्म-ज्ञान की आवश्यकता पर बल देते हैं। वे कहते हैं कि व्यक्ति इस संसार में एक उद्देश्य के लिए आया है, लेकिन वह सोया हुआ है। उसे अपनी चेतना को जागृत करना चाहिए और अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानना चाहिए।

"गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पांय। बलिहारी गुरु अपने, गोबिंद दियो मिलाय।"
इस प्रसिद्ध पद में कबीर जी गुरु की महिमा का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि यदि गुरु और भगवान दोनों सामने खड़े हों, तो किसे प्रणाम करना चाहिए? वे गुरु को प्रणाम करते हैं, क्योंकि गुरु के आशीर्वाद से ही भगवान का साक्षात्कार संभव है।

"गुरु कीजिए जानि के, पानी पीजै छानि। बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि।"
यहां कबीर जी गुरु की महिमा और उनके बिना ज्ञान के गुरु की उपासना के परिणामों पर चर्चा करते हैं। वे कहते हैं कि गुरु की उपासना सोच-समझ कर करनी चाहिए, क्योंकि बिना विचार के गुरु की उपासना करने से चौरासी योनियों के चक्कर में फंस सकते हैं।

"सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार। लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार।"
इस पद में कबीर जी सतगुरु की अनंत महिमा का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि सतगुरु की महिमा अनंत है, जिन्होंने अनंत उपकार किए हैं। उन्होंने हमारी आँखों को खोलकर अनंत सत्य का दर्शन कराया है।

"गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं। भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खाहि।"
यहां कबीर जी सतगुरु की पहचान की आवश्यकता पर बल देते हैं। वे कहते हैं कि यदि व्यक्ति केवल शारीरिक गुरु को पहचानता है और सतगुरु को नहीं पहचानता, तो वह भवसागर के जाल में फंसा रहता है और बार-बार जन्म-मरण के चक्कर में पड़ता है।
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