कबीर साहेब के दोहे हिंदी अर्थ सहित

कबीर साहेब के दोहे हिंदी अर्थ सहित

कबीर के दोहे हिंदी में Kabir Dohe in Hindi दोहे दोहावली कबीर दास के दोहे हिन्दी

शब्द गुरु का शब्द है, काया का गुरु काय।
भक्ति करै नित शब्द की, सत्गुरु यौं समुझाय॥
बलिहारी गुर आपणैं, द्यौंहाडी कै बार।
जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार।।
कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर ॥
जो गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रान्ति न जिसका जाय।
सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय॥
यह तन विषय की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान॥
गुरु लोभ शिष लालची, दोनों खेले दाँव।
दोनों बूड़े बापुरे, चढ़ि पाथर की नाँव॥
समझाये समझे नहीं, पर के साथ बिकाय ।
मैं खींचत हूँ आपके, तू चला जमपुर जाए ॥

शब्द गुरु का शब्द है, काया का गुरु काय। भक्ति करै नित शब्द की, सत्गुरु यौं समुझाय॥
अर्थ: शब्द ही गुरु का रूप है, और शरीर ही गुरु का शरीर है। निरंतर शब्द की भक्ति करने से, सत्गुरु हमें इसका सही अर्थ समझाते हैं।

बलिहारी गुर अपनैं, द्यौंहाडी कै बार। जिनि मानिष तैं देवता, करत न लागी बार॥
अर्थ: मैं अपने गुरु पर निछावर हूँ, जिन्होंने मनुष्य को देवता बना दिया। उनके आशीर्वाद से, मुझे कोई भी बाधा नहीं लगती।

कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और। हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रुठै नहीं ठौर॥
अर्थ: जो व्यक्ति गुरु को नहीं पहचानता, वह अंधा है। यदि भगवान नाराज हों, तो गुरु के पास शरण है; लेकिन यदि गुरु नाराज हों, तो कोई ठिकाना नहीं।

जो गुरु ते भ्रम न मिटे, भ्रान्ति न जिसका जाय। सो गुरु झूठा जानिये, त्यागत देर न लाय॥
अर्थ: जो गुरु भ्रम को दूर नहीं कर पाता और जिसकी भ्रांति नहीं जाती, उसे झूठा समझना चाहिए और उसे तुरंत छोड़ देना चाहिए।

यह तन विषय की बेलरी, गुरु अमृत की खान। सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान॥
अर्थ: यह शरीर विषयों की बेल है, जबकि गुरु अमृत की खान है। यदि गुरु के मिलन के लिए सिर भी देना पड़े, तो भी वह सस्ता है।

गुरु लोभ शिष लालची, दोनों खेले दाँव। दोनों बूड़े बापुरे, चढ़ि पाथर की नाँव॥
अर्थ: गुरु का लोभ और शिष्य का लालच दोनों मिलकर खेलते हैं। दोनों ही बुरे हैं, जैसे पत्थर की नाव पर चढ़ना।
वर्तमान समय में आर्थिक कद ही व्यक्ति की प्रतिष्ठा का पैमाना बनकर रह गया है। व्यक्तिगत गुण गौण हो चुके। कबीर ने इस मानवीय दोष को उजागर करने में कोई कसर नहीं रखी। वर्तमान में देखें तो नेता का बेटा नेता बन रहा है। चूँकि उसे अन्य लोगों की तरह से संघर्ष नहीं करना पड़ता है, वो आम आदमी से आगे रहता है। अमीर और अधिक अमीर बनता जा रहा है और गरीब और अधिक गरीब। आर्थिक असमानता के कारन संघर्ष और तनाव का माहौल है। कबीर ने कर्मप्रधान समाज को सराहा और जन्म के आधार पर श्रेष्ठता को सिरे से नकार दिया। छः सो साल बाद आज भी कबीर के विचारों की प्रासंगिकता ज्यों की त्यों है। कबीर का तो मानो पूरा जीवन ही समाज की कुरीतियों को मिटाने के लिए समर्पित था। आज के वैज्ञानिक युग में भी बात जहाँ "धर्म" की आती है, तर्किता शून्य हो जाती है। ये विषय मनन योग्य है। 

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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